ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें कुंभ के टाइम संगम में डुबकी लगाकर निकलतीं औरतें 'अश्लील' लगती हैं
ढंकना है तो ऐसे लोगों की आंखें ढंकिए, धार्मिक महिलाओं को नहीं.
कुंभ में हर साल लोग देशभर से संगम में डुबकी लगाने आते हैं. मान्यता है कि वहां डुबकी लगाने से आपके सारे पाप धुल जाते हैं. इसलिए आदमी, औरत, बच्चे सब हर साल प्रयागराज पहुंच जाते हैं. डुबकी लगाते हुए लोगों की तस्वीरें भी काफ़ी सुर्खियां बनाती हैं. पर आज एक ख़ास चीज़ नोटिस की.
गूगल पर ‘वीमेन एट कुंभ’ टाइप करिए. कुछ तस्वीरें आएंगीं. संगम में नहाती हुई औरतें. ज़ाहिर सी बात है, पानी में नहा रही हैं तो भीगी हुई होंगीं. उसमें क्या बड़ी बात है? पुरुष भी तो डुबकी लगाते समय भीगे होते हैं. अब दोनों के बीच का फर्क समझने के लिए आपको कुछ तस्वीरें देखनी चाहिए.
जब आप कुंभ में औरतों की तस्वीरें देखने के लिए गूगल पर टाइप करती हैं तो ये तस्वीरें आती हैं:
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
वही ये रहीं आदमियों की तस्वीरें:
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
फ़र्क समझे. औरतों के शरीर को आमतौर पर सेक्स के लिए इस्तेमाल करने वाली चीज़ की तरह देखा जाता है. ऑब्जेक्टीफ़ाय किया जाता है. यही चीज़ कुंभ में होती है. हज़ारों, लाखों की भीड़ में औरतें पानी में जब नहाती हैं तो कुछ लोगों का सारा ध्यान सिर्फ़ उनके शरीर पर जाता है, कि कैसे कपड़े उनके शरीर से चिपके हैं. कैसे उनके शरीर का आकार पता चल रहा है. ये देख के उतेज्जित होते हैं. फिर उनको सेक्सुअली हैरेस करते हैं.
इससे पहले आप इन बातों को फ़र्ज़ी बोल नकार दें. ये जान लीजिए. ऐसा हम नहीं कह रहे. एक रिपोर्ट के मुताबिक जिस समय औरतें कुंभ में नहा रही होती हैं, उस समय कुछ पुरुष छिपकर उनकी तस्वीरें खींचने की कोशिश करते हैं. ऊपर से कुंभ में कपड़े बदलना भी औरतों एक लिए एक बड़ी मुसीबत है.
खैर. औरतों की फ़िक्र तो सब ही करते हैं. उन्हें बचाकर रखना चाहते हैं. इसलिए क्या करते हैं? उन्हें बंद कर देते हैं. जो शोषण कर रहा है उसे नहीं रोकते. पर औरतों की ‘भलाई’ के लिए उन्हें सिर से पैर तक ढक देते हैं.
यही काम एक साबुन बनाने वाली कंपनी ने किया है. उन्होंने एक कैम्पेन लांच किया है. नाम है #GoSafeOutside. यानी जब औरतें बाहर निकलें तो सुरक्षित रहें. और ये कंपनी ये कैसे कर रही है? औरतों को कुंभ में वाटरप्रूफ़ साड़ियां देकर. औरतों की ‘इज्ज़त’ बचाने के लिए उन्हें ऐसे कपड़े दिए जा रहे हैं जो शरीर से चिपकेंगे नहीं. औरतों के शरीर का अकार नहीं पता चलेगा. इसलिए मर्द उन्हें ताकेंगे नहीं.
ये रहीं वो वाटरप्रूफ़ साड़ियां. फ़ोटो कर्टसी: (साबुन की कंपनी की वेबसाइट से लिया गया स्क्रीनशॉट)
ऐसा करने के पीछे को मकसद है, वो सही है, पर तरीका नहीं. हम कब तक औरतों को मर्दों से बचाने के लिए उन्हें ही बंद करके रखेंगे. ये तो वही बात हुई कि सड़कों पर मर्द अपनी वासना पर कंट्रोल नहीं कर सकते. यौन शोषण करते हैं तो लड़कियों को घर में बंद कर दो.
आपने कभी पिंक ऑटो देखे हैं. ये खासतौर पर औरतों के लिए हैं. उनकी सुरक्षा के लिए. ये सेफ़ कैसे हैं? क्योंकि इनके दोनों तरफ़ जालियां लगी हैं. जैसे ज़ू में जानवरों को अंदर रखने के लिए होती हैं.
अगर कुछ पुरुष कुंभ जैसी पवित्र जगह पर भी अपनी वासना की पूर्ति करते हैं तो उन्हें वहां होना ही नहीं चाहिए. जेल में होना चाहिए. औरतों को वाटरप्रूफ़ कपड़े पहनाकर क्या हासिल होगा?
ये सब इसलिए क्योंकि औरत के शरीर को भोग की वस्तु समझा जाता है.
जैसे ही ज़िक्र पानी या बारिश का होता है, उसकी ख़ूबसूरती को दर्शाने के लिए औरत के शरीर की ज़रूरत होती है.
मतलब कभी बारिश में किसी लड़के को अंगड़ाइयां लेकर नहाते हुए देखा है फिल्मों में? या तस्वीरों में? नहीं. कामुक पोज़ेज में हमेशा औरतें दिखेंगी पानी के नीचे. कितने फ़िल्मी गाने इस चीज़ का सुबूत हैं. देख लीजिए:
हम जब तक औरतों के शरीर को ऑब्जेक्टीफ़ाय करते रहेंगे, तब तक उनको वासना की नज़र से ही देखा जाएगा. और उनको एक ताले में बंद करना या वाटरप्रूफ़ कपड़े पहनाना उनके लिए नाइंसाफी है.
पढ़िए: इस देश में टीचर से लेकर पुलिस अफसर तक, जाने कितनी औरतें वेश्यावृत्ति को मजबूर हैं
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