रक्षा खडसे: पति की मौत के बाद परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली और दूसरी बार लोकसभा पहुंच गईं
महाराष्ट्र की रावेर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने रक्षा पर दूसरी बार भरोसा जताया था.

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं. इनमें से एक सीट है रावेर. ये सीट साल 2008 में ही अस्तित्व में आई थी. 2009 लोकसभा चुनाव में पहली बार इस सीट पर चुनाव हुए थे. बीजेपी के हरिभाऊ जावले ने यहां से जीत हासिल की थी. 2014 में भी बीजेपी की ही उम्मीदवार रक्षा खडसे को इस सीट पर जीत मिली थी. अब एक बार फिर रक्षा ने इस सीट पर परचम लहराया है. बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में भी रक्षा को ही टिकट दिया था. रक्षा ने बड़े अंतर से जीत हासिल की. कांग्रेस के उल्हास वासुदेव पाटिल को हार का सामना करना पड़ा. रावेर सीट पर तीसरे चरण के तहत 23 अप्रैल को चुनाव हुए थे.
अब बात करते हैं रक्षा खडसे की. 16वीं लोकसभा, यानी 2014 वाली लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसदों में रक्षा का नाम भी शामिल है. अभी ये 31 साल की ही हैं. रक्षा बीजेपी के सीनियर लीडर एकनाथ खडसे की बहू हैं.
रक्षा रावेर की मौजूदा सांसद हैं. फोटो- फेसबुक
एकनाथ खडसे, महाराष्ट्र की राजनीत में ये अपने आप में ही एक बड़ा नाम है. ये महाराष्ट्र सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर भी रह चुके हैं, और लीडर ऑफ अपोजिशन, यानी विपक्ष के नेता भी रह चुके है. यानी महाराष्ट्र में इनका अच्छा खासा प्रभाव है. अब अन्य राजनेताओं की तरह ये भी चाहते थे कि इनका बेटा इनकी राजनीतिक विरासत आगे लेकर जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. एकनाथ की राजनीतिक विरासत उनके बेटे की बजाए, उनकी बहू रक्षा खडसे आगे लेकर जा रही है.
सवाल आता है कि ऐसा क्यों?
दरअसल, एकनाथ खडसे के बेटे निखिल खडसे अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने 1 मई 2013 के दिन गोली मारकर खुद की जान ले ली थी. निखिल ने ऐसा क्यों किया, इसके बारे में अभी कुछ कन्फर्म जानकारी तो नहीं है. लेकिन ज्यादातर लोगों और बहुत सी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, निखिल MLC चुनाव महज 16 वोटों से हार गए थे. जिसकी वजह से वो काफी तनाव में थे. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि निखिल गंभीर पीठदर्द से परेशान थे. सुसाइड की असली वजह क्या थी, कुछ स्पष्ट नहीं है.
एकनाथ खडसे. इनका नाम महाराष्ट्र के बड़े नेताओं में शामिल है. फोटो- फेसबुक
खैर, आगे बढ़ते हैं. निखिल की मौत के बाद रक्षा के कंधों पर परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने की जिम्मेदारी आ गई. रक्षा उस वक्त महाराष्ट्र के जलगांव के जिला परिषद की सदस्य थीं. और कोठाली ग्राम पंचायत की सरपंच भी रह चुकी थीं. मतलब, वो राजनीति में थीं, लेकिन वो तब तक यानी पति की मौत के समय तक, लोगों के सामने ज्यादा खुलकर नहीं आती थीं. लेकिन निखिल के जाने के बाद उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी थी. उन्होंने बीजेपी के टिकट पर रावेर से लोकसभा चुनाव लड़ा. साल 2014 वाला. कांग्रेस के मनीष जैन को बहुत बड़े अंतर से रक्षा ने हरा दिया और पार्लियामेंट पहुंच गईं.
रक्षा एक सांसद होने के साथ-साथ, दो बच्चों की मां भी हैं. पति के जाने के बाद उन्होंने किसी तरह दोनों बच्चों को संभाला और अपनी राजनीति को भी संभाला. हमने रावेर के लोगों से बात की थी. रक्षा के काम के बारे में जानना चाहा था. पता चला था कि वहां के लोग रक्षा के पांच साल के कामकाज से संतुष्ट हैं.
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