साध्वी कमलेश: 800 अनाथ लड़कियों को पालने वाली औरत, जिसके पढ़ने पर लोग तमतमा गए थे

18 सालों से अनाथ लड़कियों को मां की तरह पाल रही हैं

लालिमा लालिमा
जनवरी 17, 2019
विद्यापीठ की एक बच्ची के साथ साध्वी कमलेश भारती. फोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

'क्या करोगे लड़की को पढ़ाकर? लड़की की कमाई खाओगे? ज्यादा पढ़ाओगे तो लड़की ज्यादा उड़ने लगेगी? कॉलेज क्यों भेज रहे हो? वहां अगर कोई लड़का उसे पसंद आ गया, तो वो भाग जाएगी? नाक कट जाएगी तुम लोगों की. लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना ही नहीं चाहिए. उन्हें तो घर का काम करना होता है. पढ़कर क्या करेंगी लड़कियां?'

ये बात अक्सर ही, उन लड़कियों के मां-बाप को सुननी पड़ती है, जो अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते हैं. अड़ोस-पड़ोस के लोग, जो खुद को उस लड़की और उसके परिवार का 'शुभचिंतक' बताते हैं, ऐसी बातें कहते हैं. यही बात साध्वी कमलेश भारती के माता-पिता को भी सुननी पड़ी थी. साथ ही कमलेश को भी ऐसे कई सारे ताने सुनने पड़े थे. आज से कई साल पहले. उस वक्त सुनने पड़े थे, जब उन्होंने कॉलेज जाना शुरू किया था.

1_750x500_011719055320.jpgमातृ आंचल कन्या विद्या पीठ में पढ़ने वाली बच्चियां. फोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

लोगों की ऐसी बातें, कमलेश को इस कदर चुभीं, कि उन्होंने कुछ नया और सबसे अलग करने का ठान लिया. वो आगे बढ़ते चली गईं. और खोल दिया सबसे अनोखा विद्या पीठ. अनाथ लड़कियों के लिए, हरिद्वार में. नाम है- मातृ आंचल कन्या विद्या पीठ. अभी तक ये विद्या पीठ, करीब 800 अनाथ लड़कियों की जिंदगी बना चुका है.

7_750x500_011719055354.jpgसाध्वी कमलेश भारती. फोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

क्या है कमलेश की पूरी कहानी, और कैसे उन्होंने ये विद्या पीठ को खोला, जानिए पूरी कहानी-

- कमलेश भारती, साध्वी हैं. 71 साल की हैं. दिल्ली में जन्म हुआ, यहीं पली-बढ़ीं. विद्या पीठी पढ़ाई भी यहीं से, और कॉलेज की पढ़ाई भी दिल्ली से की. छोटी थीं, तब परिवार काफी बड़ा था. बहुत सारे लोग रहते थे साथ में. ज्वॉइन्ट फैमिली थी. 16 साल की थीं, तब तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. एक बड़ा भाई था, बहुत अच्छी बनती थी बड़े भाई से. बहुत मानती भी थीं अपने भाई को.

- फिर आया 1 जनवरी 1965 का वो दिन, जिसने कमलेश की जिंदगी बदल दी. उस दिन उनके भाई की ब्रेन हेमरेज की वजह से मौत हो गई. कमलेश बहुत टूट गईं. वो बताती हैं, 'मेरे लिए वो वैराग्य की चरम सीमा थी. वो मेरे भाई ही नहीं, बल्कि एक पिता भी थे, एक मां भी थे. पूरी दुनिया थे वो मेरे लिए. उन्होंने अपने आखिरी समय में मेरे से कहा था कि कमलेश तुम पढ़ाई करना खूब. और लड़कियों के लिए काम करना. देश के लिए काम करना.'

2_750x500_011719055410.jpgफोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

- कमलेश ने अपने भाई की बात रखी. उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी. उस समय में, जब लड़कियों को 16 की होते के साथ ही शादी कर देते थे. आगे पढ़ने ही नहीं देते थे. कमलेश ने कॉलेज में दाखिला लिया.

- जब उन्होंने कॉलेज में एडमिशन लिया, तब लोगों ने उनके माता-पिता को कई ताने मारे. साथ ही कमलेश को भी बहुत ज्यादा अजीब-अजीब बातें कहीं. वही बातें कही, जो आपने सबसे ऊपर पढ़ी है. लोगों की ताने सुनकर कमलेश ने एक फैसला लिया. कैसा फैसला? लोगों के मुंह पर ताला लगाने का फैसला लिया. उन्होंने सोचा कि अब वो खुद को इस काबिल बनाएंगी कि लोग उन्हें कुछ भी न कह सकें.

- कमलेश कहती हैं, 'मैंने उसी वक्त सोच लिया, कि ये जो लोग फालतू की बातें कर रहे हैं, मैं उनके मुंह पर ताला लगाऊंगी. शादी नहीं करूंगी, खूब पढ़ाई करूंगी. कुछ भी ऐसा करूंगी, जिससे ये लोग चुप हो जाएं. लेकिन क्या करूंगी, उस वक्त कुछ डिसाइड नहीं किया था. लेकिन सोच लिया था कि कुछ तो ऐसा करूंगी, जो सबसे हटकर होगा. इस इरादे को लेकर मैंने बीए किया. हिंदी में, और पॉलिटिकल साइंस में एमए किया. एजुकेशन एंड रिसर्च में डिप्लोमा किया.'

17daeead-92db-47e5-8ad8-b4e2733a32bf_750x500_011719055427.jpgफोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

- कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद, कमलेश ने एक कोचिंग सेंटर खोला, गरीब बच्चों के लिए, दिल्ली में ही. दिल्ली के सीलमपुर इलाके में कमलेश रहती थीं. उनके घर के पास एक कारखाना था. ये कारखाना मुस्लिम परिवार का था. इस कारखाने में छोटे बच्चे साड़ियों की कशिदाकारी सीखते थे.

- कारखाने के मालिक को कमलेश उस्ताद कहती थीं. रक्षाबंधन के दिन उस्ताद ने कमलेश से राखी बांधने की बात कही. तब कमलेश ने बहुत ही अलग तरह का गिफ्ट मांगा. कहा कि वो उनके कारखाने के बच्चों के रोजाना के तीन घंटे चाहती हैं. और इन तीन घंटों में वो उन बच्चों को पढ़ाएंगी. उस्ताद मान गए. कमलेश को राखी गिफ्ट मिल गया, और खुल गया उनका कोचिंग सेंटर. कुछ सालों बाद कमलेश ने संन्यास ले लिया.

- 1988 में विश्व हिंदू परिषद से जुड़ीं. हरिद्वार आईं. यहां पर भी सोशल वर्क करने लगीं. कमलेश अभी भी ज्यादातर समय हरिद्वार में ही रहती हैं. यहीं पर उन्होंने 2000 में नींव रखी- मातृ आंचल कन्या विद्या पीठ की.

4_750x500_011719055448.jpgफोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

- हुआ ये कि साल 2000 में समाजसेवी प्रह्लाद को मथुरा रेलवे स्टेशन पर एक अनाथ बच्ची मिली. वो उस बच्ची को लेकर कमलेश के पास पहुंच गए. कहा कि कमलेश बच्ची की देखभाल करें. उन्होंने बच्ची को अपने साथ रख लिया. यहीं से शुरू हुआ, अनाथ बच्चियों को पालने और उनका पालन-पोषण करने का सिलसिला.

- बच्ची के आने से कमलेश को एक नई प्रेरणा मिल गई थी. उन्होंने अपने विद्या पीठ की नींव रखी. धीरे-धीरे विद्या पीठ में अनाथ बच्चियों की संख्या बढ़ने लगी. इस विद्या पीठ में बच्चियों को पढ़ाया जाता है. लड़कियां अपने पैरों में खड़े होकर कुछ कर सकें, इस काबिल बनाया जाता है. पेंटिग करना सिखाया जाता है. और हैंडीक्राफ्ट भी सिखाया जाता है.

5_750x500_011719055458.jpgफोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- मुदित अग्रवाल)

- अभी तक करीब 800 लड़कियां इस विद्या पीठ से पढ़कर निकल चुकी हैं, और समाज की मुख्य धारा से जुड़ चुकी हैं. 17 लड़कियों की शादी भी यहीं से हुई है. विद्या पीठ में पढ़ने वाली लड़कियों को कमलेश मां की तरह प्यार देती हैं. अभी इस मातृ आंचल में करीब 75 लड़कियां रह रही हैं.

- साध्वी कमलेश कहती हैं, 'मैं चाहती हूं कि देश की हर लड़की सशक्त बने. सुरक्षित रहे. ये जरूरी नहीं कि वो बहुत बड़ी चैम्पियन बने, बड़ी नेता बने, या कुछ और बने. जरूरी ये है कि वो सशक्त रहे. कुछ अच्छा करे. सुरक्षित रहे. अपने पैरों में खड़ी रहे. एक अच्छी समाज सेविका बने. एक अच्छी मां बने.'

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