आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 4

कौन थीं वो नेता जो निर्दलीय चुनाव लड़ीं, जीतीं, और संसद पहुंचीं.

1952 में देश की पहली लोकसभा शुरू हुई. इसमें 24 महिलायें शामिल थीं. आज आज़ादी के 72 साल बाद 2019 के लोकसभा इलेक्शन में 78 महिलाएं ही पहुंच पाई हैं. और ये आज तक का सबसे बड़ा नंबर है. लेकिन लोकसभा में शुरुआत कहां से हुई थी महिलाओं की भागीदारी की? पहली लोकसभा में कौन थीं वो महिलाएं जिन्होंने देश के लोकतांत्रिक सफ़र में अहम भूमिका निभाई. आइये जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने देश की सबसे पहली संसद का हिस्सा बन इतिहास रच दिया.

भाग 4

श्रीमती उमा नेहरू: 8 मार्च 1884 को जन्मीं उमा नेहरू ने हुबली से पढ़ाई की थी. सेंट मेरीज कान्वेंट में. जन्म इनका आगरा में हुआ था. 1901  में इन्होंने जवाहरलाल नेहरू के रिश्ते के भाई श्यामलाल नेहरू से शादी की. जवाहरलाल नेहरू के तीन बच्चे थे. बंसी लाल नेहरू. नंदलाल नेहरू, और मोतीलाल नेहरू. मोतीलाल नेहरू और स्वरुपरानी नेहरू के बच्चे हुए जवाहरलाल, विजयलक्ष्मी, और कृष्णा नेहरू. वही कृष्णा नेहरू जो गुणोत्तम राजा हठीसिंग से 1933 में शादी के बाद कृष्णा नेहरू हठीसिंग हो गई थीं. नंदलाल नेहरू के दो बच्चे हुए, श्यामलाल नेहरू और बृजलाल नेहरू. इन्हीं श्यामलाल नेहरू से उमा की शादी हुई. दो बच्चे हुए- श्याम कुमारी नेहरू और आनंद कुमार नेहरू. इन्हीं आनंद कुमार नेहरू के बेटे अरुण नेहरू राजीव गांधी की सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी बने. उमा को बचपन से लिखने-पढ़ने का बहुत शौक था. बृजलाल नेहरू की पत्नी रामेश्वरी नेहरू स्त्री दर्पण नाम की मैगजीन एडिट किया करती थीं. उसमें उमा भी लेख लिखती थीं. उमा ने नमक यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था और जेल भी गईं थीं. पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में उन्होंने सीतापुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की. 28 अगस्त 1963 को लखनऊ में उनका देहांत हुआ.

uma-nehru-750x500_081519104113.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

कुमारी मणिबेन वल्लभभाई पटेल: 3 अप्रैल 1903 को जन्मीं मणि सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी थीं. 6 साल की थीं जब उनकी मां का देहांत हो गया. उनके ताऊजी विट्ठल भाई पटेल ने उनका लालन-पालन किया. क्वीन मेरी हाई स्कूल, बॉम्बे से मणि ने अपनी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वो अपने पिता के साथ स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गईं. 1928 में जब बारडोली सत्याग्रह हुआ था, तब मणिबेन वहां गई थीं. वहां की औरतों को आंदोलन में भाग लेने को प्रेरित करने. मीठूबेन पेतित और भक्तिबा देसाई के साथ मिलकर उन्होंने बारडोली सत्याग्रह में महिलाओं को जोड़ा, और उनकी संख्या पुरुषों से भी ज्यादा हो गई. 1938 में राजकोट सत्याग्रह हुआ. उसमें कस्तूरबा गांधी भी जाना चाहती थीं. लेकिन उनकी तबियत ठीक नहीं थी. तो साथ में मणि गईं. जब उन दोनों को अलग करने का आदेश दिया गया तो मणिबेन अनशन पर बैठ गईं. अंत में सरकार को हार माननी पड़ी. असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, सभी का हिस्सा रहीं मणिबेन. पहले लोकसभा चुनाव में दक्षिण कैरा सीट से कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने चुनाव जीता. दूसरी लोकसभा में आणंद से. उसके बाद वो राज्यसभा की मेंबर हुईं. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से चुनाव जीतकर फिर लोकसभा पहुंचीं. 1990 में उनका देहांत हुआ.

mani-750x500_081519104140.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती जयश्री नैषध रायजी: 26 ऑक्टोबर 1895 को सूरत में जन्मीं जयश्री ने बड़ौदा कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की. 1918 में उनकी शादी नैषध रायजी से हुई. इनके दो बेटे और दो बेटियां हुईं. बॉम्बे प्रेसिडेंसी विमेंस काउंसिल की चेयरपर्सन बनीं 1919 में. असहयोग आन्दोलन के समय ये दुकानों पर पिकेटिंग करने जाया करती थीं. जेल भी गईं इसी सिलसिले में. पिकेटिंग में कार्यकर्ता विदेशी वस्तुएं बेचने वाली दुकानों के सामने जाकर विरोध प्रदर्शन करते थे और वहां खरीददारी करने आने वालों को स्वदेशी वस्तुएं लेने की बात बताते थे. आज़ादी के बाद बॉम्बे सबर्बन चुनाव क्षेत्र से उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत कर संसद पहुंचीं. इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर यानी बच्चों के कल्याण के लिए बनी संस्था की वो फाउन्डिंग मेम्बर्स में से एक रहीं. बच्चों और महिलाओं के कल्याण के लिए किए गए उनके कामों के लिए उन्हें 1980 में जमनालाल बजाज अवार्ड भी दिया गया.1985 में उनका देहांत हुआ.

jaishri-raiji-750x500_081519104204.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती सुषमा सेन: कोलकाता में 25 अप्रैल 1889 को जन्मी थीं सुषमा सेन. लोरेटो हाउस कोलकाता, दार्जिलिंग और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. 1904 में पी के सेन से उनकी शादी हुई. वे बैरिस्टर थे. बंगाल विभाजन जब हुआ, उसके बाद वो महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ीं. उन्होंने बिहार के लोगों के लिए बहुत काम किया. 1910 में लंदन में मताधिकार के लिए महिलाओं के आंदोलन में भी भाग लिया उन्होंने. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, बिहार काउंसिल ऑफ विमेन की भी अध्यक्ष रहीं. 1934 में जब बिहार में भूकंप आया था, अतब उन्होंने राहत सामग्री जुटाने के लिए भी काफी काम किया था. पहले लोकसभा चुनाव में भागालपुर दक्षिण सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. लेकिन इसके पहले वो पटना म्युनिसपैलिटी से चुनाव जीत चुकी थीं. वहां लोकल लोगों के बीच उनका बहुत मान था. उन्होंने भागलपुर में महिलाओं के लिए कॉलेज खुलवाया था. यही नहीं, भागलपुर हॉस्पिटल में महिलाओं के लिए वार्ड भी बनवाया था. इसी लोकसभा में पटना ईस्ट से तारकेश्वरी सिन्हा भी जीत कर लोकसभा पहुंची थीं.

sushma-sen-750x500_081519104430.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

हर हाइनेस राजमाता कमलेन्दु मति शाह: मार्च 20, 1903 को उनक जन्म कोटी, कोएंथल स्टेट में हुआ. इनके पिता राजा बिजय सेन थे. स्कूल नहीं गईं, इनकी प्राइवेट शिक्षा हुई. इन्होने अंग्रेजी,हिंदी, और फ्रेंच पढ़ी.1916 में 13 साल की थीं जब इनकी शादी हो गई. टिहरी गढ़वाल के राजा हिज हाइनेस महाराजा सर नरेंद्र शाह से.क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया और वेस्टर्न इंडिया ऑटोमोबाइल एसोसियेशन की मेंबर रहीं. इनके दो बेटे और एक बेटी हुई. आज़ादी के बाद गढ़वाल डिस्ट्रिक्ट से इन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, और जीत कर संसद पहुंचीं. भारत सरकार ने 1958 में इनको समाज में योगदान के लिए इनको पद्म भूषण से नवाज़ा. ये देश का तीसरा सबसे ऊंचा सम्मान माना जाता है. इनको पढ़ने, बुनाई करने, और बागबानी का शौक था. 15 जुलाई 1999 को उनका निधन हो गया. उन्हें ब्रेन कैंसर था.

kamlendu-mati-750x500_081519104457.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा: 26 दिसंबर 1926 को जन्मीं तारकेश्वरी सिन्हा का नाम आज भी किस्सों का हिस्सा है. नालंदा में जन्मीं, और बांकेपुर गर्ल्स कॉलेज में पढ़ीं. ये आज मगध महिला कॉलेज के नाम से जाना जाता है. बिहार स्टूडेंट्स कांग्रेस की प्रेसिडेंट थीं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उन्होंने एम एससी किया. भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. वो पहली महिला डिप्टी फाइनेंस मिनिस्टर थीं. 1952 की लोकसभा में पटना ईस्ट से चुनकर वो संसद पहुंची थीं. पति निधिदेव सिंह बड़े वकील थे. तारकेश्वरी 1952 के बाद 57, और 62 का चुनाव भी जीतीं. तारकेश्वरी के बारे में उस समय ऐसी खबरें उड़ा करती थीं कि वो जो साड़ी एक बार पहन लेती हैं उसे दुबारा नहीं पहनतीं. उन्हें ग्लैमर गर्ल ऑफ पार्लियामेंट जैसे नाम भी दिए गए क्योंकि वो बेहद सुंदर थीं. उनकी लोकसभा में हाज़िरजवाबी भी देखने लायक होती थी. बीबीसी में छपे एक किस्से में पढ़ने को मिलता है. एक बार डॉक्टर राम मनोहर लोहिया संसद में स्टालिन की बेटी स्वेतलाना को भारत में शरण दिए जाने की मांग कर रहे थे. तारकेश्वरी सिन्हा ने कहा, "लोहिया जी आप तो बैचलर हैं, आपने शादी नहीं की, आपको औरतों के बारे में क्या मालूम.” लोहिया जी तपाक से बोले, "तारकेश्वरी तुमने मौका ही कब दिया." गुलज़ार कहते हैं कि उनकी फिल्म आंधी इंदिरा गांधी के साथ-साथ तारकेश्वरी सिन्हा से भी प्रेरित रही. 14 अगस्त 2007 को नई दिल्ली में तारकेश्वरी सिन्हा का निधन हुआ.

tarkeshwari-750x500_081519104528.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

इस सीरीज की बाकी सभी कड़ियां यहां पढ़ें:

आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 1

आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 2 

आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 3 

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