जानिए सोनिया गांधी के पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने के पीछे की कहानी
क्या हुआ था 1998 में, और उससे पहले.

सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बना दी गई हैं. अंतरिम यानी कि जब तक कोई पक्का नाम नहीं चुन लया जाता, तब तक सोनिया गांधी ही इस पद पर बनी रहेंगी. सोनिया कांग्रेस पार्टी की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष बनी रहीं. उन्होंने 2004 और 2009 में अपनी लीडरशिप में कांग्रेस को जीत दिलाई और UPA गठबंधन की सरकार बनी.
लेकिन जब वो पहली बार अध्यक्ष बनी थीं, तब का समय काफी अलग था. कैसे बनीं थीं सोनिया गांधी पहली बार अध्यक्ष?
हेवियर मौरो की किताब द रेड साड़ी से एक प्रसंग है. राजीव गांधी बम धमाके के शिकार हो चुके थे. 21 मई 1991. रात के साढ़े दस बजे 10 जनपथ पर फोन आया. कुछ गड़बड़ की आशंका लिए सोनिया ने राजीव गांधी के पर्सनल सेक्रेटरी विन्सेंट जॉर्ज को फ़ोन किया. विन्सेंट को मद्रास से खबर मिल चुकी थी लेकिन उन्होंने फोन पर ये नहीं बताया. 10 जनपथ पहुंचकर उन्होंने ये खबर दी. सोनिया को अस्थमा का दौरा पड़ गया. उस समय प्रियंका ने स्थिति संभाली, और मद्रास जाने का डिसीजन लिया. 19 साल की थीं प्रियंका उस समय. राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने जब फोन किया तब फोन भी प्रियंका ने उठाया था और उन्हें कहा था कि वो मद्रास जाएंगे. वहां सुबह लगभग साढ़े चार बजे के आस-पास प्लेन लैंड हुआ. राजीव गांधी और उनके सिक्योरिटी इंचार्ज प्रदीप कुमार गुप्ता के अवशेष दो ताबूतों में रखे हुए थे. वहीं एअरपोर्ट पर. ताकि शहर में ना जाना पड़े सोनिया-प्रियंका को. देश को अभी भी कोई खबर नहीं थी, सभी नींद में बेखबर थे.
यहां तक की, और इससे आगे की भी जानकारी नीना गोपाल, पुपुल जयकर, राशिद किदवई के दिए हुए अकाउंट में मिलती है. ये वो लोग हैं जिन्होंने गांधी परिवार पर काफी करीब से लिखा है और उसे जाना है. लेकिन हेवियर मौरो की किताब में एक छोटी सी बात है. वो ये कि जब प्लेन में इन ताबूतों को रखा जा रहा था तो सोनिया ने राजीव के ताबूत पर फूलों की माला चढ़ाई. और अपनी आंखें ढक लीं. लेकिन फिर देखा कि प्रदीप के ताबूत पर कुछ नहीं है, तो एक जैस्मिन के फूलों की माला सोनिया ने प्रदीप के ताबूत पर भी चढ़ा दी.
राजीव गांधी की हत्या के बाद पूरा देश हिल गया था. रात को राजीव के गुजरने की खबर सुन्त्गे ही सोनिया को अस्थमा का दौरा पड़ गया था. तब प्रियंका ने उन्हें सम्भाला.
इस घटना का उल्लेख चूंकि कहीं और मिला नहीं, इसलिए हेवियर मौरो से सीधे बात की गई. उनसे पूछा कि क्या इस घटना में पूरा सच है, या फिर लिबर्टी ऑफ एक्सप्रेशन लिया गया है जैसा कुछ. उन्होंने बताया कि ये घटना उन्होंने अपनी रीसर्च में पाई है. इसमें कुछ भी एडेड नहीं उनकी तरफ से.
नीना गोपाल ने भी अपने अकाउंट में लिखा था, 31 मई को 10 जनपथ वो सोनिया से मिलने गई थीं. उनके बुलावे पर. जब वो वहां पहुंचीं, तो सोनिया ने उनसे कहा,
"मुझे सब कुछ बताओ. बताओ उन्होंने क्या-क्या कहा. उनका मूड कैसा था. उनके आखिरी पल कैसे थे. मुझे आपसे सुनना है, सारी डीटेल के साथ. क्या वो खुश थे, तनाव में थे, उनके आखिरी शब्द क्या थे ..."
राजीव की हत्या के बाद प्रेशर बना सोनिया पर. कि वो पार्टी प्रेसिडेंट का पद ले लें. 24 मई 1991 को छपे न्यूयॉर्क टाइम्स में इस बात पर तफ़सील से रिपोर्ट की गई थी. सोनिया ने इस पूरे मसले पर जारी किए अपने स्टेटमेंट में कहा था,
"कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा मुझपर जो भरोसा जताया गया है, उससे मैं अभिभूत हूं. लेकिन, मेरे बच्चों और मुझ पर जो विपदा आन पड़ी है, उसकी वजह से कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता स्वीकार करना मेरे लिए संभव नहीं है. पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, और मेरी स्वर्गीय पति ने पार्टी और देश के लिए अपना जीवन लगा दिया. मुझे यकीन है कि उनकी यादें, और उनके साथ-साथ अनगिनत कांग्रेसी पुरुषों और महिलाओं का त्याग आज कांग्रेस को और भी ज्यादा मज़बूत से लौटने का साहस प्रदान करेगा".
राजीव गांधी के बाद पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने. 1998 आते-आते कांग्रेस की पकड़ कई जगहों पर ढीली हो गई थी. 1996,1998, और 1999 में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा. 1998 ही वो साल था जब पार्टी के लोगों ने सोनिया गांधी को पार्टी की कमान थामने को कहा. 14 मार्च 1998 को सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं. और लगातार 19 साल तक इस पद पर बनी रहीं.
सोनिया के बाद राहुल को पार्टी की कमान मिली, जिसे वंशवाद का उदाहरण कहा गया.
उनके अध्यक्ष चुने जाने के अगले साल ही बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन NDA (राजग गठबंधन- नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) के रूप में सत्ता में आए. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में ये सरकार आखिरकार पांच साल चली. लेकिन तब तक सोनिया गांधी ने कांग्रेस के साथ-साथ जनता की नज़रों में भी अपनी जगह मज़बूत कर ली थी. 2004 में कांग्रेस फिर से सत्ता में आई. UPA (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस – संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) के गठबंधन को लीड करते हुए. उस समय सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के कारण उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना पर बहुत बवाल हुआ था. क्योंकि तकनीकी रूप से लीडिंग पार्टी की अध्यक्ष होने के नाते प्रधानमंत्री पद उन्हीं को जाता. लेकिन उन्होंने अपनी जगह डॉक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया. हिंदुस्तान टाइम्स में औरंगजेब नक्शबंदी ने लिखा,
“फिर उन्होंने प्रधानमंत्री पद न लेकर दुनिया को अचंभित कर दिया. ‘अपने-आप में सत्ता ने मुझे कभी आकर्षित नहीं किया, ना ही कोई पद मेरा लक्ष्य रहा’, ऐसा उन्होंने तब कहा था. सत्ता के त्याग- एक ऐसा कदम जिसे कई लोगों ने उनके सबसे बड़े राजनैतिक मास्टरस्ट्रोक्स में से एक माना, ने सोनिया की जगह और मज़बूत कर दी”.
हालांकि मनमोहन सिंह को पपेट प्राइम मिनिस्टर कहा गया. ये आरोप लगे कि वो सिर्फ चेहरा हैं, असली निर्णय तो सोनिया गांधी ही लेती हैं.
जब सोनिया को अध्यक्ष बनाया गया था पहली बार, तब कांग्रेस सिर्फ चार राज्यों तक सिमटी हुई थी. मध्य प्रदेश, ओडिशा, नागालैंड और मिज़ोरम. लोकसभा में कांग्रेस के 141 सांसद थे. इसके बाद सोनिया ने 2004 में कांग्रेस को लीड करते हुए दुबारा सत्ता में ला खड़ा किया.
आज 2019 में कांग्रेस बमुश्किल ही कहीं नज़र आ रही है. कई लोगों का मानना है कि उसकी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ, उसका ज़मीनी कैडर लगभग खत्म हो चुका है. इस वक़्त अकेले भारतीय जनता पार्टी के 303 सांसद पार्लियामेंट में हैं. कांग्रेस वापसी के लिए छटपटा रही है. राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद छोड़ दिया है. और अभी कांग्रेस की कमान वापस लौट कर सोनिया गांधी के हाथों में चली गई है. कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन इस वक़्त कांग्रेस एक बार फिर भरोसा जता रही है अपनी पुरानी लीडर पर, जिसने ऐसे ही समय से उसे वापस उसके पैरों पर खींच लिया था.
क्या सोनिया इसमें सफल हो पाती हैं? क्या कांग्रेस अपने कंधो पर ढोया जा रहा गांधी परिवार के नाम का तमगा हटा पाएगी? क्या डायनेस्टी पॉलिटिक्स के आरोप से बाहर निकल कर कांग्रेस एक बेहतर हाइरार्की तैयार कर पाएगी. इन सबके जवाब सिर्फ और सिर्फ समय ही दे पाएगा.
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