क्या सच में औरतें मर्दों को 498A में फंसाती हैं?
क्या यह क़ानून उतना ही मिसयूज किया जा रहा है जितना बताया जाता है?
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन पीनल कोड की धारा 498A के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ कुछ क़दम उठाए थे. आदेश दिया गया था कि 498A के तहत रजिस्टर की गईं शिकायतें क़ानूनी कार्रवाई होने से पहले ज़िला के 'फ़ैमिली वेलफ़ेयर कमिटी' में पेश की जाएंगी. फ़ेमिनिस्ट संगठनों ने दो जजों के इस फ़ैसले पर काफ़ी आलोचना की थी यह कहते हुए कि जहां औरतों को न्याय मिलना वैसे ही इतनी मुश्किल है, वहां तत्पर क़ानूनी कार्रवाई के बजाय प्रक्रिया को और धीमी कर देना ठीक नहीं है. पिछले शुक्रवार भारत के चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में तीन जजों के एक बेंच ने इस फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया और दहेज उत्पीड़न की शिकायतों को फ़ैमिली वेलफ़ेयर कमिटीज़ के बजाय क़ानून के हाथ वापस सौंप दिया.
धारा 498A हमारे देश के पीनल कोड में 1983 में शामिल की गई थी. इसका मक़सद है विवाहित महिलाओं की घरेलू हिंसा/क्रूरता से रक्षा करना. यह क़ानून किसी महिला के पति या उनके रिश्तेदारों को उसके उत्पीड़न के लिए तीन साल तक जेल और जुर्माना की सज़ा सुना सकता है. यहां 'उत्पीड़न' का मतलब है ऐसा व्यवहार जिसके कारण महिला आत्महत्या करने या ख़ुद को नुक़सान पहुंचाने के लिए मजबूर हो जाए. या महिला से धन संपत्ति की मांग करते हुए उस पर दबाव डालना और वह न दे पाए तो उस पर अत्याचार करना.
हमारे देश में कई ऐसे पुरुष हैं जो ख़ुद को 'मेन्स राइट्स ऐक्टिविस्ट' (MRA) कहते हैं. इनका मानना है कि देश के सारे क़ानून महिलाओं के हित में बनाए गए हैं जिसकी वजह से बेचारा भारतीय मर्द प्रताड़ित होता आया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का भी इन्होंने विरोध किया है क्योंकि इनका मानना है कि महिलाएं 498A के तहत झूठे इल्ज़ाम लगाकर मर्दों को फँसाती हैं. और अब क़ानूनी कठोरता के कारण ऐसे और इल्ज़ाम लगाए जाएंगे और मर्दों को शोषित किया जाएगा. लेकिन ऐसे दावों में कितनी सच्चाई है? आइए 498A से जुड़े कुछ मिथक और उनकी असलियत जानते हैं.
मिथक: इस क़ानून के तहत गिरफ़्तार तो बहुत हुए हैं मगर कन्विक्शन रेट बहुत कम है.
मेन्स राइट्स ऐक्टिविस्टस अक्सर आंकड़े दिखाकर कहते हैं कि 498A के तहत इतने सारे केस दर्ज होते हैं मगर बहुत कम केसेज़ में आरोपी दोषी प्रमाण होता है. इसका सीधा मतलब यही है कि औरतें अपना मतलब निकालने के लिए निर्दोष मर्दों को फँसातीं हैं.
फ़ैक्ट: कन्विक्शन रेट्स कम हैं, मगर इसकी कई वजहें हैं
कोई दोषी प्रमाण नहीं हुआ इसका मतलब यह नहीं कि वह निर्दोष ही है. कई कारण हो सकते हैं किसी आरोपी को दोषी साबित न कर पाने के. आरोपी के पास धन और सत्ता हो तो वह क़ानूनी व्यवस्था को आसानी से ख़रीद सकता है और अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर सकता है. भ्रष्ट पुलिसवाले कई बार ख़ुद आरोपियों की मदद करने आते हैं. कभी कभी तहक़ीक़ात में भी ग़लतियां होतीं हैं जिसकी वजह से कुछ साबित नहीं किया जा सकता. या शिकायत करनेवाली महिला के चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं और इन्वेस्टिगेशन आगे नहीं बढ़ता.
मिथक: 498A का दुरुपयोग बहुत कॉमन है
MRA ब्लॉग्स में ऐसी बहुत कहानियां देखने को मिलतीं हैं जहां पत्नी के एक झूठे कम्प्लेंट की वजह से एक मर्द की ज़िंदगी तहस-नहस हो जाती है. यह कहानियां मनगढ़ंत हैं कि नहीं यह तो पता नहीं. मगर इनके आधार पर दावा किया जाता है कि 498A आजकल औरतों के लिए हथियार बन चुका है जिसे वे जब चाहें, जिसके ख़िलाफ़ चाहें इस्तेमाल कर सकतीं हैं. और इसका सबसे बड़ा विक्टिम है उनका पति.
फ़ैक्ट: इस क़ानून का इस्तेमाल बहुत कम होता है
नैशनल क्राइम रेकर्ड्ज़ ब्युरो (NCRB) के अनुसार 2005-06 में भारत में 40% विवाहित महिलाएं घरेलू हिंसा से पीड़ित थीं. 2015-16 में यह आंकड़ा 30% में बदल गया. लेकिन इन महिलाओं में से 0.1% ने ही 498A के तहत कम्प्लेंट दर्ज कराई है. उत्पीड़न की पीड़िताएं ही जब इस क़ानून का इस्तेमाल करने से कतराती हैं, इसे कॉमन कहना और एक थ्रेट के तौर पर देखना वाक़ई बेवक़ूफ़ियत है.
मिथक: 498A ग़ैर-ज़मानती है और इसके तहत पुलिस जिसे चाहे गिरफ़्तार कर सकती है
फ़ैक्ट: हक़ीक़त बिल्कुल विपरीत है
बंगलोर में 'विमोचना' नामक एनजीओ ने 2012 से '15 तक समाज में 498A के असर पर तीन साल लंबी स्टडी की थी. स्टडी से पता चला था कि 70% आरोपियों को अग्रिम ज़मानत दी गई थी और सिर्फ़ 24% गिरफ़्तार हुए थे. कुछ आरोपी पुलिसवालों को तो आसानी से ख़रीद ही लेते थे.
मिथक: झूठे केसेज़ में फंसने की वजह से भारतीय मर्द पहले से ज़्यादा सुईसाइड कर रहे हैं
MRA एक-दो घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर यह कहना पसंद करते हैं कि फ़र्ज़ी केसेज़ बहुत कॉमन हो रहे हैं और इसी वजह से मर्दों की सुईसाइड रेट बढ़ गई है.
फ़ैक्ट: मर्द इस वजह से सुईसाइड नहीं करते
नैशनल क्राइम रेकर्ड्ज़ ब्युरो के अनुसार 2013 में भारत में 64,089 विवाहित मर्दों ने और 29,491 विवाहित औरतों ने सुईसाइड की थी. मगर दोनों की सुईसाइड करने की वजहें अलग थीं. जहां औरतें व्यक्तिगत और भावनात्मक कारणों की वजह से अपनी जान ले रहीं थीं, मर्द आर्थिक कमज़ोरी और सामाजिक दबाव की वजह से ऐसा कर रहे थे. 2014 में सुईसाइड करने के कारणों में 'विवाह-संबंधित समस्याएं' शामिल हुईं. देखा गया इनके कारण 6773 सुईसाइड केसेज़ हुए थे. इनमें से 4411 औरतें थीं और सिर्फ़ 2362 मर्द.
ज़ाहिर सी बात है कि 498A का कोई दुरुपयोग नहीं हो रहा. बल्कि चिंता की बात यह है कि जिन्हें इसकी ज़रूरत है, वो भी इसका उपयोग करने से घबरा रहीं हैं. यह दावे कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा फैलाई गई अफ़वाहों के सिवा और कुछ नहीं हैं.
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