आज़ाद भारत की पहली लोकसभा में इतिहास रचने वाली महिलाएं - भाग 2
कौन थीं वो नेता जिन्होंने बाद के सालों में अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव में हरा दिया था.
1952 में देश की पहली लोकसभा शुरू हुई. इसमें 24 महिलायें शामिल थीं. आज आज़ादी के 72 साल बाद 2019 के लोकसभा इलेक्शन में 78 महिलाएं ही पहुंच पाई हैं. और ये आज तक का सबसे बड़ा नंबर है. लेकिन लोकसभा में शुरुआत कहां से हुई थी महिलाओं की भागीदारी की? पहली लोकसभा में कौन थीं वो महिलाएं जिन्होंने देश के लोकतांत्रिक सफ़र में अहम भूमिका निभाई. आइये जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने देश की सबसे पहली संसद का हिस्सा बन इतिहास रच दिया.
भाग 2
श्रीमती अनसूयाबाई भाऊराव बोरकर: मध्य प्रदेश (जो उस समय सेन्ट्रल प्रोविंस था) में 1929 में जन्मी थीं अनसूयाबाई. सलेम गर्ल्स हिंदी इंग्लिश मिडल स्कूल, रायपुर में उन्होंने पढ़ाई की. बुनाई का बहुत शौक था. 1947 में उनकी शादी भाऊराव बोरकर से हुई. तीन बेटियां हुईं दोंनों की. शादी के बाद अनसूयाबाई सोशल वर्क में लग गई थीं. वयस्क महिलाओं के लिए नागपुर में एजुकेशन प्रोग्राम्स चलाती थीं. कांग्रेस पार्टी की नागपुर डिस्ट्रिक्ट कमिटी की भी मेंबर थीं. किस्से-कहानियां, खास तौर पर नॉवेल पढ़ने की शौक़ीन थीं. इनके पति भाऊराव भंडारा सीट से सांसद बने थे. ये सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. 1955 में उनकी मृत्यु के बाद इस सीट पर बाई-इलेक्शन यानी उपचुनाव हुए. इस इलेक्शन में कांग्रेस के टिकट पर अनसूयाबाई ने चुनाव लड़ा. इनको 84458 वोट मिले. इनके अपोजिशन में खड़े होने वाले कैंडिडेट को लगभग 58,000 वोट मिले. इस तरह पहली लोकसभा में श्रीमती अनसूयाबाई भाऊराव बोरकर पहुंचीं. इनका निधन सन 2000 में हुआ.
तस्वीर: विकिमीडिया
श्रीमती मरगथम चन्द्रशेखर: मरगथम मुनिस्वामी का जन्म 11 नवम्बर 1917 को चेन्नई में हुआ था. भारत से उन्होंने अपनी बीएससी पूरी की. उसके बाद लंदन चली गईं डिप्लोमा लेने के लिए. आर चन्द्रशेखर से इन्होंने शादी की. लता प्रियाकुमार इनकी बेटी हुईं, जो आगे चलकर तमिलनाडु विधानसभा की सदस्य बनीं. इनका एक बेटा भी था.इन्होंने कांग्रेस जॉइन की थी. पहले लोकसभा चुनावों में तिरुवल्लुर सीट से जीत कर संसद पहुंची थीं. 1951 से 1957 तक ये यूनियन डिप्टी हेल्थ मिनिस्टर रहीं. 1970 से 1984 तक ये राज्यसभा सदस्य भी रहीं. 1972 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की जनरल सेक्रेटरी चुनी गईं. इनका नाम राजीव गांधी की हत्या के समय हाईलाइट हुआ था. जब राजीव गांधी 1991 में श्रीपेरुम्बुदुर आए थे, तब मरगथम ने ही उन्हें होस्ट किया था. पढ़ने को मिलता है कि राजीव इन्हें प्यार से आंटी कहा करते थे. जिस रैली में राजीव गांधी की हत्या हुई, उस रैली में वो भी मौजूद थीं. साल 2001 में उनका निधन हुआ.
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श्रीमती इला पाल चौधरी: ब्रिटिश भारत के कोलकाता में इला पाल चौधरी का जन्म हुआ. साल 1908 में. इनकी शादी नादिया के बड़े जमींदार अमियनारायण पाल चौधरी से हुई थी. ससुर बिप्रदास पाल चौधरी बंगाल के जाने माने इंडस्ट्रियलिस्ट थे. कम उम्र में ही इला ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी. फिर इन्होंने नबद्वीप से चुनाव लड़ा और जीतीं. 1968 में उन्होंने कृष्णनगर का बाई इलेक्शन लड़ा और वहां से भी जीतीं. बंगाल के क्षेत्रीय कांग्रेस की जो महिला शाखा थी, उसकी लीडर वो काफी पहले ही बन चुकी थीं. 1975 में उनकी मृत्यु हुई. इंटरेस्टिंग बात ये है कि कृष्णनगर से ही इस वक़्त महुआ मोइत्रा एमपी हैं जिन्होंने हाल में काफी अटेंशन पाई जब उन्होंने फासिज्म के ऊपर अपनी पहली स्पीच दी लोकसभा में.
श्रीमती गंगा देवी: 1916 में देहरादून में जन्मी थीं श्रीमती गंगा देवी. उस समय देहरादून उत्तर प्रदेश में ही था. उत्तराखंड नहीं था अस्तित्व में. महादेवी कन्या पाठशाला से स्कूली पढ़ाई करने के बाद वो DAV कॉलेज गईं पढ़ने के लिए. उसके बाद वो बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से BA की डिग्री लेकर निकलीं. लखनऊ / बाराबंकी सीट जोकि आरक्षित थी अनुसूचित जाति के लिए, उससे वो पहला लोकसभा चुनाव जीतीं. यही नहीं, वो दूसरी, तीसरी, और चौथी लोकसभा की भी सदस्य रहीं. दूसरे में उन्नाव से, तीसरे और चौथे में मोहनलाल गंज सीट से. अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जो स्कालरशिप बोर्ड था, उसकी भी वो सदस्य थीं. 52 से 54 तक. टी एंड कॉफ़ी बोर्ड की सदस्य भी रहीं इसी अवधि के लिए. केन्द्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड की सदस्य रहीं 1958 से 1960 तक. ग्रामीण इलाकों में पिछड़े वर्ग की देखरेख और उनके कल्याण के लिए कई प्रक्रियाओं में उन्होंने भाग लिया. बच्चों की पढ़ाई के लिए काम किया. बाल विवाह और जाति प्रथा के खिलाफ काम किया. गांव के उद्योगों को विकसित करने में उन्होंने खास इंटरेस्ट लिया.
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श्रीमती सुभद्रा जोशी: इनका नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में शामिल लोगों में लिया जाता है. महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थीं. परिवार सियालकोट से था. जयपुर, लाहौर, और जालंधर में पढ़ाई की इन्होंने. जब लाहौर में पढ़ रही थीं, तब महात्मा गांधी के वर्धा वाले आश्रम में उनसे मिलने आई थीं. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया, तब वो स्टूडेंट ही थीं. अरुणा आसफ अली के साथ मिलकर उन्होंने काम किया. जेल भी गईं. बंटवारे के समय उन्होंने पाकिस्तान से आए लोगों की देखरेख का काम किया. अनीस किदवई अपनी किताब में बताती हैं कि किस तरह वो और सुभद्रा दिल्ली के आस-पास के गांवों में जाकर मुस्लिमों को जबरन बाहर निकालने वालों का विरोध करती थीं. उन्हें भरसक रोकने की कोशिश करती थीं. आज़ादी के बाद पहली लोकसभा में वो करनाल सीट से जीतकर आईं. इसके बाद अम्बाला से जीतीं. अपनी तीसरी लोकसभा जीत में उन्होंने इतिहास रचा जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को बलरामपुर से हरा दिया. उस चुनाव में उनके लिए मशहूर एक्टर-लेखक बलराज साहनी ने कैम्पेनिंग की थी. लेकिन इसी सीट पर फिर 1967 में हुए चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी ने सुभद्रा जोशी को हरा दिया था. 1971 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट से वो फिर जीतीं. 30 ऑक्टोबर 2003 को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ.
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श्रीमती अनसूयाबाई पुरुषोत्तम काले: नागपुर सीट से पहली लोकसभा में जाने वाली सदस्य थीं श्रीमती अनसूयाबाई. कांग्रेस से टिकट पर चुनाव लड़ा था. इस इलेक्शन के पहले 1928 में वो एसेम्बली ऑफ सेन्ट्रल प्रोविंसेज एंड बरार की सदस्य रह चुकी थीं. वो पहली नॉमिनेटेड महिला सदस्य थीं इस एसेम्बली की. 1937 में सेन्ट्रल प्रोविंसेज की लेजिस्लेटिव असेम्बली में डिप्टी स्पीकर के पद पर थीं. दुबारा जब लोकसभा चुनाव हुए 1957 में, तब भी वो जीती थीं. पूना के फर्ग्युसन कॉलेज से पढ़ी थीं वो, उसके बाद बड़ौदा के बड़ौदा कॉलेज से. उनको अवध स्टेट के दीवान के परिवार से जुड़ा बताया जाता है. कहते हैं कि वो उन्हीं की वंशज थीं. पुरुषोत्तम बालकृष्ण काले से उनकी शादी हुई. तीन बेटे और दो बेटियां रहे उनके. अनसूयाबाई ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की प्रेसिडेंट भी रह चुकी थीं.
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अगले हिस्से में पढ़िए उन दूसरी महिला नेताओं के बारे में जो इसी लोकसभा का हिस्सा थीं.
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