टीवी पर कभी लड़कियों के अंडरवियर के ऐड क्यों नहीं आते?
लड़कों के अंडरवियर-बनियान के ऐड तो खूब आते हैं. लड़की के अंतर्वस्त्र ही क्यों टैबू हैं?
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) के ब्रॉडकास्ट इंडिया सर्वे के मुताबिक भारत के 66 परसेंट घरों में टीवी है. यानी देश की आधी से ज्यादा आबादी टीवी देखती है. इसके बाद नंबर आता है, इंटरनेट, अखबार और मैगजीन वगैरह का. इसीलिए किसी भी प्रोडक्ट के विज्ञापनों के लिए सबसे बढ़िया प्लेटफॉर्म टेलीविजन है. चैनल्स के लिए कमाई का भी सबसे स्ट्रॉन्ग सोर्स.
10 मिनट टीवी देखने पर 5-6 ऐड आ जाते हैं. इन ऐड्स को ग्राफिक्स, एनिमेशन और ह्यूमर के जरिये विटी और कैची बनाया जाता है. ताकि दर्शकों के दिमाग में घुस सकें.
टीवी पर शराब से सिलाई मशीन तक इंसान की जरूरत से जुड़े हर सामान को बेचा जाता है. कुछ ऐड्स तो इतनी बार रिपीट होते हैं कि उनके जिंगल और टैग लाइन याद हो जाती हैं. जैसे, 'अमूल माचो' का 'ये तो बड़ा टाइंग है' ऐड या 'लक्स कॉज़ी' का 'सुनो तो अपने दिल की'.
'लक्स कोज़ी मैन्स इनर वियर' का ऐड. इसमें वरुण धवन जंप करके सीधे एक लड़की की कार में गिरते हैं, लेकिन तब तक उनका शॉर्ट फट जाता है और कार में बैठी लड़को को उनकी चड्डी दिख जाती है. इसके बाद लड़की उन्हें कार से उतरने नहीं देती और ऐड खत्म हो जाता है.
ये 'अमूल' का मर्दों की चड्डी बनियान का ऐड है. इसमें छत पर खड़ी किशोर उम्र की लड़की पड़ोस की छत पर कसरत कर रहे लड़के को बार बार देखने की कोशिश करती है. उसे देखने के लिए कभी टंकी तो कभी पाइप पर चढ़ती है.
विज्ञापन की टैग लाइन में माचो शब्द न भी हो, हो तो ऐड ऐसे बनाया जाता है कि फलां चड्डी या बनियान पहनते ही पुरुष 'असली मर्द' बन जाएगा. वो मर्द जो 3 मंजिला इमारत से छलांग लगाकर लड़की को कैच ले सकता है या बनियान पहनते ही लड़की को गुंडों से बचा सकता है. चड्डी पहनते ही लड़कियों को उत्तेजित कर सकता है. या फिर लड़कियां उसे बनियान पहने देखकर ही ऑर्गेज्म आ जाएगा. कुल मिलाकर इन ऐड्स के मुताबिक आदमी चड्डी-बनियान पहनते ही सुपरमैन बन सकता है.
पुरुषों के 1-2 अंडरगार्मेंट्स ऐड्स को छोड़ दें, तो लगभग सभी की थीम महिलाओं को संकट से बचाना और सेक्सुअली एक्साइट करना होती है.
लड़कियों की चड्डी, स्लिप या ब्रा के लिए टीवी पर कोई विज्ञापन नहीं है. बहुत साल पहले एक ऐड आया था, जिसे 'लक्स' कंपनी ने बनाया था.
इस विज्ञापन में रीमा लागू लक्ष्मी चाची के कैरेक्टर में थीं, जो औरतों की निजी समस्याएं सुनती हैं. एक औरत उन्हें लिखकर भेजती है कि उसकी चड्डी की लास्टिक कुछ समय बाद अपने आप ढीली हो जाती है. इस पर लक्ष्मी चाची महिलाओं को सड़क से पेंटी खरीदने पर डांटती हैं.
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) के मुताबिक, शहरों की तुलना में गांवों और पिछड़े इलाकों में लोग ज्यादा टीवी देख रहे हैं. 2018 में गांव और कस्बों में बसने वाले करीब 10.9 करोड़ लोगों तक टीवी पहुंच चुका है. इन घरों में कितनी आंखें होंगी, जिनतक पुरुषों के चड्डी-बनियान के ऐड्स तो पहुंचते होंगे, लेकिन महिलाओं के इनर वियर से जुड़ी कोई जानकारी नहीं पहुंचती. क्योंकि इनमें से ज्यादातर महिलाओं की पहुंच से इंटरनेट और ऑनलाइन विज्ञापन भी दूर हैं. ऐसे में 'लक्स' का 'लक्ष्मी चाची' वाला विज्ञापन आज भी उतना ही अहम है.
लड़कियों की चड्डी और बनियान के ऐड्स ऑनलाइन और शॉपिंग वेबसाइट पर खूब देखने को मिलते हैं. लेकिन नेट और लैस से सजी पेंटी, थॉन्ग बिकिनी और लैसी ब्रा पेंटी वगैरह. गूगल सर्च करने पर भी कुछ ऐसा ही नजर आता है.
ये वो ब्रा और चड्डियां नहीं होती, जिन्हें लड़कियां रोज पहनती हैं. जिनमें कंफर्टेबल महसूस होता है. जिन्हें घंटों पहना जा सकता है. इन विज्ञापनों को देखकर लगता है कि महिलाएं अंडर गार्मेंट्स बॉडी के कंफर्ट, हाईजिन नहीं और जरूरत के लिए नहीं बल्कि सिर्फ मर्दों को रिझाने के लिए पहनती हैं.
ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट का ब्रा सेक्शन.
पिछड़े इलाकों में इंटरनेट नहीं है और टीवी पर महिलाओं के इनर वियर के ऐड्स आते नहीं हैं, ऐसे में महिलाएं अपनी सेहत से जुड़ी सबसे अहम चीज से दूर हैं. पुरुषों के लिए अलग-अलग वैरायटी के अंडर गार्मेंट देखने को मिलते हैं. कोई खुशबूदार, कोई ऐसी की तरह ठंडी देने वाला. लेकिन औरतों के लिए टीवी पर लक्ष्मी चाची जैसा भी कोई विज्ञापन नहीं है.
लड़कों की चड्डी के ऐड्स देखकर लगता है कि ये कोई औजार या कोई जादू है, जिससे इस्तेमाल करने वाला कुछ भी कर सकता है. जानें बचा सकता है, बॉडी टेम्परेचर कंट्रोलर, बॉडी गार्ड वगैरह सब बन जाता है. लड़कियों की इज्जत बचा लेता है. अगर यही सच है तो सरकार इन बनियानों पर सब्सिडी दे. हर औरत सुरक्षित रहेगी. क्योंकि हर पुरुष उसकी रक्षा करेगा. है न?
लड़कियों के अंडरवियर से जुड़ा शर्म और टैबू का ये कल्चर दुखद है. इसलिए क्योंकि गांवों में औरतें खुले में शौच करने की वजह से सबसे ज्यादा खतरे में हैं. गांवों में अधिकतर महिलएं अंडरवियर पहनती ही नहीं हैं. यही हाल कई छोटे शहरों का भी है. उन्हें कोई बताने वाला नहीं है कि सूती पैन्टीज, जो उन्हें इन्फेक्शन से बचाए और पसीना सोखे, को पहनना कितना जरूरी है.
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