दिल्ली के किन्नरों के घर की एक दोपहर: कैसी होती है 'गुरु-चेलों' की ज़िंदगी

दिल्ली के ट्रांसजेंडर्स के जीवन का वो पहलू जो सड़कों पर नहीं दिखता

सांकेतिक इमेज- रायटर्स

दिल्ली के वेस्ट विनोद नगर में घुसने पर आपको छोटे-छोटे घर नज़र आएंगे. इन घरों के सामने बड़े बैरल, बाल्टियां वगैरह दिखेंगी. ये इसलिए ताकि पानी भरकर रखा जा सके. पूरे दिन के इस्तेमाल के लिए. ये इसलिए क्योंकि इनके पास ओवरहेड टंकी रखने की जगह नहीं है. एक पतली गली से और कई गलियां निकलती दिखाई देती हैं. एक टहनी से फैलती हुई दूसरी टहनियों की तरह. कुछ औरतें बर्तन मांज रही हैं, कुछ बैठकर बातें कर रही हैं. समय सुबह के 11 बजे. धूप तेज है, लेकिन नीचे तक आते आते कुछ हल्की पड़ जा रही है.

इसी गली में आगे बढ़ने पर एक बहुमंजिला मकान दिखाई देता है. गुलाबी रंग में पुता हुआ. हमारे साथ मौजूद वहां के रेजिडेंट हमें उस घर तक ले कर जाते हैं. 30 के करीब उम्र होगी उनकी, और जब से होश संभाला, यहीं बड़े हुए. ये घर यहीं पाया. और पाए इस घर में रहने वाले लोग, यहीं पर मौजूद. हमें अंदर लेकर जाने वाले वही थे. चंद सीढ़ियां चढ़कर ही दाईं तरफ दरवाजा खुला हुआ था.

‘नमस्ते दीदी, आ जाएं?’

अंदर बिछे गद्दे पर घर की गुरु जी बैठी हुई थीं. मुंह में पान मसाला. धीमे से बोलीं, ‘हां आ जाओ’.

घर करीने से सजा हुआ. पान मसाले के डब्बे गद्दे के कोने में रखे हैं. गुरुजी का नाम शीना है. भीतर से आकर एक और ‘दीदी’ बैठ जाती हैं. इनका नाम माधवी है. गुलाबी सूट पहने एक और ‘लड़की’ चुपचाप कोने में खड़ी है. कभी-कभार आंखों के कोने से हमारी ओर देख लेती है.

ये विनोद नगर के किन्नरों का घर है.

trans-reut-750x500_050219045105.jpgसांकेतिक तस्वीर: रायटर्स

तीन दशकों से भी ज्यादा समय से ये यहां बसे हुए हैं. इस बहुमंजिले मकान में उनकी गुरुजी, और उनके चेले, फिर उनके चेले, और फिर उनके चेले, सब साथ रहते हैं. कमरे की दाईं तरफ किचन है. यहां से वो शर्मीली 'लड़की' हमारे लिए पानी लेकर आती है. पानी पीकर सजग होकर बैठने पर कमरे में नज़र जाती. सब कुछ बेहद सलीके से रखा हुआ है. एक ओर साईं बाबा की तस्वीर है. अन्दर वाले कमरे में बैठने का इंतजाम वगैरह किया हुआ है. पूछने पर कि यहां कितने लोग रहते हैं, जवाब मिलता, हम दो. हमारे चार चेले. उनके चार और चेले. सब एक साथ ही रहते हैं.

सुबह-सुबह नाश्ते में पराठे और चाय जीमकर सब निकल जाते हैं. काम पर. काम क्या? बधाइयां लेना. शगुन लेना. असीस देना.

हम पूछते,

बाकी लोग नहीं इधर?

जवाब आता, नहीं. सब काम पर निकल गए. अब खाने के समय लौटेंगे. खाना-पीना निपटा कर फिर निकल जाएंगे. रात को 9 बजे के आस पास तक फिर लौटेंगे. लौटने का कोई एक फिक्स समय नहीं.

शराबियों से बचने के लिए भगवान उतार लाने वाले ‘किन्नर’

हमने पूछा यहां कोई दिक्कत, जिससे पार न पाया जा रहा हो?

'यहां के पास के पार्क में नशेड़ी आकर बैठे रहते. यहीं आकर खाते-पीते हैं'. उनके पास आकर बैठी माधवी ने कहा. पुलिस में शिकायत भी की. लेकिन वो बस कहते हैं कर देंगे. देख लेंगे. करते कुछ नहीं. यहां तक कि इन शराबियों को दूर रखने के लिए वहां मंदिर तक बनवा दिया. ताकि वहां पर शराब पीना, नॉन-वेज खाना बंद हो जाए. डेढ़ लाख की मूर्ति लाकर लगाई थी. लेकिन जहां मंदिर बनाया गया था वो DDA (Delhi Development Authority- दिल्ली विकास प्राधिकरण) की ज़मीन थी. वो मंदिर तोड़ दिया गया.

पुलिस को भी समझाने की कोशिश की. बताया कि जमीन कब्जाने के लिए नहीं बनाया था मंदिर. पियक्कड़ों को दूर रखने के लिए बनाया था. गीता रावत से जाकर कहा. वो हमारे साथ दौड़ीं-भागीं. एप्लीकेशन डाली. लेकिन कहा, इतना ही कर पाऊंगी.

हमने कहा,

यह बात कैमरा पर कह देंगी?

कैमरे को लेकर झिझक दिखी. फिर शीना ने बताया. हमारी गुरु जी हमें मना करके गई थीं. उन्होंने इजाज़त नहीं दी. कहा कैमरे के सामने न बोलना वगैरह. जंतर-मंतर पर इतना बड़ा विरोध हुआ था अभी. तब भी हम नहीं गए थे. गुरुजी का नाम लेते हुए शीना की आंखें ऊपर उठीं, और सामने की दीवार पर रुक गईं. एक बड़ा सा फ्रेम टंगा हुआ था दीवार पर. उस तस्वीर में लाल जोड़े में एक चेहरा मुस्कुरा रहा था.  गहनों और मेकअप से सजा हुआ.  शीना ने कहा, ये स्वर्गीय मुन्नी हैं. हमारी गुरुजी. इन्होंने ही सब शुरू किया. इनके बाद हम अब चला रहे हैं.

इसी बीच कमरे में एक और ‘दीदी’ आईं और एक कोना पकड़ बैठ गईं. अपना नाम बताया पिंकी. गर्मी बहुत थी बाहर. उनके चेहरे से पता चल रहा था, कहीं दूर से आ रही थीं इतनी धूप में. गुलाबी सूट वाली 'लड़की' अभी भी चुपचाप कोने में खड़ी थी.

trans_750x500_050219045223.jpgसांकेतिक तस्वीर: ट्विटर

ये तो जानना ही था कि आखिर पता कैसे चलता है कि किसके घर में शादी है, किसके घर में बच्चे का जन्म हुआ है. हमने पूछा, और उनके कुछ कहने से पहले ही जवाब हमें मिल गया.

दरवाजे पर दस्तक हुई. एक मां-बेटी आए, और अंदर आकर किसी बात को लेकर बातचीत शुरू हुई. उनके बेटे की शादी में कोई दिक्कत थी, तो वो किन्नरों से आशीर्वाद लेने आए थे. उनको शगुन का लिफाफा पकड़ा कर, आशीर्वाद लेकर निकल गए.

शीना ने बताया लोग खुद आकर नेवता दे जाते हैं. और इतने समय से यहां रह रहे हैं, तो समाज के लोगों के साथ अपनापन हो गया है. लोग इज्जत देते हैं, सम्मान करते हैं. खुद ही आकर शगुन दे जाते हैं.

एक परिवार का अपना एरिया होता है. तय. उसी में वो बधाइयां भी लेंगे, नेग भी स्वीकारेंगे. दूसरों के तय किए हुए इलाके में नहीं जाएंगे. भसड़ होने की आशंका होती. परिवार की मुखिया गुरुजी होती हैं. सबसे सीनियर मेंबर. उनके शिष्य कहलाते चेले. फिर परिवार में कोई नई सदस्य जुड़ती है, तो पहले जो चेला थी, वो उसकी गुरु हो जाती है. नई सदस्य, नई चेला. चेले की चेला, गुरु जी की पोतीचेला. पोती चेला की चेला, गुरु जी के लिए पड़पोतीचेला.  

ये समझाते-समझाते शीना ने गुलाबी सूट में खड़ी उस 'लड़की' से कहा, ‘काम देख लो. शुरू कर लो’. खाना बनाने का समय पास आता जा रहा है. अभी लोग अपनी अपनी ड्यूटी से ब्रेक लेकर घर आएंगे. तब तक खाना रेडी होना भी तो ज़रूरी है. लेकिन हमें अभी और जानना था.

कोई नई सदस्य कैसे जुड़ती है परिवार से.

एक स्वर में तीनों ने कहा, आजकल तो परिवार खुद ही हमारे पास छोड़ जाते हैं. पहले जैसा नहीं है. बहुत कुछ अब पहले जैसा नहीं है. पहले जो किन्नर घर छोड़कर आते थे, वो किन्नर समाज के हो जाते थे. घर से कोई नाता नहीं रखते थे. यही उनका घर परिवार और समाज होता था. आजकल कोई घर से नाता नहीं तोड़ता. आजकल घरवालों को दिख जाता है कि बच्चे में ये ये बात है. तो खुद हमारे पास छोड़ जाते हैं. गुलाबी सूट वाली 'लड़की' की तरफ इशारा करके कहा, ये भी तो अभी नई आई है. घरवाले छोड़ गए. आजकल तो सब पढ़-लिख भी रहे. काम भी कर रहे. नौकरी भी. आजकल सिर्फ बधाई-नेग से कहां ही काम चलता है. सबको अपना भी तो देखना है.

शीना की आवाज़ में हल्की सी लरज सुनाई पड़ती है जब वो कहती हैं, हमारी गुरुजी ने तो हमें पढ़ाया लिखाया नहीं. लेकिन हम तो करा देते हैं. मैंने दो बेटियां गोद ली थीं. इसने (माधवी की तरफ इशारा करके) भी एक बेटी गोद ली थी. सबकी शादी करा दी हमने. अपने-अपने पतियों के साथ सुख से हैं. बच्चे भी हो गए उनके तो.

बच्चा गोद कैसे लिया? कोई दिक्कत नहीं आई?

इसपर शीना ने मुस्कुरा कर बताया. पड़ोसी थीं उनकी एक. बीमार पड़ीं बुरी तरह से. दवा-दारू सब कुछ उन्होंने कराया. उनकी दो बच्चियां उस समय बमुश्किल एक साल और ढाई साल की होंगी. सब कुछ किया, हफ्ते भर तक बीमार रहने के बाद वो चल बसीं. पति शराबी था, छोड़कर भाग गया बच्चियों को. बस, शीना ने जिम्मा ले लिया. पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया.

कोई चीज़ जो सालती है? लगता ये ना होता तो बेहतर होता?

इस पर पिंकी ने तपाक से जवाब दिया.

नकली हिजड़ों ने परेशान कर रखा है. साड़ी-सूट पहन कर मेकअप करके आ जाते हैं. ट्रेन में दस -दस रुपए मांगते हैं. रात को ‘पेशा’ करते हैं. उनकी वजह से हम बदनाम होते हैं. अभी एक नकली हिजड़ा आकर रहने लगा था हमारी जानपहचान में किसी के घर में कमरा लेकर. रात को निकल जाता था बाहर. किराए की भी दिक्कत होने लगी थी. तो हमसे कहा उन्होंने, तुम बात करके देखो. हमने बात की, हमसे भसड़ हो गई. पुलिस के पास शिकायत लेकर गए, पुलिस ने उल्टा हम पर ही केस कर दिया. अब मैं तो तब से कोर्ट के चक्कर लगा-लगा कर थक गई हूं. हर बारी सुनवाई में वकील 500 धरा लेता है. फिर आना-जाना अलग. आप ही बताओ.

शीना बोलीं, 'उस दिन यहां भी आ गए थे. हमें बता दिया आसपास वालों ने. मैं गई, मुझसे भी लड़ाई हो गई. चोट भी लग गई'. उनके ब्लाउज की बांह के नीचे बंधे क्रेप बैंडेज का मतलब अब समझ आया. जब उन्होंने कहा, चोट लग गई, तो कहते हुए अपनी कुहनी पलट दी. पूरी कुहनी छिली हुई थी, उस पर बीटाडीन की ललाई दिखाई दे रही थी. कहते-कहते उन्होंने हाथ नीचे भी कर लिया.

trans-quart-rep-750x500_750x500_050219045413.jpgसांकेतिक तस्वीर: Quartz

पिंकी ने कहा, 'हम इनको रोकते भी हैं तो कह देते हैं कि हम तो गे हैं. तुम्हें क्या? तुम जाओ.' 

समाज में साथ रहने वाले लोग परेशान नहीं करते, लेकिन मुश्किल समय में साथ भी नहीं देते. शराबियों की जो दिक्कत है, वो पूरे एरिया की दिक्कत है. लेकिन इस मामले में FIR करने के बावजूद कुछ हुआ नहीं इसमें. बार बार पूछने पर भी शीना, माधवी, और पिंकी ने यही कहा, हमारी तो यही इच्छा सब बने रहें. सबका भला हो. सब खुश रहें.

दोपहर का सूरज तेज हो रहा है. अभी घंटे भर की देर और है. सूरज जब सिर के ऊपर से थोड़ा परली तरफ पहुंचेगा, तब लोग लौट कर खाना खाने आएंगे. एक एक कर. नीचे वाले कमरे में बैठक जमेगी. गुलाबी सूट वाली नई चेला खाना परोसेगी गुरुओं को. एसी तेज कर दिया जाएगा. कमरे में शायद हंसी मज़ाक होगा. ठहाके गूंजेंगे. जैसा किसी भी नॉर्मल परिवार में होता है. और दीवार पर टंगी तस्वीर से मुन्नी वैसे ही मुस्कुराती रहेंगी.

पर हम ये देख नहीं पाएंगे. क्योंकि निकलना है. न्यौता मिला है, सुबह आने का. सुबह सभी रहते हैं घर पर. हो सकता है किसी दिन न्यौता पुराने का मौका मिले. अगली बार आने तक शायद पुलिस FIR पे कुछ कार्रवाई कर ले. शायद शराबियों का तमाशा रोक दिया जाए. अभी तो बस विदा लेनी है. गुरुओं से, चेलों से. और कोने में खड़ी गुलाबी सूट वाली उस 'लड़की' से.

*इस स्टोरी में सभी नाम बदल दिए गए हैं

 

 

 

  

 

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