क्या कोर्ट पति-पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर कर सकता है?
इस कानून को चुनौती दी है दो स्टूडेंट्स ने.
#1
वंदना की शादी को तीन साल हो गए थे. उसका पति नीरज उसे रोज़ ताने मारता. परेशान करता. सुलह के कोई आसार नहीं दिख रहे थे. एक दिन नीरज बिना बताए घर छोड़कर चला गया. अगले एक साल तक उसने वंदना की खैर-खबर नहीं ली. न ही वापस आया. थक-हारकर वंदना के घरवालों ने कोर्ट में अपील की. उनकी मांग थी कि नीरज घर वापस आए और पति होने का फ़र्ज़ निभाए. कोर्ट ने नीरज को आदेश दिया कि वो तुरंत घर लौटे और वंदना के साथ एक घर में रहे. यहीं नहीं. उसके साथ शरीक संबंध भी बनाए क्योंकि वो उसकी बतौर पति एक ड्यूटी है.
#2
नम्रता की शादी को एक साल हो गया था. पर वो अपने पति के साथ ख़ुश नहीं थी. दोनों में एकदम नहीं पटती थी. एक दिन परेशान होकर नम्रता घर छोड़कर चली गई. उसके पति ने उसे वापस लाने की बहुत कोशिश की. पर नम्रता वापस आने को तैयार न थी. उसके पति ने कोर्ट में शिकायत की. कोर्ट ने नम्रता को घर वापस आने का आदेश दिया. साथ ही वो सारे फ़र्ज़ निभाने के आदेश दिए वो बतौर बीवी उसके थे.
अब इन दोनों मामलों के कुछ चीज़ें कॉमन हैं:
-दोनों केसेज़ में पति (नीरज) / पत्नी (नम्रता) बिना किसी जायज़ वजह के घर छोड़कर चले गए.
-दोनों मामलों में कोर्ट ने पति/ पत्नी को निर्देश दिया कि वो घर लौटें.
-दोनों मामलों में कोर्ट ने पति/ पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने का निर्देश दिया.
अब आप कहेंगे ये तो घर की बात है. कोर्ट इसमें क्यों पड़ा? वो इसलिए क्योंकि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 9 के तेहत कोर्ट को ये अधिकार है. कहने का मतलब ये है कि पति-पत्नी का आपसी मामला जब कोर्ट पहुंच जाता है तो उसे सुलझाने के लिए कोर्ट कुछ पॉवर्स का इस्तेमाल करता है. ये पॉवर उसे मिली है संविधान में दिए गए हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 9 से.
पति-पत्नी का आपसी मामला जब कोर्ट पहुंच जाता है तो उसे सुलझाने के लिए कोर्ट कुछ पावर्स का इस्तेमाल करता है. (फ़ोटो कर्टसी: Pixabay)
क्या कहता है हिंदू मैरिज एक्ट 1955, सेक्शन 9
ये समझने के लिए हमनें प्रज्ञा पारिजात सिंह से बात की. वो सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. उन्होंने बताया:
“अगर पति या पत्नी बिना किसी जायज़ वजह घर छोड़कर चला या चली जाती है तो कोर्ट हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 9 के तहत उसपर घर वापस आने के लिए जोर डाल सकता है. साथ ही शारीरिक संबंध बनाने के लिए भी जोर डाल सकता है. संविधान के मुताबिक एक शादी के दो कानूनी पहलू होते हैं. पहला एक साथ एक घर में रहना. दूसरा मियां-बीवी के बीच शारीरिक संबंध होना. अगर पति या पत्नी अपनी इन वैवाहिक जिम्मेदारियों से भागता या भागती है कोर्ट उसे आदेश दे सकता है.”
पर क्या कोर्ट को ये हक़ होना चाहिए?
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 9 के इस प्रवधान को कोर्ट में चुनौती दी है गुजरात नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्रों ओजस्व पाठक और मयंक गुप्ता ने. दोनों ने एक पीआईएल दाखिल की है. उनकी तरफ़ से कोर्ट में दलील पेश की ऐडवोकेट संजय हेगड़े ने.
कहा:
“वैसे तो ये कानून आदमी-औरत में भेदभाव नहीं करता. पर अगर गहराई से देखा जाए तो ये कानून औरतों के फ़ेवर में नहीं है. उसे पति की निजी प्रॉपर्टी समझता है. साथ ही उसके मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है.”
इस मामला में अभी कोई फ़ैसला नहीं आया है. (फ़ोटो कर्टसी: Pixabay)
हमारी वकील प्रज्ञा हमें समझाती हैं:
“कहना का मतलब ये है कि कोर्ट जब औरत को उसकी मर्ज़ी के बिना पति के साथ रहने के लिए मजबूर करता है तो उसकी ‘राईट टू प्राइवेसी’ का उल्लंघन है. वहीं जब औरत को कानून मर्ज़ी के ख़िलाफ़ पति से साथ सेक्स करने के लिए मजबूर करता है तो ये भी उसके अधिकारों का हनन है. इस केस में कोर्ट औरत को इंसान नहीं समझता. बल्कि पति की निजी प्रॉपर्टी समझता है.”
इस मामला में अभी कोई फ़ैसला नहीं आया है. सुनवाई चल रही है. पर अगर ये याचिका मंज़ूर कर ली जाती है तो ये औरतों के हक़ में एक अच्छा फ़ैसला होगा.
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