ऐ हीरो, हाथ छोड़!
सिनेमा से परे वो जो हमने देखा नहीं
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए.
- केदारनाथ सिंह
दुनिया में जिस इंसान ने प्रेम की परिभाषा लिखी होगी, उसने शायद किसी को हाथ बढ़ाते हुए देख लिया होगा. इंसानी शरीर अपनी खुद की भाषा में बात करता है. उसे अनुवाद की ज़रूरत नहीं होती. उसे बस देखा, महसूस किया, और जिया जा सकता है. जिसमें से एक है, आगे बढ़कर किसी का हाथ थाम लेना.
उंगलियों के बीच. हथेलियों का एक दूसरे के बरक्स उलझे रहना. ऐसा कि साथ चलते चलते कदम भी उसी तरन्नुम में आ जाएं. प्रेम को संगीत यूं ही तो नहीं कहा जाता.
लेकिन हाथ पकड़ना और उसे थाम लेना, दोनों के बीच का फासला बहुत लंबा होता है. कभी-कभी ख़त्म नहीं होता.
सांकेतिक तस्वीर: ट्विटर
शादी को पाणिग्रहण भी कहा जाता है. इसका मतलब ही होता है हाथ थामने का संस्कार. यानी जीवन भर के लिए किसी को हाथ थामकर चलने का वादा. रोमांटिसाइज करने से डर लगता है, लेकिन शादी की सबसे खूबसूरत बातों में से एक यही लगती है. किसी का हाथ थामने का वादा. उम्र भर का वादा. निभाने का वादा. चले न चले बाद की बात. पर उस पल में, किसी से वादा कर सकने की कूवत ही सबसे ज़रूरी लगती है.
हाथ थामना कोई छोटी बात नहीं होती.
अमेरिका के राष्ट्रपति हैं. डॉनल्ड ट्रंप. पत्नी, मेलानिया ट्रंप. अधिकतर जगहों पर उनके साथ ही रहती हैं. साथ चलते चलते कई बार ट्रंप मेलानिया का हाथ पकड़ने की कोशिश करते दिखते हैं. मेलानिया कई बार उनका हाथ झटकती पाई गई हैं. बॉडी लैंग्वेज एक्सपर्ट्स ने कहा, इसका मतलब है कि वो ट्रंप के करीब महसूस नहीं करतीं. पब्लिक में इस तरह साथ दिखने में अनकम्फ़र्टेबल हैं.
तस्वीर: ट्विटर
थोड़ा घर के करीब आते हैं. यहां. अपने देस.
बॉलीवुड ने प्यार को लेकर जितना कुछ कहा और दिखाया है, वो किसी भी पीढ़ी को अपने इन्फ्लुएंस में लेने के लिए काफी है. जब राहुल ने कहा कि प्यार दोस्ती है, लाखों युवा एक साथ इस लाइन को रट गए थे. फ्रेंडशिप डे के बहाने दिल की बातें छुप छुप कर पहुंचाने की जुगत में भिड़ गए थे. जब राज मल्होत्रा ने ‘चली चली फिर चली चली’ पर पैर थिरकाए, तो नए जमाने को उसका ‘जोहराजबीं’ गाना मिल गया. जिस पर मां-बाप भी शर्म छोड़कर थिरक सकते थे. करवाचौथ एक छोटे से हिस्से में मनाए जाने वाले त्यौहार की जगह राष्ट्रीय सेलिब्रेशन बन गया. मेहंदी वालों को एक और दिन मिल गया.
जब चलती ट्रेन को देखकर चौधरी बलदेव सिंह ने सिमरन का हाथ छोड़ दिया. और कहा, ‘जा सिमरन, जी ले अपनी जिंदगी’. सिमरन का दौड़ना. स्क्रीन के सामने बैठे लोगों का कलेजा मुंह को आ जाना. और आखिर में दौड़ती हुई सिमरन का राज का हाथ थाम लेना. प्रेम की अमिट निशानी बनने वाला क्षण था वो.
इसीलिए तो जब कोई किसी का हाथ थामने में कोताही करता है तो आंखें जल जाती हैं.
'नाम शबाना' फिल्म में एक सीन है. शबाना अपने केस के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है. बहुत क्रिटिकल सीन है. कुछ भी गड़बड़ हुई तो पूरी ट्रेनिंग और मेहनत बर्बाद. उसी समय रणवीर (मनोज वाजपेयी) भेजते हैं उनका टॉप का अफसर. कौन? अजय (अक्षय कुमार). उसके बाद शुरू होता है शबाना का कोहनी से पकड़ कर पूरे अस्पताल में घसीटा जाना.
तस्वीर: ट्विटर
क्योंकि दिखाना ये ज़रूरी है. कि कंट्रोल में कौन है. कि यहां हाथ पकड़ने की पॉलिटिक्स प्रेम की नहीं है. अजय की शक्ल पर चिंता नहीं है. शबाना के लिए ख़याल उसके लिए प्रायोरिटी नहीं है. इसीलिए वो अपने से जूनियर को सामान की तरह घसीट सकता है. यहां बराबरी नहीं है. दो कॉमरेड एक मिशन पर नहीं हैं. यहां हाथ पकड़ने का मतलब साथ देना नहीं है. एक ज़रूरत है, जिसे निभाना ही पड़ेगा. मजबूरी है. दंभ है.
हाथ थामने में दंभ होता है, तो वो हथकड़ी की तरह महसूस होता है.
वैनेसा वैन एडवर्ड्स बॉडी लैंग्वेज समझती हैं, समझाती हैं. इस पर कई लेक्चर हैं उनके. बॉडी लैंग्वेज यानी आपके शरीर की भाषा. जैसे नर्वस होने पर नाखून चबाना. पैर हिलाना. आपके खड़े होने/बैठने का तरीका, वगैरह वगैरह. उनका कहना है कि हाथ थामना किसी भी रोमांटिक रिश्ते की शुरूआती, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक है. कोई किस तरह आपका हाथ पकड़ता है, ये आपके उस व्यक्ति के साथ रिश्ते कैसे हैं, ये बता देता है.
कई जगह ढूंढा. पर हाथ थामने का कमाल सीन नहीं दिखा. जो आखिरी देखा, वो सैराट में देखा. टाइटल ट्रैक चलते हुए. जब पर्श्या और आर्ची खेत में साथ बैठे होते हैं. एक दूसरे को देखते हैं. और वो मौन सहमति देती हुई उसके हाथ के पास अपना हाथ रख देती है.
फिल्म सैराट क टाइटल ट्रैक का वो दृश्य जो बेहद मासूम, बेहद सुंदर है.
फिल्मों में ऐसे कोमल दृश्य और ज़रूरी हैं. ऐसे हल्के क्षण जो बिना बोले बहुत कुछ कह जाएं. एक दूसरे के हाथों में उलझी उंगलियां सिर्फ बिस्तर के ऊपर लिहाफ से बाहर ना झांकें. सालों से इनको सेक्स का यूफेमिज्म बना कर छोड़ दिया गया है. उन्हें वहां से निकाल लाने की ज़रूरत है. जिस भोलेपन से एक बच्चा अपनी मां की उंगली पकड़ कर ठुनक ठुनक चलता है, वैसे ही कुछ पल हमें स्क्रीन पर हाथों की अठखेलियों के लिए छोड़ देने चाहिए. बस कुछ पल.
जैसे कुछ पल गली बॉय में मुराद और सफीना के एक-दूसरे की ओर बढ़े हाथ दिख जाते हैं. एक दूसरे को छूने की कोशिश करते हुए. दूरियों से बेपरवाह.
और जब तक कोई किसी का हाथ थामने के लायक नहीं बन जाता, उन्हें हक़ जताने का कोई हक़ नहीं. ऐसों से हाथ छुड़ाकर आगे निकल जाने में ही भलाई है. बेहतरी है. क्योंकि जो हाथ थामना नहीं जानते, वो रिश्ते नहीं निभा सकते. वो सिनेमा कतई अच्छा सिनेमा नहीं हो सकता जिसमें दो प्रेम करने वाले बिना बोले एक दूसरे की आंखों में बेजार हुए बिना देख ना सकें. जिसमें सबसे करीबी पल बिना एक दूसरे के करीब आए बिताए ना जा सकें.
जिसमें गाया न जा सके
मेरे हाथ में तेरा हाथ हो
सारी जन्नतें मेरे साथ हों.
सिनेमा हो तो ऐसा हो. वरना होने को तो दुनिया में बहुत सी चीज़ें हैं ही.
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