सोनिया-सुषमा में जीवनभर राजनीतिक जंग रही, लेकिन अंत भावुक करने वाला है
सुषमा ने कहा था- सोनिया PM बनीं तो जिंदगीभर विधवा की तरह रहूंगी.

'अगर मैं संसद में जाकर बैठती हूं तो हर हालत में मुझे सोनिया गांधी को माननीय प्रधानमंत्री कहकर संबोधित करना होगा. जो मुझे गंवारा नहीं है. मेरा राष्ट्रीय स्वाभिमान मुझे झकझोरता है. मुझे इस राष्ट्रीय शर्म में भागीदार नहीं बनना.'
ये लाइन थी सुषमा स्वराज की. साल 2004 की बात है. लोकसभा चुनाव हो चुके थे. कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA ने चुनाव जीता था. सोनिया गांधी UPA की चेयरपर्सन थीं. सोनिया गांधी इटालियन मूल की हैं. उनका जन्म इटली में हुआ. राजीव गांधी से शादी के बाद वह भारत आईं और उन्होंने भारत की नागरिकता ले ली.
कांग्रेस चाहती थी कि सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनें. लेकिन सुषमा स्वराज को यह स्वीकार नहीं था कि विदेशी मूल की कोई महिला देश की प्रधानमंत्री बनें. सुषमा का कहना था कि अंग्रेज़ों ने लंबे वक्त तक हमारे देश में राज किया. उनसे आज़ादी के लिए लोगों ने अपनी जान दे दी. ऐसे में सोनिया गांधी के हाथ में देश का नेतृत्व देना भारतीयों की भावनाएं आहत करने वाला फैसला होगा.
तब सुषमा स्वराज ने ऐलान कर दिया कि अगर सोनिया पीएम बनती हैं तो वह ताउम्र एक हिंदू विधवा की तरह रहेंगी. सफेद साड़ी पहनेंगी. अपना सिर मुड़ा लेंगी, जमीन पर सोएंगी और सिर्फ चने खाएंगी. उन्होंने कहा था, 'यह आहत करने वाला है कि क्या कोई भारतीय बचा नहीं है जो देश के नेतृत्व के लिए एक विदेशी को चुना जा रहा है?' इसके बाद सोनिया गांधी ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया था. मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया.
सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी के साथ सुषमा स्वराज
कई साल बाद सुषमा से उनके कमेंट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अब भी अपनी बात पर कायम हैं.
ये पहली बार नहीं था जब सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी के बीच टकराव हुआ हो. उससे पहले 1999 में दोनों का आमना-सामना हुआ था. कर्नाटक के बेल्लारी में. इस सीट पर कांग्रेस से सोनिया गांधी और बीजेपी से सुषमा स्वराज लड़ रही थीं. यह सुषमा के लिए बड़ी चुनौती थी. आज़ादी के बाद से इस सीट पर कांग्रेस ही जीतती रही थी. सुषमा ने चैलेंज लिया. सोनिया को हराने के लिए कन्नड़ भाषा सीखी. वह चुनावी सभा में कन्नड़ में अपने भाषण देतीं. हालांकि, उस चुनाव में सोनिया गांधी की जीत हुई थी. हालांकि जीत का मार्जिन बहुत अधिक नहीं था. उस हार के बाद सुषमा ने कहा था, 'मैं ये लड़ाई हारी है लेकिन जंग जीत गई हूं.'
अब सुषमा स्वराज हमारे बीच नहीं हैं. 6 अगस्त की रात जब पूरा देश सोने की तैयारी कर रहा था, तब उनके चले जाने की खबर आई. रात 11 बजे. खबर आने के बाद कई लोगों की रात करवटों में बीती. दिल्ली में रहने वाले लोग एम्स और उनके घर की तरफ बढ़ने लगे. ऐसे में 7 अगस्त की सुबह एक तस्वीर आई. UPA अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके घर पहुंची थीं. उनके आखिरी दर्शन के लिए. ये एक भावुक पल था. पूर्व विदेश मंत्री जिन सोनिया गांधी की ताउम्र आलोचना करती रहीं, उन्हें 'विदेशी' कहती रहीं, वो उनके शव पर फूल चढ़ा रही थीं.
सुषमा स्वराज के अंतिम दर्शन के लिए उनके घर पहुंची थीं सोनिया गांधी
सोनिया गांधी ने सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल को चिट्ठी भी लिखी. उन्होंने लिखा कि सुषमा का जाना उनके लिए व्यक्तिगत हानि है.
सोनिया ने लिखा, 'स्वराज असाधारण प्रतिभा की धनी थीं. उनकी हिम्मत, उनकी प्रतिबद्धता, उनकी निष्ठा, हर पद पर उनका बेहतरीन काम और उनका व्यक्तित्व उन्हें सबसे खास बनाता है. उन्होंने जनता के दिल में जगह बनाई. उनकी संवेदनशीलता और आत्मीयता ने डिप्लोमैसी को एक मानवीय चेहरा दिया.'
UPA चीफ ने आगे लिखा, 'वह एक बेहतरीन वक्ता और उत्कृष्ट सांसद थीं. वह इतनी विलक्षण थीं कि हर पार्टी के नेता उनका सम्मान करते हैं, उनसे स्नेह करते हैं. साथ काम करते हुए हमारे बीच एक गहरा रिश्ता बन गया था. उनका जाना मुझे बेहद खल रहा है. राजनीति ही नहीं, व्यक्तिगत जीवन में भी उन्होंने हिम्मत का परिचय दिया. गंभीर बीमारियों के बाद भी वह जूझती रहीं. उनका जाना बेहद दुखद है.'
Chairperson Congress Parliamentary Party Smt Sonia Gandhi expressed her condolences to Shri Kaushal on the untimely demise of Smt Sushma Swaraj. pic.twitter.com/ScD1eM7L4R
— Congress (@INCIndia) August 7, 2019
सोनिया गांधी ने इस चिट्ठी में जो कुछ भी लिखा है, वो बेहद भावुक है. और इस बात का सबूत है कि राजनीतिक मंचों पर भले ही ये दोनों एक-दूसरे की विरोधी नजर आती हों. लेकिन व्यक्तिगत जीवन में दोनों के बीच संबंध बहुत अच्छे नहीं तो कम से कम कड़वाहट भरे नहीं थे. इससे बशीर बद्र की लिखी वो लाइन भी याद आती है जो सुषमा ने संसद में कही थी. तब जब ममता बनर्जी ने पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था. वो लाइन थी-
दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों.
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