कुमार विश्वास पढ़े-लिखे हैं, कवि हैं, पर क्या फायदा जब बात घटिया ही कर रहे हों

गैंगरेप की और इशारा करना इन्हें मज़ाक लगता है?

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
मार्च 22, 2019
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)

बसंती डाकुओं से घिरी हुई है. वीरू के दोनों हाथ बंधे हुए हैं. डाकुओं का सरदार गब्बर, बसंती को नाचने के लिए कह रहा है. धमकी दे रहा है. ‘जब तक तेरे पैर चलेंगे, तब तक इसकी सांसें चलेंगी.’ ये कंडिशन बसंती के आगे रखी जाती है. बेचारी बसंती क्या कर सकती है. अपने वीरू को बचाने के लिए वो डाकुओं के सामने नाचने के लिए तैयार हो जाती है. वहां वीरू चिल्ला रहा है. ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना.’ पर डायरेक्टर को तो बसंती को बेबसी में नचाना है. तभी तो दर्शक ताली पीटेंगे. इसलिए बसंती नाचना शुरू करती है. डाकू शराब की बोतलें ज़मीन पर फेंककर तोड़ देते हैं. बोतलें चकनाचूर हो जाती हैं. बसंती टूटे हुए कांच पर नाचती रहती है. बसंती को दर्द से तड़पते हुए नाचते देख पब्लिक ख़ुश.

शोले का ये सीन ऐतिहासिक बन गया. बसंती की बेबसी. उसकी मर्ज़ी न होते हुए भी आदमियों की एक भीड़ के सामने नाचना. दर्शक इमोशनल.

अब शोले को रिलीज़ हुए 44 साल हो गए हैं. हम आज उसके बारे में क्यों बात कर रहे हैं. क्योंकि हमने जब भी एक औरत को मुसीबत के समय आदमियों से घिरे हुए देखा है, उसका एक ही मतलब रहा है. सेक्सुअल वायलेंस. चाहे वो गानों में हो, फ़िल्मों में हो, या जोक्स में. और इस तरह की मानसिकता कई साल से रही है. इसने बढ़ावा दिया है रेप कल्चर को. इलसिए शायद हम ऐसी सिचुएशन के बारे में इतनी हल्की बात कर जाते हैं. जैसी डॉक्टर कुमार विश्वास ने की.

ट्विटर पर एक ट्वीट डाला. लिखा:

“गठबंधन की लाल दुल्हनियां थर-थर कांपे, हाय एक बारात में चालीस दूल्हे, कैसे जान बचाए...!!!”

ये ट्वीट 2019 के इलेक्शन को लेकर था. मज़ाक में किया गया. और ये ही अपने आप में प्रॉब्लम है. क्या है वो दिक्कत?

एक दुल्हन 40 दूल्हों की भीड़ में फंस गई है. अब वो ख़ुद को कैसे बचाएगी. मर्दों की भीड़ में फंसी लड़की सेक्सुअल वायलेंस का शिकार ही होगी. इसको समझने के लिए आपको कोई जीनियस होना ज़रूरी नहीं है. दुख की बात ये है कि कुमार विश्वास काफ़ी-पढ़े लिखे इंसान हैं. दुनियादारी की समझ रखते हैं. अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं. फिर भी ऐसा ट्वीट करके रेप कल्चर को बढ़ावा दे रहे हैं.

अब बात रेप कल्चर की हो ही रही है तो वो गाना आपने सुना होगा. ‘रज़िया गुंडों में फंस गई.’ शब्द भले ही अलग हों, पर मतलब वही है जो कुमार विश्वास के ट्वीट का था. एक बेचारी लड़की, आदमियों की भीड़ में फंसी है. अपनी इज्ज़त कैसे बचाएगी. फिर वही सेक्सुअल वायलेंस पर व्यंग.

रेप कल्चर, यानी रेप को लेकर इतनी सहजता कि उसके जिक्र से फर्क पड़ता बंद हो जाए. और ट्रॉमा की जगह वो सुनने वाले के लिए आनंद या मज़ाक का विषय बन जाए. ये रेप कल्चर औरतों के लिए कितना ख़तरनाक है, ये कुमार विश्वास जैसे पढ़े-लिखे लोग समझ सकते हैं. और ये जानते हुए ऐसा ट्वीट करना दुखद है.

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