क्या गर्भवती महिला के नाइट शिफ्ट करने से बच्चा गिर जाता है?
जानिए एक्सपर्ट्स क्या कहती हैं.

‘जो प्रेगनेंट औरतें हफ़्ते में कम से कम दो नाइट शिफ्ट करती हैं, उनमें मिसकैरिज का ख़तरा बढ़ जाता है.’
मैनें ये स्टडी पढ़ी और चौक गई. ऐसे तो पता नहीं कितनी प्रेगनेंट औरतें नाइट शिफ्ट करतीं हैं. और अगर ये सच है तो ये बड़ी दिक्कत की बात है. मैनें इस रिसर्च के बारे में और पढ़ना शुरू किया.
दरअसल ये रिसर्च डेनमार्क में की गई है. 23,000 प्रेगनेंट औरतों पर. ये देखने के लिए कि नाइट शिफ्ट कहीं मिसकैरिज की वजह तो नहीं बनती है. ख़ासतौर पर प्रेग्नेंसी के चौथे और 22वें हफ़्ते के बीच में.
रिसर्च में पता चला कि जो औरतें आठ हफ्ते से ज़्यादा प्रेगनेंट थीं, उन्हें 32 फ़ीसदी मिसकैरिज का ज़्यादा ख़तरा था. ये वो औरतें थीं जिन्होनें कम से कम दो बार पिछले हफ़्ते नाइट शिफ्ट की थी. साथ ही ये भी पता चला कि ये ख़तरा बढ़ता जाता है. यानी जितनी ज़्यादा रातें, उतना ज़्यादा ख़तरा.
क्या वाकई प्रेग्नेंसी के दौरान नाइट शिफ्ट करने से मिसकैरिज का ख़तरा बढ़ जाता है? (फ़ोटो कर्टसी: Pixabay)
अब इस रिसर्च के मुताबिक:
जो प्रेगनेंट औरतें रात में काम करती हैं, वो उस समय लाइट में रहती हैं. इससे उनकी सर्कडियन ताल बिगड़ जाती है. अब ये सर्कडियन ताल क्या होती है? आसान भाषा में समझें तो ये बाहरी दुनिया की घड़ी और शरीर की अंदरूनी घड़ी होती है. इसे बॉडी क्लॉक भी कहते हैं. खैर, इसकी वजह से मेलाटॉनिन बनना कम हो जाता है. मेलाटॉनिन एक हॉर्मोन होता है जो सोने और उठने की साइकिल को कंट्रोल करता है. मेलाटॉनिन की सही सप्लाई एक हेल्दी और सफल प्रेग्नेंसी के लिए बहुत ज़रूरी है. ये प्लेसेंटा के सही से काम करने में मदद करता है. प्ल्सेसेंटा यानी वो अंग जो प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भाशय के अंदर बनता है. इसकी मदद से ही आपके बच्चे तक ऑक्सीजन और पोषण पहुंचता है.
वहीं दूसरी तरफ़ यूएस सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का कहना है कि नाइट शिफ्ट करने से या लंबे घंटे काम करने से प्रीम्च्योर डिलीवरी और मिसकैरिज का ख़तरा बढ़ जाता है.अब ये सब सुनने में तो ठीक ही लगता है. पर इसमें कितनी सच्चाई है? ये जानने के लिए हमने बात की डॉक्टर लवलीना नादिर और डॉक्टर आशा शर्मा से. डॉक्टर लवलीना नादिर फ़ोर्टिस दिल्ली में स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं. डॉक्टर आशा शर्मा रॉकलैंड हॉस्पिटल दिल्ली में स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं.
डॉक्टर लवलीना नादिर कहती हैं:
“हां, मेलाटॉनिन के इस्तेमाल की बात सही कही गई है. बॉडी क्लॉक का सही काम करना भी ज़रूरी है. पर एक स्टडी के बेसिस पर ये नहीं कहा जा सकता कि नाइट शिफ्ट करने से मिसकैरिज का ख़तरा बढ़ जाता है. इसके कोई पुख्ता सुबूत नहीं है. प्रेग्नेंसी के दौरान एक हेल्दी डाइट और सोना ज़रूरी है. ये ठीक है. पर रात में काम करने से मिसकैरिज होने की बात सही नहीं ठहराई जा सकती.”
प्लेसेंटा आपके बच्चे तक पोषण पहुंचता है. (फ़ोटो कर्टसी: Pixabay)
इसपर डॉक्टर अनुराधा का भी यही कहना है. ये स्टडी ये साबित नहीं कर सकती कि नाइट शिफ्ट में काम करने से मिसकैरिज हो जाता है. साथ ही डॉक्टर अनुराधा बताती हैं:
“हां, औरतों को प्रेग्नेंसी के दौरान ज़्यादा नींद की ज़रुरत होती है. खासतौर पर पहले और तीसरे ट्राईमेस्टर के दौरान. पहला ट्राईमेस्टर यानी प्रेग्नेंसी के पहले दिन से लेकर बारहवें हफ़्ते तक. और तीसरा ट्राईमेस्टर याने प्रेग्नेंसी के 28वें हफ़्ते से लेकर 40वें हफ़्ते तक. इन हफ़्तों के दौरान ज़्यादा थकान महसूस होती है. आपको कितने घंटों की नींद लेनी चाहिए ये पर्सन-टू-पर्सन निर्भर करता है.”
अगर आप प्रेग्नेंसी के दौरान नाइट शिफ्ट करती हैं तो एक चीज़ का ध्यान रखिए. नींद पूरी लीजिए. और डाइट सही रखिए. पर ऐसी बातों से डरिए मत.
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