CCD के फाउंडर VG सिद्धार्थ अपने पीछे क्या-क्या छोड़कर गए हैं?
वो कॉफी शॉप, जहां हजारों रिश्ते बने और बिगड़े भी.
सीसीडी, यानी 'कैफे कॉफी डे' के फाउंडर वीजी सिद्धार्थ दो दिनों से गायब थे. उनका शव 31 जुलाई की सुबह मिला. मछुआरों को सिद्धार्थ का शव मेंगलुरु के हुइगे बाजार के पास नेत्रावती नदी में तैरता दिखा था. जिसे खींचकर वो लोग किनारे लेकर आए. फिर पुलिस को बुलाया.
इसके अलावा, पुलिस को सुसाइड नोट की तरह का एक नोट भी मिला था. जिसमें सिद्धार्थ ने सीसीडी की फैमिली और निदेशकों के लिए मैसेज लिखा था. कहा था,
'मैं अब कर्जदाताओं का और ज्यादा दबाव नहीं झेल सकता. इनकम टैक्स के एक महानिदेशक से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. सभी गलतियों के लिए मैं जिम्मेदार हूं. मेरा इरादा धोखा देने का नहीं रहा, उम्मीद है कि एक न एक दिन आप इसे समझेंगे.'
पुलिस मामले की जांच कर रही है. सुसाइड है या कुछ और, अभी कुछ भी सॉलिड तरीके से नहीं कहा जा सकता. जांच पूरी होने पर ही पता चलेगा. वीजी सिद्धार्थ की मौत ने खलबली सी मचा दी है, दो दिन पहले तक बहुत से लोग ये नहीं जानते थे, कि सीसीडी का मालिक कौन है, लेकिन अब जान चुके हैं.
सोशल मीडिया पर बहुत से लोग इमोशनल मैसेज शेयर कर रहे हैं. बता रहे हैं कि वो किस तरह सीसीडी से जुड़ाव महसूस करते आए हैं. सीसीडी भारत में सिर्फ कॉफी पीने की एक जगह नहीं है, बल्कि कॉफी के कल्चर को बदलने वाला नाम है. वैसे, भारत में कॉफी को फेमस करने का क्रेडिट 1958 में शुरू हुए इंडियन कॉफी हाउस को जाता है. लेकिन कैफे कॉफी डे इसे कहीं आगे लेकर गया. इतना कि युवाओं के लिए कॉफी का मतलब सीसीडी ही बन गया.
#CafeCoffeeDay not only served as a Meeting Point. It also served as a place for refreshing & resting ourself for short time during hecting Long hours of Journey. Who could have imagined Clean restrooms once in every 50Km on a Highway ?
— Dharma Chandru (@dharmachandru) July 31, 2019
I started visiting it quite often with my ex-gf. Once, I dropped the entire tray of Burgers etc, @CafeCoffeeDay gave me ne tray full of that very stuff we bought, without charging more, and with so much respect and smile, WOW, COULDN'T EVER FORGET.After that many good experiences
— Ajaay Goel (@AjaayGoel24) July 30, 2019
वीजी सिद्धार्थ ने इस कैफे चेन की शुरुआत की थी 1993 में. लेकिन सीसीडी का पहला आउटलेट खुला था 11 जुलाई 1996 के दिन. कर्नाटक के बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड पर. धीरे-धीरे देश के कई सारे शहरों में सीसीडी के आउटलेट खुलने लगे. फिलहाल देश के 28 राज्यों में सीसीडी के 1,842 आउटलेट्स हैं. इसके अलावा ऑस्ट्रिया, मलेशिया, इजिप्ट, नेपाल और चेक रिपब्लिक में भी सीसीडी के आउटलेट्स हैं.
कैसे बदला कॉफी कल्चर?
हमारे यहां गलियों में, खोपचों में छोटी-छोटी चाय की टपरियां होती हैं. लगभग-लगभग हर ऑफिस के सामने. लोग चाय की चुस्कियां लेते हुए जमाने भर की बातें करते हैं, और करते थे. कॉफी के लिए इस तरह की टपरियां कम ही होती थीं. कॉफी को थोड़ा 'हाई स्टैंडर्ड' का माना जाता था. एक सोच थी, कि कॉफी अमीरों के पीने के लिए होती है. जुलाई, 1996 में सीसीडी का पहला आउटलेट खुला. सीसीडी ने चाय पीने वाली भारतीय जनता का ध्यान कॉफी की तरफ खींचा.ये आउटलेट इंडियन कॉफी हाउस की तरह रेस्टॉरेंटनुमा नहीं था, बल्कि वेस्टर्न स्टाइल में डिजाइन किया हुआ था. भारत का अपना ग्लोबल कॉफी ब्रांड.
कॉफियों की विदेशी ब्रांड्स की एंट्री से पहले ही, देश में कॉफी के देशी ब्रांड ने जगह बनाना शुरू कर दिया. लोगों को कॉफी पीने का एक अलग मजा दिया जाने लगा. एक अलग माहौल मिलने लगा. चाय की टपरियों की तरह, सीसीडी में खड़े होकर नहीं, बल्कि बैठकर लोग कॉफी पीते थे. घंटों बातें कर सकते थे, कोई रोकता-टोकता नहीं था.
धीरे-धीरे सीसीडी के आउटलेट्स पूरे देश में फैलने लगे. बडे़ ब्रांड्स छोटे शहरों में एंट्री करने से कतराते थे, खपत के डर से. लेकिन सीसीडी ने ये जोखिम लिया. देश के कोने-कोने तक पहुंचने की कोशिश की. बड़े शहरों में तो गुपचुप की टपरी की तरह सीसीडी खोले गए. दिल्ली से कनॉप प्लेस मार्केट को ही अगर देखें, तो 15 से ज्यादा आउटलेट्स होंगे सीसीडी के.
सीसीडी में रिश्ते बनने लगे, प्यार होने लगा, रिश्ते टूटने भी लगे, बिजनेस डील्स फाइनल होने लगीं, जॉब्स के लिए छोटे इंटरव्यूज भी होने लगे. यानी सीसीडी ने लोगों को ऑल इन वन वाला माहौल दिया.
बहुत से लोग इसे बेस्ट मीटिंग पॉइंट मानते हैं.
पहली बार डेट पर जाने के लिए ज्यादातर लोगों की पहली पसंद सीसीडी होती है. मोना, चंचल, प्रिया, नेहा.... न जाने कितनी लड़कियों ने शादी के लिए लड़के से पहली मुलाकात सीसीडी में ही की. कितनों ने अपने रिश्ते की एंडिंग सीसीडी में की. यानी वो आखिरी मुलाकात, जो ब्रेकअप से पहले होती है, जिसमें ढेर सारे गिले-शिकवे होते हैं, वो मुलाकात के लिए भी सीसीडी ने कपल्स को जगह दी. घंटों तक बैठकर बातें करने का वक्त दिया. बिना डिस्टर्बेंस के बिजनेस डील्स को फाइनल करने का भी वक्त दिया. बाकी कॉफी शॉप्स के मुकाबले, कॉफियों के दाम में थोड़ी छूट दी. रिजनेबल रेट पर, अच्छे माहौल के साथ लोगों को सुविधा दी. बड़े-छोटे शहरों के बीच अंतर नहीं किया. लोगों को नौकरियां दीं. और इस तरह सीसीडी ने लोगों के दिलों में जगह बनाई.
सीसीडी खोलने वाले वीजी सिद्धार्थ अब नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कॉफी कल्चर को जिस तरह बदला वो बदलाव हमेशा रहेगा.
इसे भी पढ़ें- 1600 के लहंगे के चक्कर में 38 हजार चले गए, हाथ में आया रद्दी का एक टुकड़ा
लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे