डियर आयुषी,कुछ नहीं रखा बड़ा होने में
ऐसा बहुत कुछ है जो बड़े होने पर खो जाएगा
आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं.
डियर आयुषी,
तुम ये जो रोज रोज कहती हो न, 'पापा मैं बड़ी कब होऊंगी.' ये कहना बंद कर दो. कुछ नहीं रखा बड़ा होने में. बस जैम खाने से पहले मम्मी से पूछना नहीं पड़ेगा. खेलने जाने के लिए बहाने नहीं बनाने पड़ेंगे. फ्रिज से चीजें नहीं चुरानी पड़ेंगी. स्कूल नहीं जाना पड़ेगा. होमवर्क से जी नहीं चुराना पड़ेगा. सड़क पर मम्मी का हाथ पकड़कर नहीं चलना पड़ेगा. कार्टून देखने के लिए सोते हुए पापा का अंगूठा लगाकर मोबाइल का लॉक नहीं खोलना पड़ेगा. एक चॉकलेट के लिए मम्मी पापा के आगे पीछे नहीं घूमना पड़ेगा. कुल मिलाकर बड़े हो जाने पर अपनी मर्जी की मालिक हो जाओगी. जो कि तुम अभी से हो. हमारी बात कहां सुनती हो.
और ऐसा बहुत कुछ है जो बड़े होने पर खो जाएगा. एक दिन तुम हमारे साथ बैठकर फिल्म देख रही थी. एक तो हमको तुम्हारे साथ पिच्चर देखना पसंद नहीं है. 2 घंटे की फिल्म साढ़े चार घंटे में खतम होती है. तुम उसको बीच में रोककर हर सीन का एक्सप्लानेशन मांगती हो. जैसे एक दिन तुमने बीच में स्पेस दबाकर पूछा था- पापा बड़े लोग भी ऐसे रोते हैं क्या? इसके आंसू क्यों निकल रहे हैं? इसकी मम्मी ने मारा क्या? इसके बच्चे ने चॉकलेट छीन ली क्या?
सांकेतिक तस्वीर: pinterest
अब इसी बात से तुमको समझाता हूं कि बड़े होकर क्या क्या खो जाता है. आंसू खो जाते हैं. तुम जैसे दिन में 8 से 10 बार रोती हो. बड़े लोग ऐसे दो चार साल में एक बार रोते हैं. बड़े लोग मम्मी के मारने पर नहीं रोते. उस पर तो उनको मजा आता है. और परेशान करते हैं. उनकी आंखों से आंसू तभी निकलते हैं जब उनके हाथ से सब कुछ निकल जाता है. जब सामने कोई रास्ता नहीं दिखता तभी वो रोते हैं. पब्लिक में नहीं रोते, अकेले में रोते हैं. अपनों के सामने नहीं रोते ताकि उनकी हिम्मत न कमजोर हो. कभी कभी सिर्फ उसके सामने रोते हैं जो बेहद खास हो. बहुत सारे लोग तो ऐसे हो जाते हैं कि किसी के मरने पर भी नहीं रो पाते. रोने की सुविधा बड़े होने पर बहुत सीमित हो जाती है.
बड़े होने की एक और बड़ी कीमत चुकाते हैं. संवेदना. जितनी संवेदना तुम्हारे अंदर 6 साल में है ये 26 साल में नहीं रहेगी. अभी तुम बारिश में भीगते पिल्लों को पकड़कर शेड के नीचे रखती हो. वो फिर तुम्हारे पीछे भागकर बारिश में आ जाते हैं. तुम फिर उन्हें छाया में ले जाती हो. वो फिर तुम्हारे पीछे आ जाते हैं. न वो थकते हैं न तुम. तुम जानती हो कि उन्हें तुम्हारी जरूरत है. भले उनको न हो. लेकिन तुम्हारी संवेदना, तुम्हारा प्यार से भरा हुआ दिल सबके लिए चिंतित रहता है. तभी तुमने फिल्म में किसी बड़े को रोते देखकर पूछा था.
मुझे कभी कभी लगता है कि बड़ी होने पर तुम मुझसे दूर न हो जाओ. लेकिन फिर तुरंत ही ये खयाल बैक गियर में आ जाता है क्योंकि तुम तो मेरी बच्ची हो. तुम जितनी समझदार होती जाओगी उतना ही मुझसे करीब होती जाओगी. मैं आजकल की लड़कियों को देखता हूं कि वो अपने पापा से बात करते समय, उनके गले से झूलते समय सारे सामाजिक नियम कायदे ताक पर रख देती हैं. मुझे वो बेटियां बहुत अच्छी लगती हैं. मुझे भरोसा है कि तुम छोटी होकर जितनी बड़ी हो, बड़ी होकर मेरे लिए उतनी ही छोटी रहोगी.
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