डियर आयुषी, इस दिवाली रौशनी सी क्रिएटिव बनो, बम सी डिस्ट्रक्टिव नहीं

तुम्हारा जीवन कागज़ जैसा है. उसको सुंदर रंगो या फाड़ दो, फैसला तुम्हें करना है.

आशुतोष चचा आशुतोष चचा
नवंबर 07, 2018

आयुषी के लिए चिट्ठी, 7 नवंबर 2018

आजकल तुम्हारी दिवाली कुछ ज्यादा ही हैप्पी हो गई है. संडे को पता चला कि तुम्हारे स्कूल की छुट्टी दो दिन एक्स्ट्रा बढ़ गई है. तुम सबको नाच नाच कर बता रही थी कि 5 दिन छुट्टी हो गई. ये नहीं बताया कि दो दिन की छुट्टी इसलिए बढ़ गई है क्योंकि तुम्हारे स्कूल के फाउंडर की डेथ हो गई थी. जबकि मैंने तुम्हें सारा मैटर समझाया भी था. चलो तुम्हारी मर्जी है, खुश होना ही चाहिए. हमको भी सुबह जल्दी नहीं उठना पड़ रहा है. मजे तो अपने भी हैं ईमानदारी से. लेकिन तुम्हारे शौक जानलेवा हैं. जो तुम मम्मी का मोबाइल लेकर प्रकट हो जाती हो. कि पापा इसमें कुछ काम की चीजें जैसे पोयम वगैरह लगा दो. और उसके बाद तुम खुद खोजकर डोरेमान लगा लेती हो. शास्त्रों में इसे ही आंख में धूल झोंकना कहा गया है.

dear-ayushi_110718020722.jpg

तुम्हारा ये कार्टून वाला शौक चाहे जैसा हो लेकिन तुम्हारे शौक और बढ़ें, क्रिएटिविटी बढ़े, ये मेरी हार्दिक इच्छा है. रचनाशील लोग अजीब होते हैं और रचनाशीलता से दूर लोग सामान्य. लेकिन ये सामान्य होना ही इंसान को रोबोट बनाता है. इसको भी तुम वैसा ही समझ लो जैसे हास्य कवि लोग मंच पर एक घिसा हुआ चुटकुला सुनाते हैं. कि आदमी ही हंस सकता है, किसी गधे को हंसते हुए नहीं देखा होगा. जो आदमी हंसना छोड़ चुका हो समझ लो वो गधा बनने की तरफ बढ़ चुका है. यही हाल शौक और क्रिएटिविटी का है. अगर इंसान के अंदर खत्म हो जाएं तो काम खतम.

मैं जब गांव में था. वहीं जहां तुम्हारे बाबा रहते हैं. तुम जहां गाय चराने जाती हो छुट्टियों में. वहीं. वहां लोगों के शौक बड़े महंगे हैं, या फिर हैं ही नहीं. महंगे इस तरह जैसे किसी को बाइक चलाने का शौक है. चलाने का नहीं उड़ाने का. औरतों को ज्यादातर जूलरी का शौक है. ये सब महंगे शौक में आते हैं. इनके अलावा कोई शौक वहां पनपने नहीं पाता. ऐसा नहीं है कि लोगों में इच्छा नहीं है. असल में वहां शौक पैदा होने की जमीन नहीं है और उनके पूरे होने का कोई जरिया नहीं है. वहां मर्दों का मनोरंजन चाय-पान के टपरों पर और महिलाओं का मोहल्ले की बैठकों में होता है. मर्द महिलाओं की बातचीत को प्रपंच कहते हैं और महिलाएं मर्दों के प्रपंच को निखट्टुओं का निकम्मापन. हां, गांव में भी नई पीढ़ी मोबाइल वाली हो गई है तो उनका मनोरंजन उस पर केंद्रित हो गया है. लेकिन बुजुर्ग अभी उसी ढर्रे पर हैं.

via GIPHY

तो शौक के मामले में गांव के लोग कमजोर हैं लेकिन क्रिएटिव बहुत हैं. हर हाल में अपना काम बना लेने का जुगाड़ लोगों को पता है. वहां खाट बुनते हुए लोगों से लेकर खेतों में पानी लगाते हुए लोगों तक को देखकर तुम्हें आश्चर्य होगा. खेत में पानी लगाए हुए किसान कितने जतन से नाली को मुस्तैद रखता है कि सारा पानी खेत में ही जाए. और खेत के अंदर भी डिवाइडर डाल रखे होते हैं ताकि हर जगह बराबर पानी पहुंचे. मैं मिट्टी के बर्तन बनाते हुए या लोहा पीटते हुए शख्स को घंटों निहार सकता हूं. उसे देखने में सिनेमा का आनंद आता है और संगीत सा सुकून मिलता है. ये और कुछ नहीं, हमारे दिमाग की भूख है.

जैसे पेट की भूख होती है. वो खाने से मिटती है. वैसी ही दिमाग की भूख है, कुछ रचने या रचा हुआ देखने-सुनने से मिटती है. क्रिएटिव लोगों का साथ हमें मुकम्मल इंसान बनाता है. हम अगर रचनाशील होते हैं तो कुदरत की कद्र करते हैं. हमको प्रकृति से प्यार होता है. पेड़ काटे जाने पर हमें तकलीफ होती है. मारपीट होते देख हमें बुरा लगता है. किसी जानवर के साथ अत्याचार होते देख हम दया से भर जाते हैं. पानी में डूबते कीड़े को भी निकालकर बाहर बिठा देने का मन होता है. ये उसी क्रिएटिव दिमाग की वजह से होता है जो हमें नेचर के करीब लाया. कुछ भी प्रकृति के विपरीत होता देख हम विचलित होते हैं. इसलिए क्रिएटिव होना और क्रिएटिव लोगों का साथ करना बहुत जरूरी है.

तुमने अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों को देखा है? मैम जब सबकी क्वालिटी बता रही थीं तब तुम्हारे बारे में भी बताया था. तुमको पेंटिंग करना पसंद है. तुम कलर करके नए नए जीव जंतु बना देती हो. वहीं एक लड़का है जो कॉपी फाड़ने में उस्ताद है. घर में मोबाइल उठाकर फेंक देता है. स्कूल में साथ के बच्चों के होमवर्क वाले पन्ने फाड़ देता है. वो डिस्ट्रक्टिव है. उसको मम्मी पापा कुछ रचने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रहे इसलिए उसको चीजें बिगाड़ने में मजा आता है.

सीधा सा हिसाब समझ लो कि इंसानों की दो ही किस्में दुनिया में होती हैं. क्रिएटिव और डिस्ट्रक्टिव. हर इंसान के अंदर इनमें से एक तत्व जरूर मौजूद होगा. अगर कोई इंसान रचनात्मक नहीं है तो उसे बिगाड़ने में जरूर मजा आता होगा. अगर किसी ने अपनी मेहनत से, लगन से कुछ रचा है तो उसको कुछ भी बिगड़ता देखकर तकलीफ होगी. क्रिएटिव इंसान को साइकिल में लगे पंचर से लेकर ओजोन लेयर के छेद तक तकलीफ हो सकती है. डिस्ट्रक्टिव इंसान को किसी का रिश्ता बिगाड़ने से लेकर मंदिर-मस्जिद या वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिराने तक में आनंद मिल सकता है. दुनिया को खतरा किसी एलियन या दैवीय आपदा से नहीं है. दुनिया वही लोग खत्म करेंगे जो कुछ रचना नहीं जानते.

 

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group