कोर्ट में पेशाब आने पर महिला वकीलों को भागकर घर जाना पड़ता है

एक सर्वे के मुताबिक, देश के कई डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में औरतों के लिए टॉयलेट भी नहीं है.

उमा मिश्रा उमा मिश्रा
अगस्त 02, 2019
सांकेतिक तस्वीर.

पीड़ितों को न्याय दिलाने वाली महिलाओं को सरकार एक अदद टॉयलेट भी नहीं दे पा रही है. कोर्ट परिसर में महिलाओं के लिए वॉशरूम नहीं है, जिस वजह से उन्हें दिक्कत होती है. उन्हें बाहर के सुलभ कॉम्प्लेक्स का सहारा लेना पड़ता है. इस पर एक सर्वे भी सामने आया है, जिसमें ये बात सामने आई है.

दरअसल, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की ओर से सर्वे किया गया है. ये सर्वे जिला कोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर पर आधारित है. इसमें सामने आया कि देश के 15 फीसदी कोर्ट कॉम्प्लेक्स में महिलाओं के लिए टॉयलेट नहीं है. और जहां है भी, वहां पर सिर्फ 40 फीसद ही फंक्शनल है. और कुछ साफ-सुथरे नहीं हैं.

इसके अलावा, 39 फीसदी कोर्ट कॉम्प्लेक्स में पोस्ट ऑफिस, बैंक, कैफेटेरिया, फोटो कॉपी की दुकानें, टाइपिस्ट, नोटरी वगैरह हैं, बाकी के कोर्ट में तो बैठने तक की सुविधा नहीं है. जबकि सरकार की ओर से 7 हजार करोड़ रुपए कोर्ट कॉम्प्लेक्स को बेहतर और वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए खर्च किए गए थे.

सर्वे के मुताबिक, बिहार और राजस्थान के कोर्ट में बैठने की जगह नहीं है. जबकि दिल्ली, केरल, मेघालय, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के जिला न्यायालयों की स्थिति बेहतर है. वहीं, बिहार, मणिपुर, नगालैंड, पश्चिम बंगाल और झारखंड के ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति बहुत बुरी है.

सुरक्षा के लिहाज से बात करें तो सिर्फ 11 फीसद कोर्ट कॉम्प्लेक्स में ही वर्किंग बैगेज स्कैनिंग फैसिलिटी है. और बाकी में नहीं.

हमने भी इस सर्वे के बाद महिला वकीलों से बात की.

मध्य प्रदेश के नीमच के डिस्ट्रिक कोर्ट का हाल जानने के लिए हमने वहां की महिला वकीलों से बात की. उन्होंने नाम छापने से इनकार कर दिया. पर उन्होंने बताया कि 15 फीसदी तो बहुत कम है, 80 फीसदी कोर्ट में महिला टॉयलेट की सुविधा नहीं है. सिर्फ पुरुषों के लिए अलग से टॉयलेट बनाये गये हैं. उन्हें जब भी जरूरत होती है, तो वो जज या फिर किसी अन्य अधिकारी के पर्सनल रूम में बने टॉयलेट का इस्तेमाल कर लेते हैं. इसकी भी इज़ाजत उन्हें कभी-कभार ही मिलती है. या फिर उन्हें कंट्रोल करना पड़ता या फिर घर जाना पड़ता है. पीरियड्स के समय काफी दिक्कत होती है.

neemach-750x500_080219071103.jpgनीमच जिला न्यायालय.

छत्तीसगढ़ के रायपुर में वकालत कर रही प्रियंका ने बताया कि कोर्ट में टॉयलेट की सुविधा तो है, पर थोड़ी सफाई की दिक्कत रहती है. हालांकि उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई है. उनका कहना है कि कहीं-कहीं डेवलेपमेंट हो रहा है, जिस वजह से परेशानी हो रही होगी.

उधर, इंदौर में वकालत कर रहीं वर्षा ने बताया कि वहां के जिला न्यायालय में महिलाओं के लिए वॉशरूम हैं, सब फंक्शनल भी हैं. पर सफाई निल है. क्योंकि वहां पानी की किल्लत है. गर्मी के दिनों में और बुरा हाल हो जाता है. पैड कहीं भी पड़े रहते हैं, नालियां चोक हो जाती हैं. सफाई करने वालों से बोलो तो वो कहते हैं कि पानी नहीं है. स्थिति ऐसी हो जाती है कि न हैंडवॉश करने के लिए पानी होता है और न ही फ्लश करने के लिए.

indore-750x500_080219071130.jpgइंदौर जिला न्यायालय.

इंदौर हाईकोर्ट में वकालत कर रहीं अनामिका ने बताया कि कोर्ट में महिलाओं के लिए वॉशरूम की बहुत बुरी हालत है. जिला न्यायालय में तो महिलाओं के लिए कोई टॉयलेट नहीं है. कॉम्प्लेक्स के बाहर एक सुलभ शौचालय है, सबको वहीं जाना पड़ता है. यही हाल खंडवा, सतना के न्यायालयों का भी है. कॉमन टॉयलेट है, महिलाओं के लिए अलग से नहीं है. बहुत परेशानी होती है. कई जगह है नहीं और जहां हैं वहां पर गंदगी है. कुछ जगहों पर ही साफ-सफाई है.

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