पापा! ये कब तक चलेगा, मुझे लगने लगा है जैसे में बाजार में बिकने वाला सामान हूं
लोग आते हैं, देखते हैं, मोलभाव की तरह थोड़ी बातचीत करते हैं और चले जाते हैं.

पापा,
मुझे पता है कि आप मेरे लिए अच्छा लड़का, बहुत अच्छा घर ढूंढ़ रहे हो. लेकिन ये सब भी तो सालों से ये चल रहा है. मुझसे कहा जाता है कि अच्छे से तैयार हो जाओ ताकि लड़का मुझे 'देखते ही' पसंद कर ले. जैसे मेरा रूप-रंग, मेरा फिगर ही सबकुछ है. मेरी पढ़ाई-लिखाई, मेरी सोच और मैं जिंदगी में क्या करना चाहती हूं क्या इसके कोई मायने नहीं हैं? मेरा अच्छा दिखना ज्यादा जरूरी है क्योंकि पहली मुलाकात में ही, मुझे सिर्फ देखकर वो लोग अपना फैसला कर लेते हैं. मुझे समझे-जाने बिना. मैं जिंदगी में क्या करना चाहती हूं, मेरे सपनों को जाने बिना.
मैं सालों से यही देख रही हूं. एक लड़का अपने परिवार के साथ आता है. मम्मी मुझे अच्छे से तैयार होने के लिए कहती हैं. मैं प्रेस किए कपड़े पहनती हूं. तैयार होती हूं. आप नाश्ता मंगाते हो. थोड़ा मैं और थोड़ा मम्मी वो नाश्ता उनके सामने ले जाती हैं.
वो दो-चार सवाल पूछते हैं. आप लोगों से दो-चार बातें करते हैं. कुछ तो मुझे जिम जॉइन करने की भी सलाह दे देते हैं. बस फिर चले जाते हैं. और फिर कोई जवाब नहीं आता.
पापा आपको भी तो पता है कि मैं मोटी हूं. याद है न बचपन में मेरे लिए कपड़े लेने जाते थे, तो मेरी उम्र से बड़े बच्चों के कपड़े मेरे लिए खरीदने पड़ते थे. फिर आप दूसरों से क्य़ों उम्मीद लगाकर बैठे हो कि वो मुझे पसंद कर ही लेंगे.
आपको पता है वो पूरा दिन मेरे लिए कितना अजीब होता है, जब कोई मुझे देखने आता है. पहले मैं मन से तैयार होती थी. अच्छे से अच्छे कपड़े पहनती थी. चाहती थी कि कोई मुझे पसंद कर ले. लेकिन अब सिर्फ आपकी वजह से तैयार होती हूं.
पापा जैसे सोम बाजार, बुध बाजार होता है न. एक खास दिन बाजार लगता है. सुंदर, सजावट होती है. लोग आते हैं. चीजें देखते हैं, पसंद-नापसंद करके चले जाते हैं. वैसा ही मुझे अपने लिए लगता है. महीने में दो बार मुझे देखने लोग आते हैं. मैं सुंदर तैयार होकर बैठ जाती हूं. वो मुझे चलने, बोलने के लिए कहते हैं. फिर नापसंद करके चले जाते हैं.
मैं बस ये पूछना चाहती हूं कि मेरी प्रदर्शनी कब तक लगती रहेगी. आप मेरे लिए कब तक अच्छा लड़का, अच्छा परिवार ढूंढ़ते रहेंगे. मैं अब सामान नहीं बनना चाहती. किसी परिवार के सामने नहीं जाना चाहती.
कई बार मैं चिढ़ भी जाती हूं कि मुझे नहीं जाना ऐसे प्रदर्शनी बनकर. लेकिन आप कहते हो यहां बात नहीं भी बनी तो वो लोग दूसरों को बताएंगे तुम्हारे बारे में. ऐसे ही तो रिश्ते बनते हैं.
मुझे लगता है कि अब ये बंद हो जाना चाहिए. मुझे ऐसा लड़का नहीं चाहिए जो मुझे देखकर ही तय कर ले कि मैं कैसी हूं. कोई और कैसे तय कर सकता है कि मैं उसके लायक हूं या नहीं. वो भी सिर्फ मुझे देखकर. तो प्लीज, अब बंद कर दो ऐसे लड़कों के परिवारों को बुलाना.
ये भी पढ़ें- डियर आंटी! लिव इन रिलेशन के अलावा भी मेरी जिंदगी में बहुत कुछ है
लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे