'गली बॉय' की सफ़ीना: कबीर सिंह से 10 गुना बेहतर किरदार, जो चाकू की नोक पर रेप की कोशिश नहीं करती थी
सफ़ीना का गुस्सा, उसकी परवरिश का गुस्सा था. कबीर सिंह के पास क्या वजह थी?
“अरे यार! पिक्चर ही तो है. इतना हंगामा क्यों मचा रखा है. ‘गली बॉय’ देखी है? उसमें आलिया भी तो ‘कबीर सिंह’ जैसी ही थी.”
“सफ़ीना लड़कियों को पीटे तो चलता है, वही काम प्यार और जलन में लड़का करे तो गुनाह?”
“’गली बॉय’ के समय तो किसी ने शोर नहीं मचाया, ‘कबीर सिंह’ पर हंगामा क्यों मचा हुआ है?”
ऐसी बातें हर तरफ़ से सुनाई दे रही हैं. वजह? शाहिद कपूर और कियारा आडवानी की नई फ़िल्म ‘कबीर सिंह’. ये तेलगु फ़िल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ की रीमेक है.
फिल्म में शाहिद कपूर का किरदार एक गुस्सैल आदमी है. जो एक लड़की से अलग होने के बाद बदहवास हो जाता है. ख़ुद को बर्बाद करने पर तुला है. वैसे दिल टूटने से पहले भी वो कोई फ़रिश्ता नहीं था. कॉलेज में एक लड़की को देखते ही पसंद कर लेता है. अपनी जूनियर. उसकी मर्ज़ी पूछे बिना ऐलान कर देता है कि वो उसकी है. मिलते ही उसे किस करता है. जब लड़की के घरवाले नहीं मानते तो उसके मां-बाप से बदतमीज़ी करता है. लड़की को थप्पड़ मार देता है. उसे ज़लील करता है. एक कांच का ग्लास टूट जाने पर अपनी काम वाली बाई को मारने दौड़ता है. गालियां देता रहता है. लोगों को पीटता रहता है. लड़की सेक्स करने से मना कर देती है तो उसका रेप करने की कोशिश करता है.
अब इतनी तारीफ़ सुनकर आपको लग रहा होगा कि कैसा आदमी है. पर नहीं, जनता इस आदमी को पसंद कर रही है. इस रोल को पसंद कर रही है. तालियां बज रही हैं. कुछ हिमायती whataboutism पर उतर आए हैं. पूछ रहे हैं ये किरदार ही क्यों, वो क्यों नहीं.
गली बॉय में सफ़ीना से तुलना
कुछ समय पहले रणवीर सिंह और अलिया भट्ट की एक फ़िल्म आयी थी. 'गली बॉय'. उसमें सफ़ीना का रोल एक ऐसी गर्लफ्रेंड का था जो अपने बॉयफ्रेंड को लेकर काफी असुरक्षा का भाव रखती है.
जब उसे पता चलता है कि उसके बॉयफ्रेंड को एक लड़की ने मेसेज किया है तो वो लड़की को पीट डालती है. एक दूसरी लड़की के सर पर बोतल फोड़ देती है. अब लोगों का कहना है कि जब इस रोल की आलोचना नहीं हुई तो कबीर सिंह की क्यों हो रही है?
सफ़ीना और कबीर सिंह एक जैसे नहीं हैं. इन बातों पर गौर कीजिए.
1. सफ़ीना एक मुस्लिम लड़की है. जिसे बचपन से बहुत पाबंदियों का सामना करना पड़ा है. उसे पढ़ने के लिए भी अपनी मां से लड़ना पड़ता है. वो उसकी शादी करवा देना चाहते हैं. सफ़ीना को बगावत करनी पड़ी है. लड़ना पड़ा है. उसे कहते हैं ‘रेबेल विद अ कॉज़.’ यानी उसके पास विद्रोह करने की वजह है. बचपन से जिसे दबाया गया, उसके एंगर इशूज को कम से कम हम एक बैकग्राउंड के साथ देख सकते हैं.
कबीर सिंह पूरी पिक्चर में खुद को ‘रेबेल विद अ कॉज' बताते हैं. अपने गुस्से को जायज़ ठहराने की कोशिश की. पर इनका विद्रोह है किसके खिलाफ़? क्या इनको बचपन से सर ढंकने के लिए कहा गया? पढ़ने से रोका गया? ज़बरदस्ती शादी करवाने की कोशिश की गई? जवाब है नहीं.
सफ़ीना एक मुस्लिम लड़की है. जिसे बचपन से बहुत पाबंदियों का सामना करना पड़ा है. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
2. कबीर सिंह की मेन दिक्कत है उसको अपने पौरुष पर बहुत नाज़ है. वो मर्द है. मर्दों को गुस्सा करने का हक़ है. लोगों को पीटने का हक़ है. कोई उसकी बात से अग्री नहीं करे तो उसको ज़लील कर मारने का हक़ है. ऐसा वो समझता है. और पूरी फ़िल्म में वो वही करता है. सफ़ीना एक लड़की है. उसका बिहेवियर में अकड़ है. पर उस अकड़ के पीछे कोई सुपीरियॉरिटी की भावना नहीं है.
3. सबसे बड़ी बात. सफ़ीना की सेक्स्शुअलिटी कंट्रोल में है. वो किसी आदमी का रेप करने की कोशिश नहीं करती है. कबीर सिंह का अपने आप पर काबू नहीं है. फ़िल्म से शुरुआत ही ऐसे सीन से होती है. उसमें वो एक महिला को चाकू की नोंक पर कपड़े उतारने के लिए कह रहा है. ये काम कोई विलन नहीं कर रहा. पिक्चर का हीरो कर रहा है. लोग तालियां बजा रहे हैं. हंस रहे हैं. उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं लग रही है. और यही परेशानी की वजह है.
पिक्चर का हीरो रेप करने की कोशिश कर रहा है. लोग तालियां बजा रहे हैं. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
4. गली बॉय में सफ़ीना का रोल लगभग कॉमिक है. उसकी हरकतों पर हंसी आती है. कबीर सिंह से डर लगता है.
5. दोनों की किरदारों का फ़िल्म में दिल टूटता है. पर उससे निपटने का तरीका दोनों का एकदम अलग था. सफ़ीना रिश्ता टूटने के बाद भी अपने करियर पर फ़ोकस्ड थी. वहीं कबीर सिंह ख़ुद को नशे में डूबा लेता है. अपना गुस्सा दूसरों पर निकालता है. डॉक्टर होकर नशे में सर्जरी करता है. दलील देता है कि उसके बावजूद भी किसी पेशेंट की जान ख़तरे में नहीं आई. ख़ुद का और अपने आसपास वालों का जीना हराम कर देता है. ये दिखाता है दोनों किरदारों का ट्रेजेडी से निपटने का तरीका.
6. अब आते हैं दोनों के गुस्से पर. सफ़ीना और कबीर सिंह. दोनों गुस्सैल. लोगों को पीट देते हैं. पर दोनों में एक बहुत बड़ा फ़र्क है. गली बॉय में सफ़ीना को अपनी गलती का एहसास होता है. ये फ़िल्म का हिस्सा है. जब वो गलती करती है तो फ़िल्म में उसे गलती की तरह दिखाया जाता है. उसे माफ़ नहीं किया जाता. कबीर सिंह के साथ ऐसा नहीं है. उसकी गलतियां फ़िल्म में बाकी किरदार के साथ-साथ देखने वाली जनता भी माफ़ करती जाती है. कबीर जो करता है उसे उसका पछतावा नहीं होता.
कबीर सिंह की गलतियां फ़िल्म में बाकी किरदार के साथ-साथ देखने वाली जनता भी माफ़ करती जाती है. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
हां, दोनों ही फ़िल्में है. कल्पना पर आधारित हैं. पर कबीर सिंह के रोल से लोगों की सिम्पथी डराने वाली है. सफ़ीना की गलतियों का बचाव करने के लिए जमात खड़ी नहीं हुई थी.
कबीर सिंह के खिलाफ सफ़ीना को लेकर आना, और ये मानना की जेंडर-न्यूट्रल हम तभी हो सकते हैं, जब दोनों की बुराई करें, गलत है. एक रेप की कोशिश करने वाले किरदार को जस्टिफाई करने के लिए चिराग लेकर उसके बराबर का महिला किरदार खोजना आपके बारे में कुछ कहता है.
कहता है कि आप स्त्री विरोधी हैं.
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