क्या है ये ट्रांसजेंडर बिल जिसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है

क्या इस बिल से ट्रांसजेंडर्स को सच में कोई फायदा होगा?

क्या औरत से ज्यादा भी कोई औरत होती है? हां, वो जो औरत होना चुनती है.

16वीं लोकसभा ने ट्रांसजेंडर बिल पास किया था तब इस पर काफी हलचल मची थी. राज्यसभा में ये पहले ही पास हो चुका था. अब इसे कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. आइए समझते हैं ट्रांसजेंडर्स, जिन्हें ज्यादातर लोग हिजड़ा बोलते हैं, और गलत बोलते हैं, उनसे जुड़े इस बिल के बारे में.

सवाल 1. बिल का नाम

जवाब- द ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) बिल, 2016.

सवाल 2. बिल का काम

जवाब. कानून बनेगा जो रोकेगा हिजड़ों से जुड़े ये अपराध:

1. शारीरिक हिंसा

2. यौन हिंसा

3. हिजड़ा होने के चलते वर्क प्लेस या नौकरी देने में भेदभाव या फिर पढ़ाई के मौके न देना

4. भीख मांगने के लिए मजबूर करना

हम बार बार हिजड़ा शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं. जबकि शुरू में कहा था कि ये शब्द पर्याप्त नहीं. इसलिए

सवाल 3. क्या सिर्फ हिजड़े ट्रांसजेंडर होते हैं. अगर नहीं तो कौन कौन होता है.

जवाब: इसकी कोई तय परिभाषा नहीं थी. नए बने बिल में ये परिभाषा प्रस्तावित थी:

‘ट्रांसजेंडर वो है जो न औरत है न पुरुष. या तो उसमें दोनों के गुण हैं या किसी के नहीं. ट्रांसजेंडर वो है जो उस जेंडर से इत्तेफाक नहीं रखता जो उसे पैदा होने पर दिया गया या मान लिया गया. वो ट्रांस मैन, ट्रांस वुमन, इंटरसेक्स या जेंडर-क्वियर हो सकता है.'

फाइनल बिल में परिभाषा की पहली लाइन, न औरत, न पुरुष, हटा दी गई. वजह, थर्ड जेंडर इससे तय नहीं होगा कि वो क्या नहीं है. बल्कि इससे होगा कि वह क्या है. परिभाषा में 'किन्नर, हिजड़ा, अरवानी और जोगता' समुदाय जोड़ दिए गए हैं.

trans-3_121818070359.jpgपरिभाषा में 'किन्नर, हिजड़ा, अरवानी और जोगता' समुदाय जोड़ दिए गए हैं.

सवाल 4. ये ट्रांसजेंडर्स पर अचानक से कानून क्यों बनने लगे. कहीं कुछ मामला हो गया था क्या?

जवाब- 2014 में एक फैसला आया. सुप्रीम कोर्ट का. जिसमें सरकार को कहा गया. ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर मानें. कोर्ट ने उन्हें ओबीसी कैटिगरी में रखने का भी निर्देश दिया.

इसके बाद तमिलनाडु की डीएमके पार्टी के राज्यसभा सांसद तिरुची शिव ने सदन में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया. मोदी सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ने बिल का विरोध किया. उन्होंने कहा कि सरकार कोर्ट के फैसले के बाद पहले से ही पॉलिसी बनाने में लगी है. आप बिल वापस ले लें. मगर शिव ने ऐसा नहीं किया. उनकी दलील थी कि कागजों पर लगभग साढ़े चार लाख ट्रांसजेंडर हैं. असल में ये संख्या 20 लाख के आसपास हो सकती है. इन्हें वोट देने का हक है, मगर भेदभाव से कोई कानून नहीं बचाता.शिव का बिल राज्यसभा में अप्रैल 2015 में पास हो गया.

सवाल 5. फिर लोकसभा में क्या हुआ. क्योंकि ये तो प्राइवेट मेंबर बिल था. और मेंबर तो राज्यसभा में ही रह गए.

जवाब- लोकसभा में इसे प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर बीजेडी सांसद जो अब पार्टी से बाहर हैं, बैजयंत पांडा ने पेश किया. अगस्त 2016 में. फिर सरकार ने टेकओवर कर लिया और अपना ड्राफ्ट पेश किया. इसे रेफर किया गया स्टैंडिंग कमिटी को. मतलब पार्लियामेंट के अंदर सांसदों का एक छोटा और सभी दलों के सांसदों से मिलकर बना ग्रुप जो पॉलिसी मैटर्स पर सुझाव देता है और आम राय भी कायम करवाता है. स्टैंडिंग कमिटी के सुझाए 27 बदलाव सरकार ने मान लिए और अब ये बिल लोकसभा में पास हो गया है.

सवाल 6. तो जब बिल कानून बन जाएगा तो ट्रांसजेंडर्स के हितों में क्या नियम होंगे.

जवाब- 1. ट्रांसजेंडर्स को पहचान साबित करने वाला सर्टिफिकेट मिलेगा. कलेक्टर के लेवल पर इसे जारी किया जाएगा.

2. ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव या अपराध जिनका शुरुआत में जिक्र किया, करने पर दो साल की कैद और जुर्माना हो सकता है.

trans-4_121818070512.jpgस्टैंडिंग कमिटी के सुझाए 27 बदलाव सरकार ने मान लिए और अब ये बिल लोकसभा में पास हो गया है.

सवाल 7. क्या कोई इस बिल की बुराई भी कर रहा है

जवाब- पहली बात, ट्रांसजेंडर्स के हितों में काम करने वाले कुछ एक्टिविस्ट के मुताबिक ओरिजिनल बिल, जो राज्यसभा में आया था, उसे कुछ कमजोर कर दिया गया है. इसके अलावा सरकार ट्रांसजेंडर्स को ओबीसी कैटिगरी देने पर भी चुप है. जबकि नेशनल कमीशन फॉर अदर बैकवर्ड क्लासेज (NCBC) ने भी इस पर जोर दिया था. कि जो किन्नर पहले से ही SC या ST समुदाय में पैदा नहीं हुए हैं, उन्हें OBC माना जाए.

दूसरी बात, एक्टिविस्ट का ये भी कहना है कि नाल्सा जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रांसजेंडर को खुद की पहचान चुनने का अधिकार है, तो अब बिल में उसे सर्टिफिकेट की जरूरत क्यों. दोनों पॉइंट साथ में कैसे स्वीकार करे जा सकते हैं.

ट्रांसजेंडर राइट्स कमीशन के गठन पर भी सरकार ने कुछ नहीं कहा.

ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट सिमरन से हमने बात की. उनका कहना है,

'ऐसा नहीं कि हम इस बिल को नकारते हैं. मगर कुछ जरूरी मुद्दों को इस बिल ने डायल्यूट कर दिया है. इस्मने कुछ बातें हैं जो कोर्ट के नाल्सा जजमेंट से ठीक उलट हैं. ये ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ठीक नहीं है. साथ ही ये कोर्ट के निर्देश की अवहेलना है.'

तो आखिरी में यही कि कुछ कदम सरकार चली है. लेकिन अभी और सुधार बाकी है. बहुत सुधार. और ट्रांसजेंडर समुदाय की लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है.

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