क्या है 'जिनीवा कन्वेंशन', यानी नियमों की वो लिस्ट जो पाक में कमांडर अभिनंदन को सुरक्षित रख रही है

भारत और पाकिस्तान, दोनों ही ने 1949 तक हुए बदलावों पर सहमति दर्ज कराई है.

27 फरवरी. भारत के एक मिग 21 के पाकिस्तान में क्रैश होने की खबर आई. पाकिस्तान ने कहा दो पायलट कब्जे में हैं. भारत की तरफ से दोपहर में प्रेस वार्ता हुई. बताया गया एक पायलट मिसिंग है हमारा. बाद में कन्फर्मेशन मिला. अभिनंदन वर्धमान. विंग कमांडर. पाकिस्तान की सीमा में थे. उनके विडियो वायरल हुए. खून से सना चेहरा वायरल हुआ.

अचानक से हर जगह जिनीवा कन्वेंशन की बात होनी शुरू हो गई. सोशल मीडिया पर भी लोग इसकी दुहाई देने लगे. कहने लगे, जिनीवा कन्वेंशन के तहत पाकिस्तान को हमारे पायलट को लौटाना होगा. वो उनको कुछ नहीं कर सकते.

और भी बहुत कुछ.

लेकिन आखिर ये जिनीवा कन्वेंशन है क्या जिसकी बात सब लोग कर रहे हैं. क्या है इसमें? क्या प्रावधान हैं? क्यों ये ज़रूरी है? क्या भारत-पाकिस्तान इसके हिस्सेदार हैं? पढ़िए इसके बारे में यहां:

abhi-2-750x500_022819024428.jpgतस्वीर: ट्विटर

साल था 1859. युद्ध चल रहा था. सोल्फेरिनो नाम की जगह में. फ्रांस और सार्डीनिया ने ऑस्ट्रिया को हराया था. उस युद्ध के बाद स्विटज़रलैंड के बिजनेसमैन हेनरी ड्यूनंट युद्ध में घायल सिपाहियों से मिलने गए. उनकी दुर्गति देखकर कलेजा मुंह को आ गया. वहां से आने के बाद हेनरी ने एक किताब लिखी. उसकी भयावहता पर. ये भी प्रस्ताव दिया कि युद्ध के समय होने वाली ज्यादतियों को रोकने के लिए सभी देशों को मिलकर आगे आना चाहिए. अगस्त 1864 में इस तरह पहले जिनीवा कन्वेंशन का जन्म हुआ. 1901 में इसके लिए हेनरी ड्यूनंट को फ्रेडरिक पैसे के साथ संयुक्त नोबेल पीस प्राइज भी मिला.

लेकिन इस कन्वेंशन से ना तो प्रथम विश्व युद्ध में फर्क पड़ा, ना ही द्वितीय विश्व युद्ध में. आखिरकार 1949 में जब दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म हुए 4 साल हो गए थे, तब जिनीवा कन्वेशन के नियम कानून अपडेट हुए.

2005 तक इसमें अपडेट्स हुए. प्रोटोकॉल 1 और 2 जोड़ा गया. 2005 में सिम्बल ऑफ रेड क्रॉस के साथ रेड क्रिस्टल को भी यूनिवर्सल सहायता के प्रतीक के रूप में अपनाया गया.

इस वक़्त 196 के करीब देश इस कन्वेशन को फॉलो कर रहे हैं. अब तक इसमें चार कन्वेंशन हो चुके हैं. पहले कन्वेंशन में सिर्फ युद्ध में घायल/बीमार लोगों के इलाज और सुरक्षा पर फोकस कर रहा था. दूसरे कन्वेंशन में इसमें समुद्र में जहाज से भागे/अटके लोगों की सुरक्षा का प्रावधान जोड़ा गया. तीसरे कन्वेंशन में इसमें युद्धबंदी यानी प्रिजनर ऑफ वॉर की सुरक्षा को जोड़ा गया. चौथे कन्वेंशन में युद्ध के दौरान सिविलियंस की सुरक्षा का प्रावधान जोड़ा गया. इसके सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट्स हैं:

geneva-con-2_022819024508.jpgजिनीवा में हुई कन्वेंशन का एक दृश्य. तस्वीर: विकिमीडिया

  1. रेड क्रॉस को चोटिल/घायल/बीमार लोगों की मदद का हक होगा.
  2. टूटे जहाज़ों/नावों के लोगों को बचाया जाएगा, भले ही वो दुश्मन की साइड के ही क्यों न हों
  3. हॉस्पिटल की शिप्स को युद्ध के काम में ना तो लाया जाएगा, ना ही उन पर अटैक किया जाएगा
  4. घायल और बीमार लोगों की हत्या नहीं होगी, उनको टॉर्चर नहीं किया जाएगा, उन पर बायोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट नहीं किए जाएंगे
  5. कैद किये गए धार्मिक नेता तुरंत छोड़े जाएंगे
  6. युद्धबंदियों को टॉर्चर नहीं किया जाएगा
  7. कैद कर लिए जाने की स्थिति में युद्धबंदी को नाम, रैंक, जन्म की तारीख और सीरियल नंबर ही बताना होगा.
  8. उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा.
  9. उनको रहने की जगह और पर्याप्त भोजन दिया जाएगा.
  10. उनको अपने परिवार के विजिट करने और उनसे खान-पान/बाक़ी ज़रूरत का सामान लेने की आज़ादी होगी .
  11. रेड क्रॉस उनसे मिलने और उनकी हालत पर नज़र रखने के लिए कभी भी विजिट कर सकता है.
  12. सभी सिविलियंस को मेडिकल केयर मिलनी चाहिए जैसी ज़रूरत हो, और उनके रोजाना के कामों में कोई दखल नहीं पड़ना चाहिए.

red-cross_022819024611.jpgरेड क्रॉस संस्था का मुख्य काम युद्ध में घायल /बीमार लोगों की मदद करना था. तस्वीर: विकिमीडिया

भारत और पाकिस्तान दोनों ही जिनीवा कन्वेंशन में 1949 तक जो बदलाव हुए थे उन सभी पर सहमति दर्ज कराई है. हालांकि इस वक़्त भारत और पाकिस्तान के बीच पारंपरिक परिभाषा वाला युद्ध नहीं चल रहा है. लेकिन फिर भी परिस्थितियां नाज़ुक हैं. ऐसे में विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के साथ हो रहा बर्ताव इंटरनेशनल प्लेटफ़ॉर्म पर पाकिस्तान को अपनी इमेज बनाने का एक मौका देगा.

अगर अभिनंदन को वो सभी सुविधाएं दी जाती हैं जो एक प्रिजनर ऑफ वॉर के लिए जिनीवा कन्वेंशन में सहमति से पास हो चुकी हैं, तो उनके सकुशल लौट आने की प्रक्रिया शुरू होने में समय नहीं लगेगा. और उम्मीद भी यही है. प्रिजनर ऑफ वॉर को कुछ खास छूट और सहूलियतें मिलती हैं. उसे आम दुश्मन की तरह नहीं ट्रीट किया जाता. प्रताड़ित नहीं किया जाता.

इसके लिए पहली बार गाइडलाइंस बनी थीं 1929 में हुए जिनीवा  कन्वेंशन में. फिर 1949 में हुए तीसरे जिनीवा कन्वेंशन में इसको रिवाइज किया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध में हुई गलतियों से सीखते हुए. हालांकि ये प्रिजनर ऑफ वॉर का स्टेटस सबको नहीं मिलता. ये सिर्फ उन 174 राष्ट्रों पर लागू होता है, जिन्होंने 1977 में हुए फर्स्ट ऐडिशनल प्रोटोकॉल को माना था.

geneva-con_022819024655.jpgजिनीवा कन्वेंशन पर चल रही बहस का कोई सल्यूशन फिलहाल नज़र नहीं आ रहा.

लेकिन इस मामले में सबसे ज़रूरी बात ये ध्यान में रखने वाली है कि इस वक़्त अभिनंदन को प्रिजनर ऑफ वॉर का दर्जा दिया जाएगा या नहीं इस पर सहमति नहीं  बन पाई है. भारत और पाकिस्तान इस वक़्त युद्ध में शामिल नहीं हैं. इसलिए जिनीवा कन्वेंशन के नियम यहां लागू नहीं होंगे, ऐसा एक्सपर्ट्स का मानना है. अब ये इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों देश आपसी सहमति से किस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं.

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देखें विडियो:

 

 

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