'मेरी शादी में मेरी नहीं, बल्कि मेरे मम्मी-पापा की विदाई हुई थी'

ऐसी विदाई देखी है कहीं?

ऑडनारी ऑडनारी
अगस्त 01, 2019
'विवाह' फिल्म का विदाई वाला सीन, जिसमें लड़की की चाची उसकी विदाई कर रही है.

(ये ब्लॉग 26 साल की एक लड़की का है, जो दिल्ली में जॉब करती है. और कुछ महीनों पहले ही उसकी शादी हुई है. उनकी पहचान छिपाने के लिए हम उनका नाम नहीं लिख रहे हैं)

हमारे यहां न, लड़की जैसे ही 22-23 साल की होती है, उसके सारे रिश्तेदार उसकी शादी के पीछे पड़ जाते हैं. उसके मम्मी-पापा से कहीं ज्यादा, तो उसके रिश्तेदारों को फिकर लग जाती है, उसकी शादी की. बुआ जी लगभग हर हफ्ते सवाल करती हैं, 'बेटा शादी कब कर रही हो?' 'कोई लड़का अगर पसंद है, कोई बॉयफ्रेंड है, तो बता दो'. चाची तो मतलब, मम्मी की सगी सहेली बन जाती हैं. लेकिन इस मामले में मैं लकी रही. वो इसलिए, कि मैं अपने रिश्तेदारों से हजार किलोमीटर दूर थी. इसलिए बुआ, चाची तो पीछे नहीं पड़ीं, लेकिन मेरी मम्मी खुद ट्यूबलाइट लेकर अपना दामाद खोजने लगी थीं.

दो साल की गहन खोज के बाद एक लड़का मिला. मम्मी ने उसके साथ मीटिंग फिक्स की. उससे मेरी मुलाकात हुई. बातचीत ठीक रही. फिर तीन-चार बार और मुलाकात हुई. सब ठीक लगा, तो मैंने हां बोल दी, उस लड़के ने भी हां कह दिया. दोनों परिवारों को भी रिश्ता जम गया. तो फिर शादी सेट हो गई. तारीख निकली, चार महीने बाद की. बीच में एक-दो छोटी-मोटी रस्में भी हुईं. फिर आ गई शादी की तारीख.

मेरे मम्मी-पापा को डर था, कि शादी वाले दिन कहीं कुछ गड़बड़ी न हो जाए. ये डर वैसे भी इंडिया में हर लड़की के मां-बाप को होता है. खैर, सब ठीक रहा. शादी अच्छे से निपट गई, बिना किसी झिकझिक के. बहुत बड़ी बात है, कि अरैंज मैरिज बिना किसी तामझाम के निपट गई. न लड़के की मां ने मुंह बनाया, न उसकी बुआ ने, और न मामा ने.

rtx24a04-750x500_080119062925.jpgप्रतीकात्मक तस्वीर. रॉयटर्स

शादी होते-होते रात बीत गई. और यहां मेरी हालत बहुत ही बुरे तरीके से खराब हो रही थी. दो कारणों से. पहला- अरे... मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी. पहली बार मैंने कोई शादी पूरी देखी थी. इसके पहले हर शादी में हम तो चद्दर तान कर सो जाते थे. खुद की शादी में कैसे सोती??? चलिए, अब मेरी हालत खराब होने का दूसरा कारण जानिए. वो कारण था विदाई का डर. नहीं, डर मम्मी-पापा से दूर जाने का तो बिल्कुल भी नहीं था, क्योंकि हम तो भई जब 10 साल के थे, तब से ही हॉस्टल में रह रहे थे. तो दूर जाने का डर कतई नहीं था. डर था, मम्मी के रोने का. मम्मी हमारी बड़ी इमोशनल. टीवी पर लड़की की विदाई का एक गाना भी देख लेतीं, तो आंखों से गंगा-जमुना बहाने लगतीं.

अब भई, यहां तो उनकी खुद की बेटी की शादी थी, रोने का तो अच्छा-खासा प्लान बना रखा था मेरी मम्मी ने. शादी की छोटी-मोटी रस्मों में, जैसे हल्दी, मेहंदी सब में आंसू टपकाए थे. तो अब तो बड़ा मौका एकदम करीब था. मैं मन में सोच रही थी, यार बस मम्मी ज्यादा रोए नहीं, क्योंकि मुझे पता था कि मुझे तो रोना नहीं आएगा. फिर ऐसे में अगर मम्मी रोएं और मैं न रोऊं, तो जमाना तो थू-थू कर देगा मेरे ऊपर. तो भई, बस इसी बात का डर था. और इसीलिए मेरी हालत खराब हो रही थी.

अब हुआ ये कि मेरी शादी हो रही थी एक होटल में. लड़के वाले भी उसी होटल में रुके थे. और लड़की वाले भी. और ये होटल लड़के के शहर में था. हम लोग अपने परिवार के साथ वहीं पहुंचे थे. सीन ये था कि, शादी मेरी रविवार की रात थी, तो मम्मी-पापा की वापसी की ट्रेन थी सोमवार को दोपहर 1 बजे. यानी उन्हें दोपहर 12 बजे तक जैसे-तैसे होटल छोड़ना ही था. तो हुआ ये, कि शादी की सारी रस्में खत्म होते-होते सुबह के 6 बज गए. उसके बाद सबने मुझे मेरे कमरे में भेज दिया, कहा कि जाकर थोड़ी नींद ले लूं. मैं चली गई और सो गई. आंख खुली 8.30 बजे, यानी ढाई घंटे के बाद. फिर शुरू हुई बाकी बची-खुची रस्में.

vivah-3-750x500_080119063110.jpg'विवाह' फिल्म का विदाई वाला सीन. 

मम्मी का टारगेट था कि इसे 11 बजे तक पूरा कर लेना है, ताकि वो 11 से 12 के बीच विदाई का कार्यक्रम कर सकें. लेकिन मम्मी के सारे अरमानों पर उस वक्त पानी फिर गया, जब उन्हें पता चला कि उनकी तो ट्रेन की टिकट ही खो गई है. मम्मी हो गईं भयंकर तरीके से परेशान. मेरे भाई को 10 बजे ही रेलवे स्टेशन भेज दिया गया. ताकि वो जाकर किसी तरह मम्मी-पापा की टिकट का इंतजाम कर सके. अब ये मत बोलना कि दूसरा प्रिंट आउट निकाल लेते. ऐसा हो ही नहीं सकता था, क्योंकि टिकट विंडो टिकट थी.

हबड़-दबड़ में भाई स्टेशन पहंचा. इधर मम्मी का ध्यान बिखरे सामान पर पड़ा. देखा तो उनका सारा सामान बिखर चुका था, क्योंकि टिकट खोजने के लिए उन्होंने सारे बैग्स खोल डाले थे. अब उनके पास केवल दो घंटे का वक्त था. जैसे-तैसे होटल के कमरे से चुन-चुनकर उन्होंने सामान समेटा, बैग्स में डाला. इतने में मेरी सासुमां भी आ पुहंचीं. वहीं होटल के मेरे कमरे में. मेरे पास बैठ गईं. बतियाने लगीं. मम्मी-पापा, छोटा भाई पैकिंग में बिज़ी. हर किसी को दो बातों का डर था. पहला टिकट मिलेगी या नहीं, दूसरा ट्रेन मिलेगी या नहीं. क्योंकि टाइम पर पहुंचना अब एक चैलेंज बन गया था.

vivah-4-750x500_080119063207.jpg'विवाह' फिल्म का शादी वाला सीन.

एकदम स्पीड से पैकिंग हो रही थी. मम्मी मेरी एकसाथ दो काम कर रही थीं. एक पैकिंग, दूसरा मेरी विदाई की रस्म. जिसके लिए उनके दिमाग में कई महीनों से प्लानिंग हो रखी थी. मम्मी मेरी तरफ देखतीं. फिर मेरी सासुमां की मां की तरफ देखतीं. एक ही बात बोलतीं, 'इसका ध्यान रखिएगा'. और फिर एक-दो आंसू उनकी आंखों से टपक जाते. वो और भी ज्यादा रोना चाहती थीं, लेकिन टाइम ही नहीं था. जैसे तैसे 12.15 बजे तक उन्होंने सामान पैक किया. इतने में भाई का फोन आया, कि टिकट अरैंज हो गई है. मम्मी को राहत मिली, लेकिन फिर अचानक ही याद आया, कि अभी तो रेलवे स्टेशन तक पहुंचना है. सब उठे, सबने अपना सामान उठाया और होटल के गेट की तरफ तेजी से भागे. (नोट- होटल में मौजूद मेरे ससुराल की तरफ के रिश्तेदार बकायदा मम्मी-पापा की मदद कर रहे थे. सामान उठाकर वो लोग भी गेट की तरफ लेकर गए थे.)

मम्मी ने लिफ्ट में चढ़ते हुए मेरी तरफ देखा. मुझे बुलाया, गले लगीं और बोलीं, 'अच्छे से रहना'. पापा ने भी यही किया, बाकी रिश्तेदारों ने भी यही किया. मैं होटल के अपने कमरे में वापस आ गई. इधर मम्मी-पापा कैब में बैठकर स्टेशन पहुंच गए. मम्मी को उनकी ट्रेन मिल गई, लेकिन एक बात का अफसोस उन्हें हमेशा रहेगा. वो ये कि मुझे विदा करने की उनकी सारी प्लानिंग चौपट हो गई थी. इसलिए मैं जब भी मम्मी से बात करती हूं, एक बात जरूर कहती हूं, 'मम्मी, मेरी शादी में मेरी नहीं, बल्कि आपकी विदाई हुई थी.'

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