गीता रॉय चौधरी: 15 साल की वो सिंगर जिसे शराब की लत न लगती तो लता-आशा को मौका ही न मिलता

सुहागन से विधवा तक: गीता दत्त.

21 साल की गीता, लाल बनारसी साड़ी में दुनिया की सबसे खूबसूरत दुल्हन लग रही थी. उसके चेहरे पर झीना लाल घूंघट था और शरीर पर ढेर सारे सोने के आभूषण. उस शाम गीता घोष रॉय चौधरी, गीता दत्त बन गई थीं.

gd-1_112318035518.jpgगीता दत्त की शादी से एक तस्वीर

अगले 21 साल तक गीता, गीता 'दत्त' ही रहीं. 42 की उम्र में प्रेम के अभाव में उनकी मौत हो गई. पर्चों में मौत की वजह लिखी गई, सिरोसिस ऑफ़ द लिवर. ज्यादा शराब और ड्रग्स के मेल ने उनके लिवर को खराब कर दिया था. जिस दौर में उनकी मौत हुई, वो उनके जीवन का सबसे अकेला दौर था.

"डायरेक्टर के तौर पर गुरुदत्त की पहली फिल्म 'बाज़ी' (1951) आने वाली थी. तब मैंने रिकॉर्डिंग स्टूडियो में गीता रॉय चौधरी को देखा था. वो 'तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले' रिकॉर्ड कर रही थी. वो 18 साल की थी और उस उम्र तक ही हर भाषा को मिलकार 900 गीत गा चुकी थी. सिर्फ उसकी आवाज़ ही नहीं थी जो आपके दिल में उतर जाती थी. उसकी सुंदरता कलेजा भेदने वाली थी. वो अजंता की मूरत जैसी थी: गहरा रंग और भव्य शरीर."

-ललिता लाजमी, गुरु दत्त की बहन

गीता और ललिता उस दिन से ही सहेलियां बन गईं. और इस तरह ललिता के घर गीता का आना-जाना शुरू हुआ. गीता, ललिता को लाली बुलाया करती थीं. और गीता की शादी के बाद तक ललिता ने गीता को कभी 'भाभी' नहीं कहा, उनके नाम से ही पुकारा.

गीता बॉम्बे में दादर में पूरे परिवार के साथ रहा करती थीं. जब भी रिकॉर्डिंग नहीं होती, वो लाली के घर चली जाया करतीं. घंटों हारमोनियम बजाकर गातीं. गुरु और लाली की मां वसंती उन्हें 'मेरा सुंदर सपना टूट गया' गाते हुए सुनतीं. गीता उस वक़्त नामी और सक्सेसफुल थीं. उस वक़्त लिमोजीन से चला करती थीं. वहीं गुरु दत्त बॉलीवुड में कुछ बड़ा करने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे.

lalita-lajmi_112318035628.jpgमशहूर पेंटर ललिता लाजमी आज भी गीता दत्त की दी हुई अंगूठी याद करती हैं.

लिमोजीन से चलने वाली गीता रॉय चौधरी

गीता के दादर वाले घर के ग्राउंड फ्लोर पर पंडित गौरीशंकर कत्थक नृत्यशाला चला करती थी. पंडित गौरीशंकर के दोस्त थे पंडित हनुमान प्रसाद. हनुमान कंपोजर थे. धार्मिक फिल्मों के लिए गीत बनाया करते थे. गीता के भाई मुकुल रॉय खुद फिल्मकार और कंपोजर थे.

पंडित हनुमान प्रसाद नृत्यशाला में आए हुए थे. उन्होंने गीता को गाते हुए सुना. तुरंत उनकी आवाज़ के मोहपाश में बंध गए. उस समय गीता का रिकॉर्ड पर गाने का कोई प्लान नहीं था. पंडित हनुमान प्रसाद ने गीता के पिता देवेंद्रनाथ चौधरी से गुजारिश की. कि वो पंडित हनुमान प्रसाद के एक रिकॉर्ड में अपनी बेटी को कोरस गाने की इजाज़त दें. फिल्म का नाम था 'भक्त प्रहलाद' और गीता को एक लाइन गानी थी. पर एक लाइन ही बहुत होती है जब आपकी आवाज को सचिन देव बर्मन सुन रहे हों. और इस तरह बर्मन ने उन्हें फिल्म 'दो भाई' में गाना ऑफर किया.

geeta-dutt-1946_112318035717.jpg15 साल की थीं गीता, जब प्रोफेशनल करियर शुरू किया.

गीता 15 साल की थीं. फिल्म के प्रड्यूसर चंदूलाल शाह बहुत डरे हुए थे. कि ये ज़रा सी बच्ची गाने के साथ न्याय कैसे करेगी. दादा बर्मन (सचिन देव को यही पुकारा जाता था) ने गीता से कहा, 'हम दोनों बंगाली हैं, देखना इज्जत रह जाए'. गीता ने पूरे कॉन्फिडेंस से सुर लगाए और उस फिल्म के बाद पूरा बॉलीवुड गीता की आवाज़ अपने गानों में चाहता था.

चार साल बाद गीता गुरु दत्त से मिलने वाली थीं. पर इन चार साल में वो देश की सबसे बड़ी महिला सिंगिंग स्टार बन चुकी थीं. उनके पास किस्मत, शोहरत, दौलत, तीनों ही थे. गुरु दत्त के पास कुछ भी नहीं था.

गुरु दत्त: चैप्टर 1

गुरु दत्त के घर की हालत कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी. उनके पिता क्लर्क थे. मां स्कूल टीचर. घर में 4 भाई और एक बहन थे. ललिता बताती हैं कि गुरु दत्त जब 'प्यासा' की स्क्रिप्ट लिख रहे थे, रिसोर्स के नाम पर उनके पास महज एक मेज और कुर्सी थी. बल्कि अपनी सभी स्क्रिप्ट्स उन्होंने उसी मेज पर लिखी थीं.

गीता अपने घर में सबसे ज्यादा कमाने वाली व्यक्ति थीं. गीता के घर वालों को गुरु कभी पसंद नहीं थे. पर गीता बहुत ही बड़े दिल वाली लड़की थी. और उतनी ही चार्मिंग. ललिता बताती हैं कि उस वक़्त गीता ने उन्हें सोने की अंगूठी दी थी. जो आज तक उनके पास है. गीता अक्सर अपनी महंगी साड़ियों की अलमारी खोलकर कहती, 'चुन लो जो भी पहनने का जी करे.' वो अपनी कार से सबको खूब घुमातीं. और अक्सर ललिता और गीता पवई, लोनावला और खंडाला में घूमती देखी जातीं.

गुरुदत्त ललिता के भाई थे और गीता से उनका मिलना कोई संयोग नहीं था. आज नहीं तो कल, वो मिलते ही. दोनों को प्यार जल्दी हुआ. मगर गीता के घर वालों को गुरुदत्त पसंद नहीं थे. नतीजतन उन्हें ललिता के हाथों प्रेमपत्रों की अदलाबदली करनी पड़ती. गीता को जब गुरुदत्त से मिलना होता, वो ललिता का बहाना लेकर जातीं.

मगर गीता के घर वाले उनके लिए बंगाली लड़का खोजने लगे. गुरुदत्त के लिए अब चीजें बर्दाश्त के बाहर होने लगीं. गुरुदत्त गीता को बदहवासी और बेचैनी में एक दिन जबरन हाजी मलंग की दरगाह लेकर गए. और जवाब मांगा. कि वो किसे चुनेंगी. गीता ने गुरुदत्त को चुन लिया. कुछ रातों बाद गीता ने अपने सांता क्रूज वाले बंगले की बालकनी में खड़े हुए ललिता को बताया, 'मैं तुम्हारे भाई से शादी करने वाली हूं.' वो रात पूरे चांद की थी.

gd-3_112318035811.jpg'मैं तुम्हारे भाई से शादी कर रही हूं', गीता ने फोन कर ललिता को बताया.

गुरु दत्त: चैप्टर 2

हर प्रेम का अंत शादी हो, जरूरी नहीं. हर प्रेम संबंध के लिए शादी करना ही सही विकल्प हो, ये भी जरूरी नहीं है. गीता और गुरुदत्त एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे. इतना, कि एक-दूसरे से दूर रहने ने ही दोनों को तोड़ दिया. पर दोनों साथ रहने के लिए भी नहीं बने थे. ललिता के मुताबिक़ दोनों का ईगो बहुत बड़ा था. दोनों बड़े आर्टिस्ट थे. अच्छे आर्टिस्ट भी थे. क्या यही दोनों के बीच आए रूखेपन की वजह थी? शायद हां. शायद नहीं.

गीता के बारे में कहा जाता है कि पजेसिव बहुत थीं. हमेशा गुरुदत्त को लेकर असुरक्षा की भावना से भर जाती थीं. ये बात गुरुदत्त को उनसे दूर करती रही. वो बच्चों को लेकर मायके चली जातीं. और गुरुदत्त उनसे वापस आने की विनती करते रहते. पर ये भी एक ओपिनियन-मिश्रित हाफ़-ट्रुथ है. दोनों के बीच आई दूरी की असल वजह क्या थी, कोई नहीं कह सकता.

guru-waheeda-sahib-biwi_112318040010.jpg'प्यासा' में 'गुलाब' का किरदार वहीदा का पहला बड़ा रोल था.

गीता एक्टिंग करना चाहती थीं. गुरु दत्त उन्हें एक्ट्रेस के तौर पर लेकर फिल्म 'गौरी' बना भी रहे थे. मगर दोनों के बीच तकलीफें इतनी बढ़ गईं कि गीता ने फिल्म छोड़ दी. फिल्म अधूरी छूट गई. कहा गया कि उस समय गीता का फिल्म से बाहर निकलना, गुरुदत्त के जीवन से बाहर निकलने का रूपक था. हालांकि इसके बाद भी गुरुदत्त और गीता दत्त प्रोफेशनल तौर पर साथ काम करते रहे. शादी और उसके बाद के इमोशनल अलगाव के बाद भी लगभग हमेशा ही गीता ने गुरुदत्त के लिए गाया. इनमें ये फ़िल्में शामिल रहीं:

1954: आर पार

1955: मिस्टर एंड मिसेज़ 55

1956: CID

1957: प्यासा

1959: कागज़ के फूल

1962: साहिब बीबी और ग़ुलाम

'CID', 'प्यासा', 'कागज़ के फूल' और 'साहिब बीवी और गुलाम' में गीता ने वहीदा रहमान के लिए प्लेबैक किया. जिनके साथ गुरुदत्त का अफेयर होने की हवा थी. इस बात ने गीता और गुरुदत्त के रिश्ते को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई. एक पक्ष ये है कि गुरुदत्त वहीदा के बेहद करीब थे और इस बात ने गीता को तोड़ दिया. दूसरा पक्ष ये है कि जिसे गीता ने अफेयर समझा वो बस गुरुदत्त के लिए प्रोफेशनल दोस्ती थी. कि गुरुदत्त के लिए वहीदा 'म्यूज' यानी एक कलाकार की प्रेरणा भर थीं.

guru-waheeda-2_112318040125.jpgभूतनाथ और जबा, 'साहब बीवी और गुलाम'

पर गीता उदास थीं. और गुरुदत्त भी उदास थे. 'साहब, बीवी और गुलाम' ख़त्म होने तक वहीदा भी गुरुदत्त से कट चुकी थीं. कहा जाता है कि आखिरी के कुछ सीन शूट के करने के लिए गुरुदत्त को रिक्वेस्ट करनी पड़ी, जिससे कम से कम फिल्म पूरी हो जाए.

गुरुदत्त: चैप्टर 3

दो बार सुसाइड अटेम्प्ट कर चुके गुरुदत्त, 1964 में मृत पाए गए. ललिता कहती हैं कि गुरुदत्त की मौत के लिए न ही गीता को दोष देना ठीक है और न ही वहीदा को. लोग कहते हैं गुरु दत्त प्रेम में मर गए. ये सच नहीं है. गुरु दत्त की सुसाइडल टेंडेंसीज उनके पास्ट की देन थीं. ललिता के मुताबिक़ उनके चाचा भी सुसाइडल थे. और ये एक जेनेटिक मानसिक अवस्था थी. इसके अलावा गुरुदत्त का बचपन कलह देखते हुए बीता था. उनके माता-पिटा अक्सर लड़ते रहते थे.

एक शाम पहले उन्होंने गीता को फोन कर बच्चों से मिलने की इच्छा जताई थी. गीता ने मना कर दिया था. कुछ लोग कहते हैं कि इसीलिए गुरुदत्त ने सुसाइड किया. पर असल वजह ये थी कि गुरुदत्त शराब के साथ नींद की गोलियां लिया करते थे. ये एक बहुत बुरा कॉम्बिनेशन है. जिस रात उनकी मौत हुई, उन्हेंने ये कॉम्बिनेशन खाली पेट लिया हुआ था. सुसाइड करना शायद उनका लक्ष्य नहीं था. पर उनकी आदतें ऐसी थीं कि वो बचे नहीं.

widowed-geeta_112318040222.jpgमृत पति की तस्वीर के साथ. क्रेडिट: geetadutt.com

गीता पूरी तरह से टूट गईं. अगले एक साल वो परंपरागत बंगाली विधवा की तरह रहीं. पर इस दुख का कोई अंत नहीं था. वो शराब पीने लगीं. नींद की गोलियों के साथ मिलाकर. ठीक अपने मृत पति की तरह. ललिता बताती हैं:

'गीता के आखिरी दिनों में मैं उससे मिली थी. वो हमेशा नशे में रहती थी. शराब की छोटी-छोटी बोतलें उसकी अलमारी, बैग, बाथरूम, हर जगह छिपी रहती थीं.'

गीता की जब मौत हुई, उनके पूरे शरीर में ट्यूब्स घुसी हुई थीं. उनका लिवर फेल हो चुका था. नाक और कान से खून बह रहा था. दीवार पर उनके खून के छींटे लगे थे. ललिता लिखती हैं:

'मैं हमेशा गीता को ऐसी लड़की की तरह याद रखना पसंद करूंगी जो सुंदर बनारसी साड़ियां पहनती थी और जिसके ड्रेसिंग टेबल पर सजी चूड़ियां उसके जीवन को संगीतमय कर देती थीं.'

 

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group