फादर्स डे पर पढ़िए एक देसी पापा की अपनी बेटी को चिट्ठियां

जिस माहौल में पिताओं का मकसद सिर्फ बेटियां को ब्याहना होता है, उस माहौल में एक पिता आपसे कुछ कहना चाहता है

ऑडनारी ऑडनारी
जून 16, 2019
सांकेतिक इमेज- Pixabay

हमारे पुराने साथी आशुतोष ‘चचा’ अपनी बेटी आयुषी को चिट्ठियां लिखते हैं. मार्च तक उनकी ये चिट्ठियां हमारे कॉलम ‘डियर आयुषी’ में छपती थीं. उन्हीं की कुछ बेहतरीन चिट्ठियां आज आप यहां  पढ़ सकते हैं, फादर्स डे के मौके पर.

1. डियर आयुषी,

तुम्हारी वजह से हालत खराब हो गई है. लिखना पढ़ना सब बंद है. लिखने के लिए एकाग्रता चाहिए, जो तुम्हारे सोने के बाद मिलती है. तुमको सुलाने के चक्कर में खुद सो जाते हैं. फिल्में देखना चाहें तो साथ बैठकर टुकुर टुकुर देखती रहती हो. सारा टाइम तुम्हारे साथ खेलना मेरी ड्यूटी है. रोज़ नए-नए खेलों का आविष्कार करती हो. मजा हमको भी खूब आता है तुम्हारे साथ खेलने में. लेकिन क्या करें, हमारे पास है काम. ढेर सारा काम. वो काम न भी कर रहा होऊं तो उसके बारे में सोच रहा होता हूं. इसी चक्कर में दुनिया से कट-पिट गए हैं.

एकदम से कट गए हों ऐसा भी नहीं है. अपने मम्मी पापा से बात जरूर करते हैं. ऐसे ही एक दिन मम्मी ने, मेरी मम्मी ने फोन करके कहा था कि अब एक बेटा भी होना चाहिए. आयुषी बड़ी हो गई है. उसको साथ खेलने के लिए कोई चाहिए. उनकी बात में मुझको दम लगा. अपना सिरदर्द किसी और को देकर कितना मजा आता है. दो बच्चे साथ में लड़ें. सिर फोड़ें, अपने को क्या. फिर उन्होंने कहा कि संपत्ति का वारिस भी तो चाहिए. फिर तो मेरे फेफड़े फूल गए. मैंने कहा, हां यार. अगर बेटा नहीं हुआ तो ये दिल्ली का लालकिला खाली पड़ा है, फतेहपुर में वो बड़ा सा दरवाजा फेंका हुआ है, आगरे में दो प्रॉपर्टीज टूरिस्ट्स के लिए छोड़ रखी हैं, ये सब किसके नाम करूंगा.

brandi-ibrao-1066055-unsplash_061619120834.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

ये सुनकर मम्मी भी हंसने लगीं. उनका चलता है, वो कुछ भी कह सकती हैं. लेकिन मेरी शादी से भी पहले मुझे पता था कि मेरी बेटी होगी. क्योंकि मेरी इच्छा यही थी. जब तुम पैदा हुई तो मैं बहुत खुश था. अपने हाथ के अंगूठे के बराबर तुम्हारे पैर का पंजा देखा. तुम्हें गोद लेने में भी डर लग रहा था कि हाथ से दब न जाओ. 24 साल की उम्र थी मेरी उस वक्त. इतना सब कुछ इतनी जल्दी देख लिया था. यहां लोग 35-40 साल की उम्र तक बच्चे के लिए तैयार नहीं रहते. मैं बिना तैयारी के तैयार बैठा था. अब तुम्हें देखकर लगता है कि तुम मेरे साथ साथ बड़ी हो रही हो. अगले 8-10 साल में तुम मुझसे भी बड़ी हो जाओगी.

मैंने फिल्मों में देखा, कहानियों में पढ़ा, शायरों-कवियों से सुना, सब बेटियों का महिमागान करते हैं. मुझे कभी न समझ में आया कि अगर सभी बेटियों के बाप इतनी कोमलता से भरे हैं तो बेटियों की हालत इतनी खराब क्यों है. बेटी को बचाने के नारों की जरूरत क्यों पड़ती है. मैंने देखा कि इधर तीन-चार दिन मेरी तबीयत खराब थी. तुम अपने नन्हें हाथों से मेरा सिर दबाती रहती थी. बड़ी देर तक, बिना थके. तुम्हारे छोटे हाथों की छुअन भर से मेरा दर्द खतम हो जाता है. और मैंने हर बेटी को ऐसे ही देखा है. जो अपने परिवार को हर तकलीफ से बचा लेना चाहती है. बेटियां अपने पापा को संभालती हैं, जब उनको तकलीफ हो तो वो दादी अम्मा बनने लगती हैं. बहन हों तो वो भाई के राज़ छिपाकर रखती हैं. बहनें अपने भाइयों की ऑनर किलिंग का हिस्सा नहीं बनतीं. इतनी संवेदना और इतना प्यार बेटियों के पास ही होता है. सारी दुनिया बेटियों जैसी होती तो कितना अच्छा होता.

child-355176_1920_061619120851.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

 2. डियर आयुषी,

अभी देखा कि प्लास्टिक के खिलौने वाले टुकड़े जोड़कर तुम घर, रेलगाड़ी और पता नहीं क्या क्या बना रही हो. और बिगड़ जाने पर झल्लाकर सब उलट-पलट देती हो. क्योंकि फिजिक्स के नियम तुमको मालूम नहीं हैं. तुम्हें नहीं पता कि इनको जोड़कर कितना ऊंचा पिलर बना सकती हो. आखिर गिरेंगे ही. फिर तुम नाराज होकर उठापटक करती हो. मेरे समझाने का भी तुम पर कोई असर नहीं पड़ रहा. तुम अपनी स्पीड में चीज़ें बना और बिखेर रही हो. बाकी सब मजेदार है लेकिन गुस्सा खून जलाता है मेरे बच्चे. फर्जी गुस्सा करके उस प्लास्टिक का क्या बिगाड़ लोगी तुम. लेकिन कोशिश कर रही हो. ये बात तुम्हें नहीं, मुझे समझनी चाहिए. 

मैं हर बार तुम्हें समझाने में खर्च नहीं होना चाहता. इतनी समझदारी मजबूत नहीं है मेरी कि तुम्हें दुनिया भर के नियम समझाऊं. हां, अपने अनुभव बताता चल रहा हूं. जैसे तुम अभी फिजिक्स के नियम नहीं समझती, वैसे ही मैं दुनिया के और जिंदगी के नियम नहीं समझता. हालांकि मेरी CV में क्विक लर्नर लिखा है, लेकिन जिंदगी के सबक सीखने में मुझे अक्सर देर हो जाती है. मुसीबत का अहसास तब होता है जब वो सिर पर आकर खड़ी हो जाती है, बचने का कोई रास्ता नहीं बचता. लोगों को समझने में इतनी देर हो जाती है कि तगड़ी चोट लग जाती है.

father-551921_1920_061619120906.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

पता नहीं मुझे इतनी पकाऊ बात करनी चाहिए या नहीं. लेकिन ये पता है कि जब जैसा मूड हो उसी के हिसाब से बात करनी चाहिए. तो मैटर ये है कि जीवन के रास्ते में लोग हमको मिलते हैं. हमारी जिंदगी को कभी आसान बनाते हैं, कभी मुश्किल. कोई मौज देता है तो कोई टेंसन. टेंसन देने वालों, मुश्किल पैदा करने वालों को हम बड़े प्यार से किनारे कर देते हैं. बचते हैं वो, जिनके साथ मौज थी. हम समझते हैं कि यार ये बहुत सही है. इसका साथ रहे तो अपन बादल में पत्थर मारकर पानी बरसा लेंगे. कई बार उस पर इतना डिपेंड हो जाते हैं कि अपना हर स्वार्थ उसके माथे छोड़ देते हैं. कि यार ये जो करेगा, हमारे लिए सही ही करेगा. 

लेकिन जैसे फिजिक्स के नियम हैं वैसे ही रिश्तों के भी. उनकी प्रायोरिटी और महत्व बदलता रहता है. यहीं स्लो लर्नर लोग मात खा जाते हैं. उन्हें पता ही नहीं चलता कि जिसके माथे वो अपने भाग्य की डोर सौंपे हैं, उसकी प्रायोरिटी बदल चुकी है. उसने अपने गोल्स सेट कर लिए हैं जिनमें मिस्टर/मिस स्लो लर्नर कहीं नहीं हैं. सबसे बुरा तब होता है जब उस शख्स की हरकतों से मिल रहे इशारों को भी स्लो लर्नर इग्नोर करता है. फिर खाता है गच्चा. जब समझ में आता है कि यार यहां तो ठगी का शिकार हो गए. 

असल में ये कोई धोखा नहीं है जिसकी शिकायत की जाए. ये वही रिश्ते और दुनिया का नियम है जिसके तहत सब कुछ बदलता है. वक्त रहते जो इस बदलाव को भांप लेता है वो स्मार्ट मूव ले लेता है. जो नहीं समझ पाता वो बाद में बैठ के लमतूरा बजाता है. तो बच्चा मुद्दा ये है कि किसी भी शख्स पर बेशक भरोसा करो, लेकिन इससे भी ज्यादा भरोसा इस फैक्ट पर करो कि वो इंसान है. वो कभी भी बदल सकता है. प्लान बी के लिए हमेशा तैयार रहो. कभी भी अपनी जिंदगी की डोर किसी और के हाथ मत आने दो.

child-3871837_1920_061619120926.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

3. डियर आयुषी,

नए साल में ये पहली चिट्ठी है. पुराने साल में मैंने क्या अच्छा किया, दिमाग पर बहुत सारा जोर डालने पर भी नहीं याद आता. नहीं इसका मतलब ये नहीं कि मैंने कुछ बेहतर किया ही न हो, दरअसल मेरी मेमोरी ही कमजोर है. हां मैंने इस साल कुछ यादगार नहीं किया ये सच है. सिवाय इसके कि मैंने तुम्हें चिट्ठियां लिखना जारी रखा. ये इसलिए याद रहा क्योंकि महा आलसी होने के बावजूद ये हर हफ्ते लिख पाया. इस साल भी मैं अपने मन के भाव सार्वजनिक रूप से तुम्हारे लिए लिखता रहूंगा ऐसी उम्मीद है. और ये साल बीतने पर इस बार की तरह अफसोस नहीं होगा ऐसी भी उम्मीद है. 

हां तो पता है बीते हफ्ते क्या हुआ? मैंने तुम्हारे साथ बहुत सारी एनीमेशन फिल्में देखीं. सिंग, मोआना, सीक्रेट लाइफ ऑफ पेट्स, पीटर रैबिट और पता नहीं कौन कौन सी. सारी की सारी भयंकर मजेदार. सभी में कोई न कोई अच्छी शिक्षा, आपसी प्यार, और मोटीवेशन की कहानियां. तुम लोगों का बचपन कितना हाईटेक है यार. पता नहीं तुम इसे उतना एंजॉय कर रही हो या नहीं जितना करना चाहिए. कितना कुछ है तुम्हारे पास करने को, देखने को और खेलने को. स्कूल में खेलना कूदना, घर में खेलना कूदना, कार्टून से थक जाओ तो दोस्तों के साथ, उनसे पक जाओ तो मम्मी पापा के साथ. कितना बिजी शेड्यूल है यार तुम्हारा. मजा आता है तुमको मस्ती करते देखकर.

derek-thomson-528231-unsplash_061619121000.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

तुमको क्या बताएं यार हमारे बचपन के किस्से. वो दर्दभरी दास्तां, तुम्हारे आंसू निकलने लगेंगे जिनमें चप्पलें तैरने लगेंगी. अमा हटो तुमको कुच्छो फर्क न पड़ेगा. फिर भी बताते हैं. हमारे एंजॉयमेंट के साधन जितने सीमित थे उतना ही ज्यादा मजेदार. हम गांव में लगने वाले मेलों में जाते थे और वहां से वो वाले छोटे कैमरे लाते थे जिनमें रील रहती थी. उसके लेंस से देखने पर उस रील पर हीरो हिरोइनों के फोटू दिखते थे. या कार्टून कैरेक्टर्स या क्रिकेटर्स दिखते थे. हम वहां से गुलेल लाते थे और निशानेबाजी करते थे. हम किताबों की दुकान से किराए पर कॉमिक्स लाते थे. एक दिन के लिए अठन्नी लगती थी. आईमीन पचास पैसे. और बहुत सारे खेल थे हमारे पास. गुल्ली डंडा, कबड्डी, छुपन छुपाई और पता नहीं क्या क्या.

father-and-daughter-2901559_1920_061619121044.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

लेकिन वो सब हमारे लिए मनोरंजक था, तुमको पकाऊ लगेगा. ये बकैती सुनकर या पढ़कर पता नहीं तुमको कैसा लगेगा. लेकिन यहां तुम्हें एक बात बताना चाहूंगा. मेरी एक दोस्त ने कहा कि तुम अच्छे मम्मी पापा हो. अपनी बच्ची को टाइम देते हो. उसकी तो फुल ऐश है. तारीफ सुनकर कलेजे में ठंडक तो पड़ती है लेकिन ये बात आधी सच है. मतलब हम अच्छे मम्मी पापा तो हैं ;) लेकिन तुम्हारी ऐश अभी कम है. मैं चाहता हूं कि मुझमें थोड़ा धैर्य और आए. तुमको मेले या किसी प्रदर्शनी में लेकर जाता हूं तो तुमको कंट्रोल करना पड़ता है. न करूं तो तुम उस जगह को मलबे में बदल दोगी. अगर तुम सोच रही हो कि मैं तुम्हें सही-गलत बताने वाला हूं तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. यहां सब कुछ पहले से गलत है. मैं तुम्हें ऐसी जगह ले जाना चाहता हूं जो बच्चों की अय्याशी का अड्डा हो. जितना चाहो खेलो और तोड़ फोड़ करो. किसी तरह की रोक टोक न हो. इन शॉर्ट, मैं तुम्हें ऐसी दुनिया देना चाहता हूं जहां तुम्हारा हाथ पकड़ने की जरूरत न पड़े.

 

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