आज के दौर में अगर कबीर सिंह अच्छी फिल्म है तो रेप और घरेलू हिंसा भी नेक काम हैं
जो कबीर सिंह और अर्जुन रेड्डी करते हैं, वो प्यार नहीं, शोषण है.
रितिका (नाम बदल दिया गया है) कॉलेज के फर्स्ट इयर में थी. उसका बॉयफ्रेंड उससे चार-पांच साल बड़ा था. रितिका को लेकर बेहद पज़ेसिव. वो कहां जा रही है. किससे मिल रही है. क्या पहन रही है- उसे सबकी ख़बर चाहिए होती थी. एक वक़्त के बाद रितिका को घुटन होने लगी. पर वो डर के मारे कुछ नहीं बोल पाती थी. वजह थी उसके बॉयफ्रेंड का गुस्सा. गुस्से में वो रितिका पर बहुत चिल्लाता. कभी-कभी हाथ भी उठा देता. अपनी सफ़ाई में कहता कि वो रितिका से बहुत प्यार करता है. इसलिए अपना आपा खो देता है.
एक वक़्त के बाद रितिका बहुत ज्यादा परेशान रहने लगी. वह बहुत ज्यादा टेंशन लेती, खाना-पीना छूट गया. डॉक्टरों ने कहा कि एंग्जायटी डिसऑर्डर है. लंबे वक्त तक दवाइयां खानी पड़ी. कुछ सालों बाद उसका ब्रेकअप हो गया. तब जाकर रितिका को समझ में आया कि वो प्यार नहीं था. अब्यूज़ था. जिसे प्यार बताकर हमारी फ़िल्मों और गानों में काफी रोमैंटिसाइज किया जाता है.
बड़े परदे पर सब रोमैंटिक लगता है. हीरो का गुस्सा. हीरो का हद से ज़्यादा पज़ेसिव होना. अपनी गर्लफ्रेंड को किसी से बात करते देख जलना. उसकी पल-पल की ख़बर रखना. पर असल ज़िंदगी में ये बहुत डरावना होता है. फ़िल्में ये पहलू नहीं दिखातीं. फ़िल्में जैसे ‘अर्जुन रेड्डी’ और उसकी हिंदी रीमेक ‘कबीर सिंह’.
प्लीज़, 'कबीर सिंह' देखकर प्यार के लेसन न लें! (फ़ोटो कर्टसी: YouTube)
अगर आपने ‘अर्जुन रेड्डी’ नहीं देखी है तो कोई बात नहीं. ‘कबीर सिंह’ का ट्रेलर तो जरूर देखा होगा. पिक्चर भी रिलीज़ ही गई है. फ़िल्म में कियारा आडवानी और शाहीद कपूर हैं. ये फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ की हूबहू कॉपी है.
क्या होता है अर्जुन रेड्डी/ कबीर सिंह में
एक लड़का है. मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है. टॉपर है कॉलेज का. इसलिए लोग उसकी बदतमीज़ी भी झेलते हैं. वो किसी को भी पकड़ के पीट देता है. हर वक़्त गुस्से में रहता है.
एक दिन कॉलेज में एक लड़की को देखता है. उसे वो पसंद आ जाती है. जैसे कपड़ों की दुकान में साड़ी. लड़की से बिना पूछे पूरे कॉलेज में ऐलान कर देता है. उससे बिना पूछे उसे किस कर देता है. पूरी फ़िल्म में ऐसे बिहेव करता है जैसे उसने लड़की को ख़रीद लिया हो. लड़की भी चुपचाप हर बात मानती है. जैसे रोबोट.
कुछ वजहों से लड़की की शादी कहीं और हो जाती है. लड़का और बावला हो जाता है. वैसे पहले भी कोई कसर बाकी नहीं थी. कोई भी ऐसा नशा नहीं है जो फ़िल्म में लड़के ने किया न हो. इसके अलावा उसका गुस्सा चरम सीमा पर है. ऐसे इंसान को रियल लाइफ में शायद आप पांच मिनट भी बर्दाश्त न कर पाएं. पर फ़िल्म मेकर्स अपनी जान लगा देते हैं हीरो को हीरो साबित करने में.
अर्जुन रेड्डी का ट्रेलर:
कबीर सिंह का ट्रेलर:
दलील दी जाती है कि ‘ही इज़ अ रेबेल विद अ कॉज़.’ यानी उसके गुस्से की एक जायज़ वजह है. उसकी बदतमीज़ी के पीछे एक सॉलिड कारण है. जो लोगों को समझना चाहिए. हीरो से सिम्पेथाइज़ करना चाहिए.
इसमें दिक्कत क्या है
रियली! क्या इसका जवाब भी देना पड़ेगा?
तो चलो देते हैं.
1. फ़र्ज़ कीजिए आप मार्केट जा रही हैं. एक लड़का आपको देखता है. देखते ही डिसाइड कर लेता है कि अबसे आप उसकी हैं. मतलब अब वो तय करेगा कि आप कैसे रहेंगी. कहां जाएंगी. किससे बात करेंगी. न वो आपसे पूछता है कि आप उसमें इंटरेस्टेड हैं भी या नहीं. आपकी मर्ज़ी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती. आप एक गाय हैं. आपको अब वही करना है जो वो कहेगा. कैसा लग रहा है सुनकर? ये असल ज़िंदगी में हो तो इसपर फ़िल्म नहीं बनेगी. ‘क्राइम पेट्रोल’ का एक पूरा एपिसोड जरूर बन जाएगा.
जनाब! एक बार लड़की से पूछ तो लेते. (फ़ोटो कर्टसी: YouTube)
2. दूसरी सिचुएशन लेते हैं. पूरी फ़िल्म में लड़का अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाता. कभी भी, कहीं भी फट जाता है. चिल्लाने लगता है. मारता भी है. ऐसे इंसान से तो आप असल लाइफ में कोसों दूर ही रहना पसंद करेंगी. पता नहीं कब दिमाग सनक जाए. सोचिए अगर आपको चौबीसों घंटे ऐसे आदमी के आसपास रहना पड़े तो? आप डिप्रेशन में चली जाएंगी. कुछ समय बाद आपकी रूह कांपने लगेगी. पता नहीं कब मार दे. इट इज़ नॉट रोमांटिक. ये बहुत ट्रॉमेटिक है. दरसल इसे एंगर इशूज़ होना कहते हैं. इसे ठीक करने के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता है. ये एक दिमागी डिसऑर्डर है.
3. कबीर सिंह का एक गाना है. ‘तेरा बन जाउंगा’. नहीं देखा है तो देखिए.
इसमें लड़की बाइक से उतरती है. हीरो उसे तुरंत दुपट्टा ठीक करने के लिए कहता है. लड़की चुपचाप दुपट्टा एडजस्ट कर लेती है. फिर सिर हिलाकर उससे पूछती है कि सब ठीक है. लड़का जब हां कहता है तो वो वहां से हिलती है. कुछ लोगों को ये बहुत स्वीट लगेगा. हाय! लड़का कितनी फ़िक्र करता है लड़की की इज्ज़त की.
सच कहूं अगर कोई चमन बहार लड़का मुझसे मेरा दुपट्टा सही करने को कहे, मैं खींचकर थप्पड़ मार दूं. तू कौन मैं खामखां!
4. प्यार में नाकाम होने के बाद हीरो नशे करना शुरू कर देता है. शराब. ड्रग्स. और न जाने क्या-क्या. हां. रिलेशनशिप जब टूटता है तो बहुत दुखता है. बहुत ज़्यादा. हर इंसान इससे अलग तरह से निपटता है. पर इस फ़िल्म में जो हीरो कर रहा है वो उसे मॉडर्न देवदास दिखाने की कोशिश है. फ़र्क इतना है कि देवदास इस मॉडर्न हीरो से काफ़ी बेहतर था.
ये तो अपनी काम वाली बाई के पीछे भागता है. उसे मारने के लिए. वजह? उससे एक गिलास टूट जाता है. आशा है मॉडर्न आशिक इस हीरो से कोई प्रेरणा नहीं लेंगे. प्यार में नाकाम होने के बाद दूसरों का जीना हराम करना भी ग़लत है. हां, आपके साथ बुरा हुआ. पर उसे बहाना बनाकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद करना भी बेवकूफ़ी है. और प्लीज़, नशा करने के बहाने ढूंढ़ना बंद कर दीजिए.
प्यार में नाकाम=नशा! (फ़ोटो कर्टसी: YouTube)
5. हीरो एक डॉक्टर हैं. एक बड़े अस्पताल में. आधे ऑपरेशन वो नशे में करता है. अब सोचिए. आप अपने पेट का ऑपरेशन करवाने ऑपरेशन थिएटर में घुसतीं हैं. आप पहले से बहुत डरी हुई हैं. इस बीच आपको पता चले आपका डॉक्टर, जिसके हाथ में आपकी ज़िंदगी है, वो नशे में टाइट है. आपको कैसा लगेगा? पर मूवी में ये कूल है!
अब आप बोलेंगे कि ये एक पिक्चर है. इसमें कुछ असली नहीं है. तो इतना हल्ला क्यों?
यहीं आप मात खा गए. हां, ये पिक्चर है. ऐसा असल ज़िंदगी में नहीं हो रहा. पर ऐसे लड़के हमारे आसपास भरे पड़े हैं. जिन्हें लगता है कि उनकी मर्दानगी लड़की को अपना पर्सनल सामान समझना है. हर वक़्त अपनी अपनी मर्ज़ी उनपर चलाने का उनको हक़ है. क्योंकि वो 'प्यार' करते हैं.
नहीं. ये प्यार नहीं है. और ऐसी फ़िल्में ही हमारा दिमाग ख़राब कर रही हैं. हम उसी को सच और सही मान रहे हैं जो फिल्मों में हमें दिखाया जा रहा है. इसका सुबूत मेरी एक सहेली है. वो 'कबीर सिंह' देखने गई थी. फर्स्ट डे फर्स्ट शो. इसमें एक सीन आता है जिसमें हीरो गुस्से में अपनी गर्लफ्रेंड को थप्पड़ मार देता है. मेरी दोस्त ने बताया कि इस सीन में 90 फ़ीसदी लोगों ने तालियां बजाईं.
अब आप ख़ुद सोचिए. अगर इस सीन में लड़के तालियां बजा रहे हैं तो शायद वो ख़ुद को हीरो की जगह समझ रहे हैं. यानी कहीं न कहीं उन्हें ये ठीक लग रहा है. अब अगर असल लाइफ में कोई लड़की उनको छोड़ती है तो वो क्या करेंगे? जवाब है हिंसा.
अर्जुन रेड्डी फिल्म में एक सीन है. शुरुआत में ही. हीरो एक लड़की के घर जाता है. सेक्स के लिए. लड़की पहले राजी होती है. पर ऐन वक़्त पर मना कर देती है क्योंकि उसका मंगेतर आ जाता है. अर्जुन रेड्डी इतना उत्तेजित है कि चाकू की नोक पर उसे सेक्स के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है. कानूनी भाषा में ये अटेम्प्टेड रेप है. यानी बलात्कार की कोशिश.
रेप कल्चर को बढ़ावा देती ये फिल्म बनी, हिट हुई. साल 2019 में इसका रीमेक आया. पोटेंशियल रेपिस्ट को हीरो बनाने वाली फिल्म हमें इतनी पसंद आती है कि हम उसका रीमेक बनाते हैं. फिर उन्हें 'रोमैंस' कहते हैं.
ये हमारे बारे में क्या कहता है?
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