बस में ट्रैवल करने वाली औरतों के लिए जरूरी खबर

इसके बाद बस से सफ़र करना काफ़ी सेफ़ हो जाएगा.

सांकेतिक तस्वीर. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)

2018. जनवरी का महीना था. कड़ाके की ठंड. अंधेरा हो चुका था. कृति ऑफिस से अपने घर जा रही थी. ऑटो नहीं मिला तो उसने बस पकड़ ली. पर बस स्टॉप उसके घर से थोड़ा दूर था. कम से कम 10 मिनट. बस रुकी तो कृति को उतरना पड़ा. उसके घर तक का रास्ता अंधेरे में डूबा था. डरते-डरते वो घर की तरफ़ चलने लगी. दिमाग में उसके हज़ारों ख़याल आ रहे थे. निर्भया वाली घटना दिमाग में घूम रही थी. जैसे-तैसे वो घर पहुंच गई. सारे रास्ते कृति ये सोचती रही कि काश स्टॉप घर के थोड़ा और नज़दीक होता. उसे अकेले इतनी दूर नहीं जाना पड़ता.

ये दिक्कत हिंदुस्तान भर में सारी लड़कियों की है. पर जल्द ही दिल्ली में इसका तोड़ निकलने वाला है. दरअसल हाल-फ़िलहाल में औरतों की सुरक्षा को लेकर एक पैनल बैठा था. जिसको हेड कर रहे थे लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बाइजाल. इस पैनल ने दिल्ली लॉ डिपार्टमेंट से एक काम करने के लिए कहा है. अगर ऐसा हो गया तो लड़कियों को काफ़ी सहूलियत हो जाएगी. नौ बजे के बाद लड़कियां अगर कहीं बस रुकवाना चाहें तो बस को रुकना पड़ेगा. भले ही वो उसका निर्धारित स्टॉप न हो.

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सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिल बसें  सिर्फ़ अपने निर्धारित स्टॉप पर ही रुक सकती हैं. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)

पर इसमें एक लोचा है. ऐसा करने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया था. साल 1997 में. इसलिए जब पिछले साल इस मुद्दे पर बात उठी थी तो उसका कोई सोल्यूशन नहीं निकला था. तब बात ये चली थी कि बस ड्राइवर्स और कंडक्टर्स को औरतों की सेफ्टी से जुड़ी ज़रूरी बातें बताई जाएंगी. साथ ही किन बातों का ध्यान रखना होगा ये भी बताया जाएगा. पर ये हो नहीं पाया. उसी कोर्ट ऑर्डर की वजह से. क्योंकि अगर किया जाता तो वो कोर्ट के ऑर्डर का उल्लंघन होता.

अब बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला सुनाया था 1997 में. उस बात को 12 साल हो चुके हैं. वक़्त बदल गया है. हालात बदल गए हैं. सड़कें अब और भी ज़्यादा असुरक्षित हैं. निर्भया गैंग रेप के बाद कानून में भी कई बदलाव किए गए. ज़रूरी है कि अब इस मुद्दे पर भी बात हो.

दिल्ली के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने कहा:

“पुराने फ़ैसले में बदलाव करने के पीछे एक ही वजह है. औरतों के लिए सफ़र सेफ़ बनाना. कई बार औरतें बस स्टॉप से काफ़ी दूर रहती हैं. स्टॉप और उनके घर के बीच का रास्ता अंधेरे में डूबा होता है. इस पॉलिसी की वजह से उनके लिए सफ़र करना आसान हो जाएगा."

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सुप्रीम कोर्ट के 12 साल पुराने फ़ैसले पर फिर से विचार किए जाने की ज़रूरत महसूस होती है.  (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)

निर्भया के बाद कई बार ये मुद्दा उठा है. कई-कई किलोमीटर तक कोई स्ट्रीट लाइट नहीं है. रात में घर जाने के लिए कोई ट्रांसपोर्ट नहीं मिलता.

सुप्रीम कोर्ट के लिए फ़ैसले के बारे में हमने बात की प्रांजल शेखर से. वो दिल्ली हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट में वकील हैं. उन्होंने बताया:

“सुप्रीम कोर्ट के लिए फ़ैसले के मुताबिक बसें सिर्फ़ अपने निर्धारित स्टॉप पर ही रुक सकती हैं. ये फ़ैसला ट्रैफिक जाम को नज़र में रख के लिया गया था. अगर बस एकदम से कहीं भी रुकेगी तो सड़क पर चल रही और गाड़ियों को दिक्कत होगी. जाम लगेगा. इसलिए स्टॉप बनाए गए. अब अगर इस रुल में फेरबदल करना होगा तो उसके लिए काफ़ी दिमाग लगाना पड़ेगा. जिससे जाम भी न लगे और विमेन सेफ्टी भी रहे. जैसे ये रूल अगर रात नौ या दस बजे के बाद से लागू होता है तो उस समय सड़क पर उतना ज़्यादा ट्रैफिक होता भी नहीं है.”

वैसे इस मुद्दे पर ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने लॉ डिपार्टमेंट से उनकी राय मांगी है. डिपार्टमेंट ये चाहता है कि बसें अपना रास्ता न बदलें. बस स्टॉप के बदले और भी जगहों अपर रुक सकें.

अगर इसका तोड़ निकल आता है तो लड़कियों को वाकई काफ़ी सहूलियत हो जाएगी.

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