एक मां ने बताया, कैसे अमेरिका ने उसकी डेढ़ साल की बच्ची को मार दिया

"उसके दूसरे जन्मदिन के कुछ ही महीने पहले, मैंने अपनी बच्ची को मरते देखा, धीरे-धीरे, दर्दनाक तरीके से".

"I watched my baby girl die, slowly, and painfully, just a few months before her second birthday,"

“उसके दूसरे जन्मदिन के कुछ ही महीने पहले, मैंने अपनी बच्ची को मरते देखा, धीरे-धीरे, दर्दनाक तरीके से”.

ये शब्द याज्मीन ह्वारेज के हैं. याज्मीन ग्वाटेमाला से भागकर आई थीं, अपनी बच्ची मेरिए के साथ. अमेरिका में शरण लेने. लेकिन इस वक़्त अमेरिका में शरणार्थियों के लिए समय अच्छा नहीं है. अमेरिका के दक्षिणी बॉर्डर पर इस वक़्त काफी ज्यादा बवाल मचा हुआ है. बहुत ज्यादा डीटेल में समझायेंगे तो किताब लिखनी पड़ेगी. इसलिए शॉर्ट में समझ लेते हैं. मसला ये है कि ट्रम्प सरकार ने इम्मिग्रेंट्स के देश में आने पर बहुत सख्ती बरती है. ख़ास तौर से वो जो मेक्सिको और सेन्ट्रल अमेरिका क्षेत्र के देशों से आते हैं. जैसे एल सेल्वाडोर, होंडूरास, ग्वाटेमाला. यहां से जो भी लोग अमेरिका के दक्षिणी बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं, उनके बच्चों को उनसे अलग कर दिया जा रहा है. कई बच्चे अकेले भी बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं. बच्चों को शेल्टर होम्स में रखा गया है जो होम्स कम और दड़बे ज्यादा हैं.

camp-getty_750_071219122209.jpgऐसे ही एक कैम्प की तस्वीर. तस्वीर: Getty

इस पर वहां कई मानवाधिकार एक्टिविस्ट्स इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन ट्रम्प सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही. याज्मीन भी ग्वाटेमाला छोड़कर अमेरिका में एक सुरक्षित भविष्य ढूंढने आई थी. याज्मीन ने बताया ,

"हमने ये सफ़र इसलिए किया क्योंकि हमें जान का खतरा था. ट्रिप खतरनाक थी, लेकिन मुझे इस बात का ज्यादा डर था कि अगर हम वहां रुके तो पता नहीं हमारे साथ क्या होगा. इसलिए हम यूएस आ गए, यहां मुझे उम्मीद थी कि हम एक बेहतर, सुरक्षित जीवन बिता पाएंगे. दुर्भाग्य से, वो नहीं हुआ”.

याज्मीन की बेटी को एक डिटेंशन सेंटर में रखा गया था. इन सेंटरों की बुरी हालत पर अमेरिका में लोग काफी नाराज़ हैं. एक तो बच्चों को उनके मां-बाप से अलग करना. दूसरे, इन बच्चों को ऐसी हालत में रखना उनके लिए खतरे से कम नहीं है.

ये करा कौन रहा है?

इमिग्रेशंस एंड कस्टम्स इन्फोर्समेंट (ICE) अमरीकी सरकार की एजेंसी है. यही कंट्रोल कर रही है कि बॉर्डर पर आने वाले लोगों के बच्चों को उनसे अलग करके कहां और कितने दिनों तक रखा जाएगा. प्रावधान ये कहता है कि नाबालिगों को 20 दिन से ज्यादा कैद में नहीं रखा जा सकता. लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है यहां.

टेक्सस और कैलिफोर्निया में ऐसे शेल्टर चलने वाली प्राइवेट कम्पनियां हैं. क्लिंट नाम की जगह पर बने ऐसे ही शेल्टर (इसे फैसिलिटी भी कहते हैं) में जाने वाले वकीलों ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि सात-आठ साल के छोटे-छोटे बच्चों को मजबूर किया जा रहा है कि वो अपने से छोटे बच्चों की देखभाल करें. बिना डायपर के छोटे बच्चे खुद के ही मल-मूत्र में लिथड़ने को मजबूर हैं, कई बच्चों को उनके कैद होने के बाद से नहाने तक नहीं दिया गया है.

yazmeen-2_750_071219122326.jpgतस्वीर: ट्विटर

न्यूयॉर्क टाइम्स को एलोना मुख़र्जी ने बताया वहां की सिचुएशन के बारे में. एलोना कोलंबिया लॉ स्कूल के इमिग्रेंट्स राइट्स क्लिनिक की डायरेक्टर हैं. वो उन मुट्ठी भर वकीलों में से एक हैं जिन्हें बॉर्डर पर बनी इन डिटेंशन फैसिलिटीज में जाने का मौका दिया गया. उन्होंने बताया.

“बच्चे अपने सेल्स और पिंजरों में पूरे दिन बंद रहते हैं. उनमें से कुछ बच्चों ने कहा कि उनके पास कुछ मौके थे जब वो बाहर जाकर खेल सकते थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वो ऐसा कर नहीं पा रहे क्योंकि वो जिंदा रहने की कोशिश में लगे हुए हैं”.

ऐसे हालात में याज्मीन की बेटी को रखा गया. रिपोर्ट्स ये कहती हैं कि पिछले साल से अब तक तकरीबन सात बच्चों की मौत हो गई है. याज्मीन की बेटी को सांस का इन्फेक्शन हो गया था. याज्मीन ने बताया,

“पहले तो खांसी और छींक शुरू हुई, नाक बहने लगी. मैं उसे क्लिनिक लेकर आई जहां पर कई सारे लोगों के साथ मैं मेडिकल केयर के लिए लाइन में लगी. फिजिशियन के असिस्टेंट ने कहा कि उसे सांस की नली का इन्फेक्शन है और दवा के साथ शहद देने की सलाह दी”.

marie_750_071219123157.jpgयाज्मीन की बेटी मेरिए. तस्वीर: ट्विटर

समय बीतने के साथ मेरिए की तबियत और ज्यादा बिगड़ने लगी. जैसे ही उस फैसिलिटी से निकलने का मौका मिला, याज्मीन सीधे उसे पीडियाट्रिशियन के पास लेकर गई. लेकिन मेरिए बच नहीं सकी. 6 हफ्ते के भीतर उसकी मौत हो गई.

सरकार जब इस पर बात चला रही थी, तब याज्मीन ने अपनी बात सबके सामने रखी. उन्होंने बताया वो वहां इसलिए आईं क्योंकि वो चाहती हैं कि इस पर रोक लगे. इस तरह के अत्याचार पर रोक लगे. अपना बयान देते हुए उनके आंसू छलक आए.

yazmeen-6_750_071219122409.jpgयाज्मीन अपनी बेटी के बारे में बताते-बताते रो पड़ी थीं. तस्वीर: ट्विटर

अभी कुछ ही दिनों पहले एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें जस्टिस डिपार्टमेंट की लॉयर साराह फेबियन ने जज के पूछे गए सवालों के जवाब में कहा कि कैद में रखे गए बच्चों को  साबुन, टूथब्रश और कम्बल की ज़रूरत नहीं. ये सेफ और सैनिटरी की परिभाषा में नहीं आते. 1997 में हुए एक सेटलमेंट के मुताबिक़ किसी भी डिटेंशन फैसिलिटी का सेफ और सैनिटरी यानी सुरक्षित और साफ़ होना ज़रूरी है.

लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

हज़ारों की संख्या में माइग्रेंट बच्चे कंसंट्रेशन कैम्प्स जैसी हालत में रहने को मजबूर हैं. क्योंकि उनके परिवार अपने देशों में हो रही हिंसा और युद्ध से बचकर भाग निकले. किसी भी देश के बॉर्डर पर पहुंच कर शरण मांगना कानूनन अपराध नहीं है. लेकिन इन शरण मांगने आए लोगों को इस तरह ट्रीट किया जा रहा है मानो वो इंसान न होकर अवांछित कीड़े हों जिन्हें क्रूरता से कुचल दिया जाए. इन बच्चों के पास कुछ भी नहीं है.

इनका माथा सहलाने वाले इनके परिवार भी नहीं.

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