सुहासिनी मुले: जिन्हें आपने 'लगान' में भुवन की मम्मी के तौर पर जाना, असल में कमाल की औरत हैं

60 की उम्र के बाद की थी पहली शादी और सब चौंक गए थे.

जानिए एक एक्ट्रेस के अलावा क्या-क्या हैं सुहासिनी मुले.

'मैंने कभी शादियों पर विश्वास नहीं किया. मेरा भरोसा था कि शादियां या तो टूट जाती हैं. या किसी बुरे और बोरिंग मोड़ पर आकर रुक जाती हैं.'

कई साल लग गए, सुहासिनी को ये मानने में कि शादियां सुखद भी हो सकती हैं. और जबतक उन्हें इस बात का भरोसा नहीं हो गया कि शादी उनकी निजी बेहतरी के लिए है, उन्होंने शादी नहीं की. जब की, तो ऐसी उम्र में की, कि पंडित अपनी गद्दी पर उछल पड़े: 'आप दोनों हैं दूल्हा-दुल्हन?!'

सुहासिनी ने 61 की उम्र में शादी कर दुनिया को न सिर्फ ये दिखाया कि समाज के बनाए फालतू नियमों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. बल्कि ये भी कि प्रेम और साथ का अधिकार सबको है. इसे आप उम्र के बंधन में नहीं बांध सकते.

मगर 65 की उम्र में लिया गया ये फैसला ही वो एकमात्र फैसला नहीं जो सुहासिनी मुले को एक ऑडनारी बनाता है. उनके जीवन पर एक नज़र डालते हैं.

suhasini-wedding_112018042135.jpgअशोक गुर्टू एक साइंटिस्ट हैं. सुहासिनी उनसे फेसबुक पर मिली थीं.

सुहासिनी 3 साल की थीं जब पिता गुज़रे. और उनकी मां दोहरी भूमिका में आ गईं. बॉम्बे में पली-बढीं. फिल्मों का खूब शौक था. पर शादी करने के बाद पटना आ गईं. आज भी मुंबई और पटना में कितना फर्क है, ये बताने की ज़रुरत नहीं है. तो उन्हें लगता कि किसी नए ग्रह पर आ गई हैं.

हां पर एक बात अच्छी थी. छोटा शहर होने के कारण कोई अंग्रेजी फ़िल्में नहीं देखता था. और विजया को आसानी से सुबह के टिकेट और खाली सिनेमाघर मिल जाते थे. मौका देख उन्होंने BA में एडमिशन भी ले लिया. विजया को स्कॉलरशिप मिली और वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीड्स (यूके) से पढ़ने चली गईं. दुनिया भर में बन रही फिल्मों पर ढेर सारी जानकारी जुटाई. फिर पटना वापस आ गईं.

सुहासिनी का जन्म पटना में ही हुआ. मानों मां के गर्भ में वो फिल्मों की ट्रेनिंग ले रही थीं. फिर वो 3 साल की हुईं तो पिता गुज़र गए. और मां विजया को नौकरी करने के लिए दिल्ली आना पड़ा. पोस्टिंग हुई थी एजुकेशन मिनिस्ट्री में.

vijaya-colaage_112018042345.jpgविजया मुले (बाईं तस्वीर में) इंदिरा गांधी के साथ. दाहिनी तस्वीर में उस वक़्त की प्रेसिडेंट प्रतिभा पाटिल से अवॉर्ड लेते हुए.

सुहासिनी ने बड़े होते हुए अपनी सिंगल मां को काम करते देखा. साथ ही फिल्मों के लिए उनका जूनून देखा. सत्यजीत रे उस समय फ़िल्में बना रहे थे. और फिल्म थ्योरी में नए अध्याय जोड़ रहे थे. जो आने वाले कई साल तक सिनेमा की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स पढ़ने वाले थे. सत्यजीत के साथ विजया ने 'फिल्म सोसाइटी ऑफ़ इंडिया' की नींव रखी.

कैमरे से पहला वास्ता

सुहासिनी 15 साल की थीं. उन्हें 'पेअर्स' साबुन के विज्ञापन में कास्ट किया गया. उसी समय उन्हें मृणाल सेन ने नोटिस किया और तय किया कि अगली फिल्म में उन्हें कास्ट करना है. मृणाल ने सुहासिनी को 'भुवन शोम' में उत्पल दत्त के साथ लीड रोल में लिया. 

उत्पल दत्त, सुहासिनी से 20 साल सीनियर थे. और उस समय मंझे हुए कलाकारों में गिने जाते थे. मगर फिल्म को देखने वाले कहते हैं कि सुहासिनी बिलकुल नेचुरल लगती हैं. रंगनाथ सिंह के मुताबिक़, 'इस फ़िल्म में उन्हें देखना दो कारणों से काफी सुखद अनुभव रहा. पहला, इस फ़िल्म में वो बेहद ख़ूबसूरत लगीं हैं. दूसरा, उन्होंने गांव की भोली लड़की की भूमिका को बख़ूबी निभाया है. उत्पल दत्त जैसे चोटी के अभिनेता का साथ उन्होंने जिस कुशलता से निभाया है वो क़ाबिले-तारीफ़ है. उन्हें देखकर कहीं से नहीं लगता कि यह उनकी पहली फ़िल्म थी. सुहासिनी फ़िल्म में अपनी सहज अदाकारी और मासूमियत से नूतन की याद दिलाती हैं.'

suhasini-bhuvan_112018042441.jpgभुवन शोम से एक स्टिल (1)

suhasini-bhuvan-1_112018042542.jpgभुवन शोम से एक स्टिल (2)

फिल्म में उत्पल दत्त एक अफसर बने हैं. जो गांव आकर भोली-भली लड़की के प्रेम में पड़ जाता है. इसी ग्रामीण लड़की का किरदार सुहासिनी ने किया था. और उनके किरदार को बेहद पसंद भी किया गया था. मगर इस सक्सेस ने सुहासिनी को उनके प्लान से नहीं भटकाया.

डाक्यूमेंट्री यानी पहला प्यार

'फिल्म को हमेशा सच्चा होना चाहिए. चाहे बनाने वाला उसे कविता की तरह बनाए, पर्सनल कहानी की तरह बनाए या फैंटसी की तरह. पर उसकी जड़ें हमेशा सच्चाई में होनी चाहिए.'

-सुहासिनी, एक इंटरव्यू में (2003)

सुहासिनी भुवन शोम के बाद कैनेडा में पढ़ाई करने चली गई थीं. कमाल की बात ये है कि सुहासिनी एग्रीकल्चर विभाग में सॉइल और माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई करने गई थीं. पढ़ाई पूरी भी की. फिर फैसला लिया कि सिनेमा के बारे में तो पढ़ना ही है. उसी यूनिवर्सिटी में मास कम्युनिकेशन और फिल्म की पढ़ाई शुरू कर दी. यहां उनके गुरु रहे जॉन ग्रायरसन.

जॉन ग्रायरसन को ब्रिटिश और कैनेडियन दुनिया में 'फादर ऑफ़ डाक्यूमेंट्री' कहा जाता है. क्योंकि दुनिया में डाक्यूमेंट्री न सिर्फ वो लेकर आए, बल्कि 'डाक्यूमेंट्री' शब्द उन्होंने ही सबसे पहले इस्तेमाल किया था.

ज़ाहिर सी बात है, डाक्यूमेंट्री बनाना सुहासिनी का पहला प्यार रहा. उन्होंने 60 से ज्यादा डाक्यूमेंट्री बनाई हैं. जीवन में पाए पांच नेशनल अवॉर्ड्स में से सिर्फ एक है जो सुहासिनी को एक्टिंग के लिए मिला है. बाकी चार डाक्यूमेंट्री के लिए मिले हैं.

उनकी डाक्यूमेंट्रीज में भागलपुर में कैदियों को एसिड डालकर अंधा करने वाली घटना शामिल है ('ऐन इंडियन स्टोरी'). साथ ही भोपाल गैस ट्रेजेडी पर भी उन्होंने फिल्म ('बियॉन्ड जेनोसाइड') बनाई है.

suhasini-dil-chahta-hai_112018042913.jpg'दिल चाहता है'

suhasini-lagaan_112018042931.jpg'लगान'

jodha-akbar-suhasini_112018043001.jpg'जोधा अकबर'

फिल्मों में वापसी

कनाडा से वापस आने के बाद पहली नौकरी दूरदर्शन में लगी. उसके बाद FTII में. दोनों ही छोड़ दीं. कहती थीं, 'मैं ऐसी जगह काम नहीं कर सकती जहां जब दिनभर कुर्सियां तोड़ते हैं. कोई काम नहीं करते. जहां क्रिएटिविटी, ब्यूरोक्रेसी के बोझ के तले दबी रह जाती है. '

सुहासिनी फिर फिल्मों में वापस आईं. मगर एक्टर नहीं, असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर. बॉलीवुड में ऐसे कई एक्टर्स हैं जिन्होंने अपना करियर असिस्टेंट डायरेक्टर्स के तौर पर शुरू किया है. मगर अधिकतर पुरुष हैं. औरत का काम हीरो की हिरोइन होना माना जाता आया है, खासकर मेनस्ट्रीम सिनेमा में. सोनम कपूर और डेज़ी शाह एकाध ऐसे नाम हैं जो गूगल पर सर्च करने पर मिल जाते हैं. वरना महिला एक्टर्स से इस तरह की मेहनत अपेक्षित ही नहीं है. उनसे बहुत कम ही पूछा जाता है कि फलां रोल के लिए आपने खुद को कैसे तैयार किया.

सुहासिनी ने सत्यजीत रे और मृणाल सेन को लंबे समय तक असिस्ट किया. सिनेमा की बारीकियों से खुद को परिचित करवाया. पहली फिल्म के बाद दूसरी फिल्म 3 साल के ब्रेक के बाद आई. और तीसरी 8 साल बाद.

लीड एक्टर के तौर पर उनकी दूसरी फिल्म असमिया भाषा में थी, 'अपरूपा'. 'अपरूपा' उन फिल्मों में से एक थी जो उस वक़्त NFDC (नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन) ऑफ़ इंडिया के बैनर में बन रही थीं. NFDC का लक्ष्य था ज्यादा से ज्यादा भारतीय सिनेमा को प्रमोट करना. NFDC सत्यजीत रे की पीढ़ी से केतन मेहता, फिर सुधीर मिश्रा और उसके बाद मीरा नायर जैसे डायरेक्टर्स के साथ पैरेलल सिनेमा बनाता रहा है.

suhasini-aparoopa-1_112018042804.jpg'अपरूपा' से एक स्टिल (1)

suhasini-aparoopa-2_112018042825.jpg'अपरूपा' से एक स्टिल (2)

असमिया-अंग्रेजी लेखक आरुनी कश्यप लिखते हैं, 'मुझे याद नहीं मैंने पहली बार 'अपरूपा' कब देखी थी. पर फिल्म का नाम सुनते ही उषा मंगेशकर की आवाज़ और दरवाज़ा खोलती युवा सुहासिनी की शक्ल दिमाग में आती है.' 'अपरूपा' ने अगले साल 'बेस्ट रीजनल फिल्म' का नेशनल अवॉर्ड जीता.

सुहासिनी ने 40 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है. 20 से ज्यादा टीवी सीरियल किए हैं. और घर-घर में उनकी शक्ल पहचानी जाती है.

एक इंटरव्यू में उन्होंने इंडस्ट्री में उम्रदराज़ एक्ट्रेसेज के प्रति होने वाले सेक्सिज्म की ओर इशारा करते हुए कहा था, 'मेरी उम्र की औरतों को मां का ही रोल मिलता है. और मैं निरूपा रॉय की तरह याद नहीं रखी जाना चाहती.'

इतने साल शादी क्यों नहीं की

सुहासिनी का भरोसा शादियों पर था ही नहीं. एकाध रिपोर्ट्स कहती हैं कि सुहासिनी लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में थीं. और 90 के दशक में उनका ब्रेकअप हो गया. सुहासिनी ने एक इंटरव्यू में बताया था, 'मुझे लगता था लोग बच्चे पैदा करने के लिए शादी करते हैं. बच्चे पैदा करने का मेरा कोई प्लान नहीं था. इसलिए मैंने कभी शादी के बारे में नहीं सोचा.'

शादी करने के पहले सुहासिनी लगभग 20 साल सिंगल रहीं. उन्होंने एक इंटरव्यू में ये भी कहा था कि पति और बच्चों के बारे में वो सोच भी लें, तो समाज ऐसा है कि कभी उनकी शादी को बराबरी से नहीं चलने देगा.

सुहासिनी, अशोक गुर्टू (अब उनके पति) से फेसबुक पर मिली थीं. चैट करने में उन्हें अच्छा लगता था. अशोक ने अपनी पहले पत्नी को कैंसर के हाथों खो दिया था. वो एक पार्टनर की तलाश में थे, जिसके साथ बाकी का जीवन बिताया जा सके. सुहासिनी को आइडिया लगा कि अशोक शादी करना चाहते हैं तो वो कटने लगीं.

फिर सुहासिनी ने एक आर्टिकल पढ़ा. जो अशोक ने अपनी एक्स-वाइफ के लिए लिखा था. उनके भाव और मृत पत्नी के लिए प्रेम देखकर सुहासिनी को लगा कि इस रिश्ते को एक मौका दिया जा सकता है. अशोक जब सुहासिनी की मां से मिले तो बोले, 'अकेले ये भी रह लेगी. मैं भी रह लूंगा. मगर साथ रहने का विकप्ल है तो क्यों न साथ रहें?'

सुहासिनी ने मुताबिक़ दोस्त पूछते थे कि क्या वो नशे में हैं. जो इस उम्र में शादी की बात कर रही हैं. यहां तक कि जब उनकी शादी रजिस्टर होनी थी, तो बांद्रा कोर्ट में सब भौंचक्के रह गए थे.

सुहासिनी और अशोक मुंबई में सेटल हैं. आज उनकी उम्र 68 हो गई है. पर एक औरत के तौर पर वो आज किसी 25 साल की युवा एक्ट्रेस से ज्यादा इंडिपेंडेंट, सुलझी हुई, निडर और ताकतवर मालूम पड़ती हैं.

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group