डिम्पल यादव: वो नेता जिसकी लव स्टोरी लोग इन्टरनेट पर खोज-खोज कर पढ़ते हैं
वो महिला जो राजनीति में उतरी तो रिकॉर्ड बना दिया
साल 2009.
फिरोजाबाद.
यहां से सांसद राज बब्बर. उनके खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरी एक छुई-मुई सी महिला. वो महिला जिसे कोई देखे तो एकबारगी ठिठक कर रह जाए. ये मासूम-सा चेहरा पॉलिटिक्स में? जिसे देख कर घर की बड़ी दीदी की छवि उतर सी जाए मन में. उस चुनाव में राज बब्बर से वो हार गईं. लोगों को लगा, राजनीति में इस चेहरे का सफ़र यहीं तक होगा.
वो लोग गलत थे.
2012 में लोकसभा बाईपोल हुए. इस बार कन्नौज सीट से दोबारा ये चेहरा सामने आया. इस बार चीज़ें थोड़ी अलग थीं. उस सीट के बाकी सभी नामांकन वापस ले लिए गए थे. कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ. निर्विरोध जीतने वाली इस उम्मीदवार के लिए समाजवादी पार्टी की आंखों के तारे अखिलेश यादव ने अपनी सीट छोड़ दी थी.
तस्वीर: फेसबुक
ये उम्मीदवार थीं डिम्पल यादव. समाजवादी पार्टी की नेता. अखिलेश यादव की पत्नी. उत्तर प्रदेश की फर्स्ट लेडीज में से एक. इस मामले में भी, कि उत्तर प्रदेश से निर्विरोध चुनाव जीतने वाली वो पहली महिला कैंडिडेट थीं.
डिम्पल यादव. उत्तर प्रदेश की ‘बहू’. मूल रूप से उत्तराखंड के राजपूत परिवार की. डिम्पल ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो एक दिन उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवर परिवारों में से एक में ब्याही जाएंगी. लेकिन जो होना तय हो जाता है, वो होकर रहता है. पुणे में पली-बढ़ीं डिम्पल कॉमर्स में ग्रेजुएशन के लिए लखनऊ यूनिवर्सिटी आईं. अखिलेश से मिलीं. पसंद आ गए एक-दूसरे को. डेट करना शुरू कर दिया.
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डिम्पल के पापा आर्मी में कर्नल थे. कर्नल एस सी रावत. उनको अखिलेश के साथ डिम्पल का रिश्ता पसंद नहीं था. सेम चीज अखिलेश के परिवार में भी थी. मुलायम सिंह यादव अखिलेश का रिश्ता लालू यादव की बेटी मीसा भारती से कराना चाहते थे. लेकिन अखिलेश और डिम्पल तो एक-दूसरे को भा गए थे. अखिलेश ने फिर जैक लगाया. कहां? अपनी दादी के पास. दादी मुरती देवी की तबियत खराब रहती थी. अखिलेश ने उनसे कहा, 'पापा को मना लो'. ना-नुकुर के बाद मुलायम मान गए. राजपूतों और यादवों के बीच का ये रिश्ता कई लोगों को धता बताते हुए हुआ. 1999 में अखिलेश और डिम्पल की शादी हुई. डिम्पल ने अपने राइडिंग बूट्स और ब्रीचेज परे रख दिए, और साड़ी अपना ली. फुटबॉल, क्रिकेट और कबड्डी खेलने वाली लड़की पति के ट्रेडिशनल परिवार में घुल-मिल गई, कुछ ना कहा. लेकिन शादी के दस साल बाद डिम्पल पॉलिटिक्स में उतरीं, 2012 में जीत कर स्टार कैम्पेनर बन गईं.
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पार्टी वर्कर कहते हैं, बहूजी से कैम्पेनिंग कराओ. बच्चे भी उनके बड़े फैन हैं. लेकिन डिम्पल ने द वीक को दिए गए इंटरव्यू में बताया, ‘मैं पॉलिटिक्स में हूं, पॉलिटिशियन नहीं हूं’. ये भी कि हर कोई उनके आस-पास जब अखिलेश को भैया बोलता है, वो खुद कन्फ्यूज होकर उन्हें भैया बोल देती हैं. मन है किसी बड़े बिजनेस में अपना खुद का नाम बनाने का. छोटी थीं तो बहुत मन था किसी बड़ी कम्पनी में काम करने का. कॉर्पोरेट दुनिया में.
डिम्पल यादव की पॉलिटिक्स उनके पति से अलग नहीं है. मुद्दों पर बात करने की बात आती है तो खूब बोलती हैं. सवाल वगैरह पूछने का रिकॉर्ड कुछ ख़ास रहा नहीं है उनका. जाके अटेंड कर आती हैं लोक सभा या राज्यसभा, जहां से भी सांसद होती हैं. लेकिन कैम्पेनिंग में उनको देखने लोग भलभला के उमड़ते हैं. पॉलिटिक्स में औरत होना अपने-आप में एक मुश्किल काम है. उसको संभाल लेती हैं. उनको लेकर गजब का ऑब्सेशन है इन्टरनेट पर. कोई उनको सिन्दूर लगाने की नसीहत देता है, कोई मंगलसूत्र पहनने की. कोई उनकी खूबसूरती में कसीदे पढ़ता है, कोई हिन्दू औरत बनने की सलाह देता है.
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‘भाभी’ शब्द का इन्टरनेट पर अलग मतलब है. यहां ये सिर्फ एक रिश्ते का नाम नहीं होता. किसी भी शादी-शुदा औरत को भाभी कह कर उससे रिश्ता जोड़ लिया जाता है. एक ऐसा रिश्ता जहां लोगों की समझ के हिसाब से मज़ाक किए जा सकते हैं. चुहल की जा सकती है. समाज के सामने खुले तौर पर उनके लिए अपनी पसंद दिखाई जा सकती है. किसी औरत को छेड़ने का ‘लाइसेंस’ ले लिया जाता है. डिम्पल ‘भाभी’ भी ‘कलेक्टिव देवर असोसिएशन’ के लिए एक इमेज हैं, उनके लिए सीटी बजती है, ताली बजती है, नारे लगते हैं. उनके बीच सिर पर पल्लू डाले, हौले से डिम्पल यादव निकल जाती हैं. पीछे केवल भीड़ रह जाती है. वो भीड़ जिसके लिए पॉलिटिक्स हो या साइंस, एंटरटेनमेंट हो या खेल, औरत एक रेफरेंस पॉइंट नहीं बल्कि एक चलता-फिरता रिमार्क है. उससे ज्यादा कुछ नहीं.
(इस आर्टिकल के कुछ हिस्सों के लिए सुनीता ऐरन की किताब ‘Akhilesh Yadav- Winds of Change’ के रेफरेंस साभार लिए गए हैं.)
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