केजरीवाल ने आंकड़े पेश कर बताया कि औरतों के लिए फ्री मेट्रो और बस क्यों जरूरी हैं

बताया- किस तरह बेटी का बाहर निकलना पूरे घर के लिए फायदेमंद होगा

दिल्ली मेट्रो और डीटीसी बसों को महिलाओं के लिए फ्री करने वाली है केजरीवाल सरकार.

दिल्ली मेट्रो, डीटीसी बस. दिल्ली सरकार दोनों को ही मुफ्त करने जा रही है. तैयारी शुरू हो गई है. पहले ढाई महीने में शुरू होना था, पर अब आठ महीने लगेंगे. ऐसा सरकार ने कहा है. इस फैसले के बाद कुछ लोग मुख्यमंत्री केजरीवाल का सपोर्ट कर रहे थे, और कुछ उन्हें कोस रहे थे कि उन्होंने ये सब वोट के लिए किया है.

खैर, इस फैसले की बैटिंग के लिए अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें उन्होंने जेंडर इक्वालिटी पर बड़े पते की बात की है. पहले वीडियो देख लीजिए-

दरअसल, इस फैसले के बाद कई लोगों ने इसका विरोध किया है. कहा कि ये फैसला तो एकतरफा है. एक ही जेंडर यानी सिर्फ औरतों के लिए है. पुरुषों का ख्याल नहीं रखा गया. ऐसे में ये तो जेंडर इक्वॉलिटी के खिलाफ है. इस पर जवाब देते हुए केजरीवाल ने कहा-

'हमारे देश में 'जेंडर इक्वॉलिटी' है क्या? क्या हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा मिला हुआ है? नहीं मिला हुआ है. आज स्थिति ऐसी है कि पैदा होने के पहले अगर पता चल जाए कि पेट में बेटा नहीं, बेटी है. तो अबॉर्शन करवा देते हैं कुछ लोग. अगर आज परिवार के अंदर एक बेटा और एक बेटी है, और पढ़ाने के लिए एक का ही पैसा है, तो बेटे को ही पढ़ने के लिए भेजा जाता है.'

लोगों को इस फैसले के बारे में ऐसे सोचना चाहिए. अब तक कोई पिता अपनी बेटी को कॉलेज भेजता था तो महीने में उसके आने-जाने के लिए 3 हजार रुपये देता था. लेकिन अब उसके ही तीन हजार रुपये बचेंगे. 

आज दिल्ली मेट्रो के अंदर 30 फीसद महिला और 70 फीसद आदमी ट्रैवेल कर रहे हैं. इसी से पता चलता है कि बराबरी नहीं है. काम के क्षेत्र में भी 11 फीसद महिलाए हैं दिल्ली में और 89 आदमी हैं. हम कैसे कह सकते हैं कि 'जेंडर इक्वॉलिटी' है.

देश में जबजब महिलाओं को मौका दिया गया है. महिलाएं बाहर निकली हैं. उनकी डिमांड बढ़ती है, फैमिली इनकम बढ़ती है, इकॉनमी बढ़ती है और पूरे देश के लिए फायदेमंद होता है, समाज में बराबरी का हक मिलता है. महिलाओं के लिए कितने अवसर तैयार हो जाएंगे. जब हम इसे फ्री कर देंगे. तो उसे उस नजरिए से लेना चाहिए.'

सीएम अरविंद केजरीवाल ने ये बातें तो कह दीं. पर कई लोग अब भी जेंडर इक्वॉलिटी पर अपनी सही राय नहीं बना पा रहे होंगे. 

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