आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 3

बाईपोल्स में जीत कर पहुंचने वाली नेताओं के नाम जानते हैं आप?

1952 में देश की पहली लोकसभा शुरू हुई. इसमें 24 महिलायें शामिल थीं. आज आज़ादी के 72 साल बाद 2019 के लोकसभा इलेक्शन में 78 महिलाएं ही पहुंच पाई हैं. और ये आज तक का सबसे बड़ा नंबर है. लेकिन लोकसभा में शुरुआत कहां से हुई थी महिलाओं की भागीदारी की? पहली लोकसभा में कौन थीं वो महिलाएं जिन्होंने देश के लोकतांत्रिक सफ़र में अहम भूमिका निभाई. आइये जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने देश की सबसे पहली संसद का हिस्सा बन इतिहास रच दिया.

भाग 3 

श्रीमती बोनिली खोंग्मेन: जोवाई, जयंतिया हिल्स में 25 जून 1912 को बोनिली का जन्म हुआ. पढ़ाई के लिए वो वेल्स मिशन गर्ल्स हाई स्कूल गईं जो शिलौंग में था. आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता गईं. गोलाघाट और शिलौंग के स्कूलों में प्रिंसिपल रहीं. 1940 के बाद राजनीति में सक्रिय हुईं. उस समय नॉर्थ ईस्ट यानी पूर्वोत्तर से जीत कर आने वाली इकलौती महिला थीं बोनिली. 1952 की लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीती थीं. असम औटोनौमस डिस्ट्रिक्ट सीट से. ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी. लेकिन इससे भी पहले साल 1946 में असम विधानसभा की सदस्य बनीं. उपसभापति भी रहीं. आदिवासी समाज के लिए उन्होंने आवाज़ उठाई और कई स्कूलों की भी स्थापना की. खासी जयंतिया नेशनल कान्फ्रेंस की वाइस प्रेसिडेंट, और खासी-जयंतिया हिल्स की आदिवासी समाज की सलाहकार परिषद की सदस्य रहीं. इंडियन रेस क्रॉस सोसाइटी की भी मेंबर रहीं. कपड़े बुनने का उन्हें बहुत शौक था ऐसा पढ़ने को मिलता है. वायलिन बजाना भी पसंद था उन्हें. शरणार्थियों के बीच कपड़े भी बांटती रहा करती थीं. अपने जीवन का रिटायर्मेंट के बाद का हिस्सा उन्होंने शिलौंग में गुज़ारा. 2007 में उनका निधन हुआ.

bonili-750x500_081419112426.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती सुशीला गणेश मावलंकर: 4 अगस्त 1904 को मुंबई में रामकृष्ण गोपीनाथ गुर्जर दाते के घर उनका जन्म हुआ. उस समय वो बॉम्बे एस्टेट हुआ करता था. अंडर मैट्रिक तक की पढ़ाई की उन्होंने. मार्च 1921 आते-आते उनकी शादी गणेश मावलंकर से हो गई. महात्मा गांधी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तब सुशीला भी उसमें हिस्सा लेने उतरीं मैदान में. जेल भी गईं. इनके पति गणेश मावलंकर लोकसभा के पहले स्पीकर बने. 1952 में हुए चुनाव में गणेश मावलंकर अहमदाबाद सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे. लेकिन 1956 में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद उस सीट से कांग्रेस ने सुशीला को टिकट दिया, और वो निर्विरोध जीत गईं. 1953 में क्वीन एलिज़ाबेथ 2 का राज्याभिषेक हुआ था, तब वो भी अपने पति के साथ लन्दन गई थीं उसमें हिस्सा लेने के लिए. हालांकि 1956 में संसद में चुने जाने के बाद 1957 में ही उनका कार्यकाल ख़त्म हो गया. इसके बाद उन्होंने अपना अधिकतर समय अहमदाबाद में बिताया. 11 दिसम्बर 1995 को उनका निधन हुआ. उनके बेटे पुरुषोत्तम मावलंकर भी सांसद रहे. अहमदाबाद और गांधी नगर से दो बार उन्होंने भी लोकसभा चुनाव जीता. अब पुरुषोत्तम भी इस दुनिया में नहीं हैं.

sushila-lal-kila-source-750x500_081419112452.jpgतस्वीर साभार: लालकिला.इन

श्रीमती इंदिरा अनंत मायदेव: 7 सितम्बर 1903 को जन्मीं इंदिरा महात्मा गांधी की चेली थीं. महात्मा गांधी ने जो भी मूवमेंट चलाई, उसका हिस्सा रहीं वो. आज़ादी के पहले से ही वो स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रही थीं. पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की थी. वो ग्रेजुएट थीं  और 1927 में अनंत गोविन्द मायदेव से उनकी शादी हुई थी. 1 बेटा, और तीन बेटी हुए उनके. उन्होंने जो योगदान दिया था आज़ादी से पहले, उसने उन्हें लोगों की नज़र में काफी ऊंचा उठा दिया था, ऐसा कहना है पुष्पा मायदेव का, जो उनकी बहू हैं. 1952 में वो NSUI (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) की प्रेसिडेंट भी रही थीं. इंदिरा ने पूना साउथ चुनाव क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था. सोशलिस्ट पार्टी के कैंडिडेट श्रीधर लिमये को उन्होंने हराकर ये सीट जीती थी. पूना शहर उस समय बॉम्बे रीजन के तहत ही आता था. इसमें उस वक़्त 37 चुनाव क्षेत्र थे. पूना सेन्ट्रल भी इसी में आता था जहां से नरहर गाडगिल उर्फ़ काकासाहेब गाडगिल ने चुनाव जीता था. अभी तक पुणे से कोई और महिला नेता नहीं चुनी गई हैं.

indira-maydeo-750x500_081419112508.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती मिनीमाता अगम दास गुरु: 1916 में असम के नवगांव डिस्ट्रिक्ट में पैदा हुईं मिनीमाता दलित अस्मिता के लिए काम करने वाले नेताओं में से एक मानी जाती हैं. डॉक्टर बी आर आंबेडकर का इन पर खासा प्रभाव था. 1930 में इन्होने गुरु अगमदास से शादी की. वो पहली लोकसभा में चुनकर गए थे. लेकिन 1955 में उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर की उनकी सीट पर हुए बाई-इलेक्शन में मिनीमाता लड़ीं, और जीत हासिल की. उस समय छत्तीसगढ़ बना नहीं था. तब ये इलाका मध्य प्रदेश में ही था. उन्होंने दलितों के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए अस्पृश्यता अधिनियम को संसद में पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पहली लोकसभा के बाद मिनीमाता दूसरी, तीसरी, और चौथी लोकसभा में भी चुनी गईं. बाद में परिसीमन के बाद बनी जांजगीर सीट से उन्होंने 67 और 71 में चुनाव लड़ा और जीता. 1973 में एक प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई. फिर उनकी सीट पर बाई इलेक्शन हुए.

minimata-750x500_081419112522.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती शकुंतला नायर:  जिस समय कांग्रेस का बोलबाला था लोकसभा में, उस समय हिन्दू महासभा के टिकट पर गोंडा वेस्ट से इलेक्शन जीतकर पहली लोकसभा में पहुंचने वाली महिला थीं शकुंतला नायर. मूल रूप से उत्तराखंड की थीं. मसूरी के विंडबर्ग गर्ल्स हाई स्कूल से पढ़ाई की उन्होंने. इनकी शादी के के नायर से 1946 में हुई थी जो उस समय इंडियन सिविल सर्विसेज में थे. केरल के एलेप्पी से थे, लेकिन अधिकतर समय उनका यूपी में गुज़रा पोस्टिंग के बाद. शकुंतला हिन्दू महासभा में थीं, तो के के नायर भारतीय जनसंघ से जुड़े हुए थे. 1952 के चुनाव में शकुंतला ने कांग्रेस के उम्मेदवार लाल बिहारी टंडन को गोंडा सीट पर हराया था.1962 से 1967 तक वो उत्तर प्रदेश विधान सभा की भी सदस्य रहीं.1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ ने कैसरगंज सीट से उन्हें उतारा. उस समय वहां कांग्रेस और स्वतंत्र पार्टी ने भी अपने-अपने कैंडिडेट उतारे. लेकिन शकुंतला ये चुनाव जीत गईं. 1967 में ही के के नायर ने भी बहराइच से लोकसभा चुनाव लड़ा. भारतीय जनसंघ के टिकट पर. इस तरह चौथी लोकसभा में पति और पत्नी दोनों संसद पहुंचे.

shakuntala-nayar-750x500_081419112540.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

श्रीमती शिवराजवती नेहरू: ऑक्टोबर 1897 में जन्म हुआ था पंडित जगत नारायण के घर. अलीगढ़ के गवर्नमेंट ही स्कूल से पढ़ाई की. नवम्बर 1915 में डॉक्टर किशन लाल नेहरू से इनकी शादी हुई. 1939 और 1942 में जेल भी गई थीं. आज़ादी के बाद लखनऊ सेन्ट्रल से चुनाव जीतकर पहुंची थीं संसद, श्रीमती शिवराजवती नेहरू. कांग्रेस के टिकट पर.  1951 में इस सीट से विजयलक्ष्मी पंडित चुनी गई थीं. लेकिन इसके कुछ समय के बाद ही वो यूनाइटेड नेशंस चली गईं. उनकी सीट पर बाई इलेक्शन हुए. इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी थे, त्रिलोकी सिंह थे, और शिवराजवती नेहरू थीं. इस चुनाव में शिवराजवती को 49,324 वोट मिले, और तीसरे नम्बर पर अटल बिहारी वाजपेयी 33,986 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव को लेकर त्रिलोकी सिंह ने कोर्ट में पेटीशन भी डाली थी. वो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से थे. ये अर्जी थी कि इस चुनाव में धांधली हुई है. लेकिन कोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया था.

sheorajvati-nehru-750x500_081419112555.jpgतस्वीर: विकिमीडिया

अगले हिस्से में पढ़िए उन दूसरी महिला नेताओं के बारे में जो इसी लोकसभा का हिस्सा थीं.

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आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 2

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