उनके लिए एक काम की खबर, जो अपनी गाड़ियों में 'ब्राह्मण' और 'राजपूत' का स्टिकर लगाते हैं
9 साल संघर्ष कर इस औरत ने जाति और धर्म को ठेंगा दिखाया.

पीके फ़िल्म देखी है? उसमें एक सीन है. आमिर खान एक नवजात बच्चे को उठाते हैं और उसपर धर्म का ठप्पा ढूंढ़ते हैं. धर्म का ठप्पा बोले तो वो मुहर जो पैदा होते समय इंसान का मज़हब, उसकी जात तय करती है. है क्या ऐसी कोई मोहर? नहीं न. बस जिस परिवार में पैदा हो गए, वही धर्म, वही जात ज़िंदगी भर ढोओ. अपनी मर्ज़ी नहीं चलती उसपर.
खैर, इस चीज़ से कोई लड़ना भी नहीं चाहता. बड़ा कॉम्प्लीकेटेड है. कौन फंसे इस चक्कर में? पर एक महिला हैं. स्नेघा पार्थीबाराजा. तमिल नाडु के वेल्लोर की रहने वाली हैं. पेशे से वकील हैं. हाल-फिलहाल में तिरुपातुर तहसीलदार से एक सर्टिफिकेट मिला है. तिरुपातुर, वेल्लोर में एक तहसील है. सर्टिफिकेट में कुछ ख़ास लिखा है. क्या है वो?
सर्टिफिकेट कहता है कि स्नेघा किसी भी धर्म या कास्ट को बिलॉन्ग नहीं करतीं. यानी उनका न कोई मज़हब है. न कोई कास्ट.
अजीब बात है न. जहां आज लोग धर्म और कास्ट के लिए मरे पड़ रहे हैं. गाड़ी में जाति का ठप्पा लगाते हैं. धर्म की बात कर अपनी पत्नियों को तीन-तलाक़ देते हैं. या गाय के नाम पर मार डालते हैं. वहीं एक औरत है जो किसी भी धर्म या जात की नहीं होना चाहती. इसलिए स्नेघा हिंदुस्तान की पहली इंसान हैं जिनको इस तरह का सर्टिफिकेट मिला है.
सर्टिफिकेट कहता है कि स्नेघा किसी भी धर्म या कास्ट को बिलॉन्ग नहीं करतीं. फ़ोटो कर्टसी: OddNaari
पर कोई ऐसा क्यों करना चाहेगा? ये जानने के लिए हमने स्नेघा से बात की. वो कहती हैं:
"इस सबकी शुरुआत मेरे पिता एडवोकेट पी वी आनंद कृष्णन और मां मामीमोही ने की. वो भी पेशे से वकील हैं. जब उन्होंने मेरा स्कूल में दाखिला करवाया तो धर्म के आगे की जगह को खाली छोड़ दिया. मेरे स्कूल सर्टिफिकेट पर कोई भी धर्म नहीं लिखा था. मैंने अपने स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई ऐसे ही की. कहीं भी, किसी भी फॉर्म में अपना मज़हब नहीं लिखा. मेरी बहनों के लिए भी यही किया गया. पर जब हमने स्कूल पास कर लिया तो दिक्कत आनी शुरू हो गई. कहीं भी नौकरी के लिए अप्लाई करते. या कोई सरकारी कागजात के लिए. सब मज़हब का कॉलम भरने के लिए कहते. मैं परेशान हो गई. तब हमने फ़ैसला लिया कि हम कोर्ट में अपील करेंगे. जब हम कोई धर्म मानते ही नहीं तो ज़बरदस्ती लिखने का कोई तुक नहीं है.”
2010 में पहली बार स्नेघा ने अपनी तहसील में एक एप्लीकेशन डाली. वो चाहती थीं कि उनको एक ऐसा सर्टिफिकेट मिल जाए, जिसमें लिखा हो कि वो किसी धर्म को बिलॉन्ग नहीं करतीं. ज़ाहिर से बात है ये एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी गई. नौ साल स्नेघा इस चीज़ के लिए लड़ती रहीं. 4-5 बार एप्लीकेशन रिजेक्ट भी हुई.
2017 में स्नेघा ने फिर से एप्लीकेशन डाली. इस बार एप्लीकेशन पास हो गई. पर उनको लिखित में देना पड़ा कि उनको इस सर्टिफिकेट से किसी भी तरह का फ़ायदा नहीं हो रहा है. और न ही वो इस सर्टिफिकेट का इस्तेमाल किसी और के हक़ को मारने के लिए करेंगी.
ये रहा वो सर्टिफिकेट. फ़ोटो: OddNaari
जब स्नेघा से हमने पूछा कि उन्होंने ये किया कैसे, तो उन्होंने बताया:
“हमारा बर्थ सर्टिफिकेट मांगा गया. क्योंकि उसमें मेरे माता-पिता ने कोई भी धर्म नहीं लिखा था, इसलिए हमारी अर्जी मानी गई. साथ ही बड़े होने तक सारे डॉक्यूमेंट्स में धर्म का ज़िक्र नहीं था.”
अब अगर कोई और स्नेघा जैसी राह पर चलना चाहे तो उसे क्या करना होगा?
वो कहती हैं कि अगर आप किसी धर्म या जात को मानते हैं. एक दिन डिसाइड करते हैं कि आप धर्म त्याग कर रहे हैं. तो हो सकता है आपकी अर्जी अप्रूव होने में दिक्कत होगी. क्योंकि आपके हर डॉक्यूमेंट में आपका धर्म लिखा होता है. इसलिए ज़रूरी है बचपन में ही आप किसी डॉक्यूमेंट पर धर्म न लिखिए. अगर ऐसा नहीं है तो कोर्ट से ऑर्डर लेना पड़ता है. मुश्किल है काफ़ी. सरकार को इसे और आसान बनाना चाहिए. क्योंकि ऐसा कोई प्रावधान है नहीं अभी.
सही है. हर इंसान को अपना धर्म या जात चुनने की आज़ादी होनी चाहिए. अगर वो कोई भी धर्म नहीं फॉलो करना चाहता तो वो भी सही है. उसकी मर्ज़ी.
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