डियर आयुषी, मैं तुम्हें ऐसी दुनिया देना चाहता हूं जहां तुम्हारा हाथ पकड़ने की जरूरत न पड़े

मैं तुम्हें ऐसी जगह ले जाना चाहता हूं जो बच्चों की अय्याशी का अड्डा हो

आशुतोष चचा आशुतोष चचा
जनवरी 03, 2019

आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं. 

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डियर आयुषी,

नए साल में ये पहली चिट्ठी है. पुराने साल में मैंने क्या अच्छा किया, दिमाग पर बहुत सारा जोर डालने पर भी नहीं याद आता. नहीं इसका मतलब ये नहीं कि मैंने कुछ बेहतर किया ही न हो, दरअसल मेरी मेमोरी ही कमजोर है. हां मैंने इस साल कुछ यादगार नहीं किया ये सच है. सिवाय इसके कि मैंने तुम्हें चिट्ठियां लिखना जारी रखा. ये इसलिए याद रहा क्योंकि महा आलसी होने के बावजूद ये हर हफ्ते लिख पाया. इस साल भी मैं अपने मन के भाव सार्वजनिक रूप से तुम्हारे लिए लिखता रहूंगा ऐसी उम्मीद है. और ये साल बीतने पर इस बार की तरह अफसोस नहीं होगा ऐसी भी उम्मीद है. 

 हां तो पता है बीते हफ्ते क्या हुआ? मैंने तुम्हारे साथ बहुत सारी एनीमेशन फिल्में देखीं. सिंग, मोआना, सीक्रेट लाइफ ऑफ पेट्स, पीटर रैबिट और पता नहीं कौन कौन सी. सारी की सारी भयंकर मजेदार. सभी में कोई न कोई अच्छी शिक्षा, आपसी प्यार, और मोटीवेशन की कहानियां. तुम लोगों का बचपन कितना हाईटेक है यार. पता नहीं तुम इसे उतना एंजॉय कर रही हो या नहीं जितना करना चाहिए. कितना कुछ है तुम्हारे पास करने को, देखने को और खेलने को. स्कूल में खेलना कूदना, घर में खेलना कूदना, कार्टून से थक जाओ तो दोस्तों के साथ, उनसे पक जाओ तो मम्मी पापा के साथ. कितना बिजी शेड्यूल है यार तुम्हारा. मजा आता है तुमको मस्ती करते देखकर.

harvard-global-750x500_010319081921.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

तुमको क्या बताएं यार हमारे बचपन के किस्से. वो दर्दभरी दास्तां, तुम्हारे आंसू निकलने लगेंगे जिनमें चप्पलें तैरने लगेंगी. अमा हटो तुमको कुच्छो फर्क न पड़ेगा. फिर भी बताते हैं. हमारे एंजॉयमेंट के साधन जितने सीमित थे उतना ही ज्यादा मजेदार. हम गांव में लगने वाले मेलों में जाते थे और वहां से वो वाले छोटे कैमरे लाते थे जिनमें रील रहती थी. उसके लेंस से देखने पर उस रील पर हीरो हिरोइनों के फोटू दिखते थे. या कार्टून कैरेक्टर्स या क्रिकेटर्स दिखते थे. हम वहां से गुलेल लाते थे और निशानेबाजी करते थे. हम किताबों की दुकान से किराए पर कॉमिक्स लाते थे. एक दिन के लिए अठन्नी लगती थी. आईमीन पचास पैसे. और बहुत सारे खेल थे हमारे पास. गुल्ली डंडा, कबड्डी, छुपन छुपाई और पता नहीं क्या क्या.

youtube-scr-750x500_010319081953.jpgसांकेतिक तस्वीर: यूट्यूब स्क्रीनशॉट

 लेकिन वो सब हमारे लिए मनोरंजक था, तुमको पकाऊ लगेगा. ये बकैती सुनकर या पढ़कर पता नहीं तुमको कैसा लगेगा. लेकिन यहां तुम्हें एक बात बताना चाहूंगा. मेरी एक दोस्त ने कहा कि तुम अच्छे मम्मी पापा हो. अपनी बच्ची को टाइम देते हो. उसकी तो फुल ऐश है. तारीफ सुनकर कलेजे में ठंडक तो पड़ती है लेकिन ये बात आधी सच है. मतलब हम अच्छे मम्मी पापा तो हैं ;) लेकिन तुम्हारी ऐश अभी कम है. मैं चाहता हूं कि मुझमें थोड़ा धैर्य और आए. तुमको मेले या किसी प्रदर्शनी में लेकर जाता हूं तो तुमको कंट्रोल करना पड़ता है. न करूं तो तुम उस जगह को मलबे में बदल दोगी. अगर तुम सोच रही हो कि मैं तुम्हें सही-गलत बताने वाला हूं तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. यहां सब कुछ पहले से गलत है. मैं तुम्हें ऐसी जगह ले जाना चाहता हूं जो बच्चों की अय्याशी का अड्डा हो. जितना चाहो खेलो और तोड़ फोड़ करो. किसी तरह की रोक टोक न हो. इन शॉर्ट, मैं तुम्हें ऐसी दुनिया देना चाहता हूं जहां तुम्हारा हाथ पकड़ने की जरूरत न पड़े.

 

 

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