औरतों की हर समस्या के सामने दीवार बन कर खड़ी हो जाती हैं 70 साल की ये 'आयरन लेडी'

पूरी ज़िंदगी दूसरों को दान दे दी इस 70 साल की महिला ने.

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
जनवरी 15, 2019
झारखंड की आयरन लेडी सरस्वती सिंह. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/संजय कुमार

'50 साल हो गए हैं इनको ऐसा करते. सबकी मदद करती हैं. झगड़ा होता है तो उसका समाधान करती हैं. सबको सम्मान दिलाकर ही दम लेती हैं. उन्हीं के कारण हमें जनवितरण केंद्र मिला है.'

ये कहना है फुलमन देवी का. और ये बात कर रही हैं झारखंड की आयरन लेडी के बारे में.

कौन हैं आयरन लेडी और क्या करती हैं ये?

झारखंड के एक छोटे से गांव में सरस्वती सिंह नाम की महिला रहती हैं. गांव में कोई भी समस्या हो, कोई परेशानी हो सब लोग इनके पास आते हैं. वो सबकी मदद करती हैं. लोगों के झगड़े भी सुलझाती हैं. बोकारो से 45 किमी दूर कसमार तहसील का गांव, कर्मा. 70 साल की सरस्वती सिंह इस ही गांव में रहती हैं. इन्हें सब लोग आयरन लेडी कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सरस्वती सिंह 50 सालों से भी ज़्यादा से लोगों की मदद करती आ रही हैं. उन्होंने शादी तक नहीं की. अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया. वो उन महिलाओं की लड़ाई लड़ती हैं जिन्हें घर या बाहर के लोग किसी न किसी प्रकार से प्रताड़ित कर रहे हैं. वो उनकी पूरी लड़ाई लड़ती हैं, जब तक की पीड़ित महिला को न्याय न मिल जाए. उसके अधिकार और आत्मसम्मान को वापस दिला कर ही दम लेती हैं सरस्वती सिंह. वो महिलाओं को मानसिक तौर पर सशक्त करने का भी काम करती हैं. उन्हें हर तरह से तैयार कर देती हैं ताकि कोई भी व्यक्ति उनका शोषण न कर सके. और अगर कोई उनका शोषण करने की कोशिश करे तो वो उससे लड़ सकें.

sarswati-singh_iron-lady-4_750x400_011519052435.jpgमहिलाओं की मदद करना ही आयरन लेडी के जीवन का लक्ष्य है. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/संजय कुमार

सरस्वती सिंह गांव के उन महिलाओं की मदद करती हैं जो अपने हक के बारे में जानतीं तक नहीं. जिन्हें ठीक से हिंदी बोलना तक नहीं आता. न ही वो किसी के सामने अपनी बात रख पाती हैं. ऐसी महिलाओं की मदद कर सरस्वती सिंह उन्हें सशक्त बनाने की कोशिश करती हैं.

sarswati-singh_iron-lady-2_750x400_011519053654.jpgआयरन लेडी को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/संजय कुमार

लोगों की इतनी मदद करने वाली सरस्वती सिंह बदले में उनसे कुछ नहीं मांगतीं. उनके पास कोई धन-दौलत नहीं है. एक कमरे के इंदिरा निवास में वो अकेले रहती हैं. 70 साल की ये महिला रोज़ सुबह साइकल से गांव-गांव जाकर महिलाओं की मदद करती है. छुआ-छूत, डायन प्रथा, दहेज़ और पारिवारिक झगड़ों को सुलझाने के लिए कानून का सहारा लेने से नहीं कतरातीं. वो अब तक सैकड़ों महिलाओं को न्याय दिला चुकी हैं. हर रोज़ घूम-घूमकर पीड़ित महिलाओं की खोज-खबर लेती हैं. उन्होंने शोषित महिलाओं के लिए एक गीत भी लिखा है. उसे सुना कर लोगों को जागरुक करने का काम करती हैं.

sarswati-singh_iron-lady-1_750x400_011519052504.jpgरोज़ सुबह साइकल से गांव-गांव जाकर महिलाओं की मदद करती हैं सरस्वती सिंह. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/संजय कुमार

सरस्वती सिंह बताती हैं कि जब वो 14 साल की थीं तो उनकी ममेरी बहन को ससुराल वाले परेशान कर रहे थे. तब उन्होंने अपनी बहन के लिए लड़ाई लड़ी. तब से आज तक वो दूसरों की मदद करने के लिए ही जी रही हैं. उन्होंने पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया. पहले उन्हें बहुत समस्याएं होती थीं लेकिन अब सब लोग उन्हें जानते हैं. बीडीओ या थानेदार को भी अगर वो किसी भी व्यक्ति की मदद के लिए फोन करती हैं तो वो लोग उनकी बात को तवज्जो देते हैं. सरस्वती देवी से बात की हमारे रिपोर्टर संजय कुमार ने. वो कहती हैं-

'14 वर्ष की उम्र से ही, मेरी ममेरी बहन के साथ जो अत्याचार जीजाजी करने लगे, इसकी लड़ाई हमने जारी रखी. और उस लड़ाई में जीत हासिल की. इस ही के साथ गांव-पंचायत में औरतों के साथ काम करना, उनके सुख-दुख में साथ देना, उन्हें तंग करने वालों के खिलाफ लड़ाई लड़ना. औरतों को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना, डायन कहकर छोड़ देना, किसी के साथ मार-पीट, छुआ-छूत जैसी घटनाएं होती रहती हैं. मैं इन सभी के खिलाफ लड़ती हूं.'

 

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