राष्ट्रपति जी, हमारे संस्थानों में अभी इतनी औरतें नहीं हैं कि आप महिला आरक्षण पर चुटकुला बनाएं
राष्ट्रपति जी को लगता है कि कुछ दिनों में मर्दों को आरक्षण की जरूरत पड़ेगी.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, 30 अक्टूबर को शिमला में थे. हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी का 24वां दीक्षांत समारोह था, यानी कॉन्वोकेशन था. इस समारोह में राष्ट्रपति कोविंद चीफ गेस्ट के तौर पर गए थे, टॉप करने वाले स्टूडेंट्स को मेडल देने के लिए. 230 स्टूडेंट्स को मेडल मिला, इनमें से 180 लड़कियां थीं. 11 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल मिला, इनमें से 10, लड़कियां थीं. यानी फीमेल स्टूडेंट्स ने बढ़िया प्रदर्शन किया. इस पर रामनाथ ने लड़कियों की जमकर तारीफ की. लेकिन तारीफ करते-करते उन्होंने महिला आरक्षण पर कुछ ऐसा कह दिया, जो किसी चुटकुले से कम नहीं था.
फोटो- ट्विटर
क्या कहा? बताते हैं. लड़कियों का तगड़ा परफॉर्मेंस देख राष्ट्रपति कोविंद बोले कि वो दिन दूर नहीं जब पुरुषों को आरक्षण की जरूरत पड़ेगी. पूरा स्टेटमेंट कुछ इस तरह है-
'महिलाओं के लिए आरक्षण की बात की जाती थी. अब लड़कियां एजुकेशन की फील्ड में अच्छा कर रही हैं. अगर ऐसा ही होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब पुरुषों को रिजर्वेशन की जरूरत पड़ेगी.'
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ये बात भले ही राष्ट्रपति ने लड़कियों की तारीफ में कही हो, लेकिन ये महिला आरक्षण पर किया गया एक चुटकुला जैसा लगता है. वो इसलिए क्योंकि आज भी शैक्षणिक संस्थानों में औरतों की संख्या काफी कम है. केवल शैक्षणिक संस्थानों में ही नहीं, बल्कि बाकी क्षेत्रों में भी महिलाओं की भागीदारी, उनकी संख्या पुरुषों के मुकाबले बहुत, बहुत, बहुत ही कम है.
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महिलाओं को आधी आबादी कहते हैं. और वो हैं भी, लेकिन आज भी, हजार कोशिशों के बाद भी, महत्वपूर्ण संस्थानों में औरतों की संख्या पुरुषों के अनुपात में काफी कम है. आप किसी भी को-एड स्कूल, या कॉलेज या यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स की संख्या उठाकर देख लीजिए. आपकी समझ साफ हो जाएगी. आपको पता चल जाएगा कि लड़कियों की स्थिति क्या है.
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NCPCR की रिपोर्ट
सच तो ये है कि बहुत सी लड़कियां, जो 15 से 18 साल के बीच की होती हैं, जिन्हें किशोरी कहते हैं. वो स्कूल छोड़ने पर मजबूर होती हैं. उनके परिवार वाले उन्हें आगे नहीं पढ़ाते. उनका स्कूल छुड़वाकर घर के काम करवाने लग जाते हैं. ये सब हम अपने मन से नहीं कह रहे, बल्कि कुछ महीनों पहले एक रिपोर्ट आई थी, उसमें ऐसा कहा गया था. नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स यानी NCPCR की रिपोर्ट. इसमें साफ-साफ कहा गया था कि 15-18 साल के बीच की करीब 39.4 फीसदी लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा दी जाती है. और इनमें से 65 फीसदी लड़कियां घर के काम करने के लिए मजबूर होती हैं. उनके परिवार वाले उन्हें आगे नहीं पढ़ाते.
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ये तो बात हो गई 15 से 18 साल के बीच की लड़कियों की. अब बात करते हैं, 18 से ज्यादा की उम्र वाली लड़कियों की. आज भी कई घरों में, शहर में भी और गांव में भी, लोग अपनी लड़कियों को कॉलेज नहीं भेजते. जैसे ही स्कूल खत्म होता है, उनके लिए लड़का खोजकर शादी करवा दी जाती है. उनकी इच्छा अगर आगे पढ़ने की हो, तो भी उनकी एक नहीं सुनी जाती. अब अगर ऐसी स्थिति में भी लड़कियां कॉलेज या यूनिवर्सिटी तक पहुंच रही हैं और अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, तो ये अपने आप में ही बड़ी बात है. ऐसे में राष्ट्रपति जी, महिला आरक्षण को लेकर इस तरह की बात करना किसी चुटकुले से कम नहीं लगता है.
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महिला सांसदों की संख्या
कुछ दिनों पहले बिजनेस टुडे की एक रिपोर्ट आई थी. विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या को लेकर. उसमें साफ-साफ ये बताया गया था कि भारत की लोकसभा में महिला सांसदों कि संख्या महज 11.8 फीसदी है. यानी 543 चुने हुए सांसदों में से केवल 62 सांसद, महिलाएं हैं. वीमेन रिजर्वेशन बिल पर बातें तो बहुत सुनी, लेकिन ये अभी तक लोकसभा में पास नहीं हो सका है. औरतें लड़-भिड़कर, तरह-तरह की जद्दोजहद कर अगर किसी अच्छे पद पर पहुंचती हैं, कुछ अच्छा करती हैं तो उसे महिला आरक्षण से जोड़ना कतई सही नहीं है.
आदर्श स्थिति तो वो होगी जब न औरत, न पुरुष न किसी जाति विशेष--किसी को भी आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ेगी. पर अभी हम उस वक़्त से कई सौ साल दूर हैं.
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