हीराबाई : वो महिला जो लावारिस लाशों की 'बुआ' बनकर उनका अंतिम संस्कार करती है

2500 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हीराबाई अपने काम को समाज सेवा मानती हैं.

नेहा कश्यप नेहा कश्यप
जुलाई 22, 2019
हीराबाई, तस्वीर- प्रजातंत्र न्यूज

भोपाल में हमीदिया अस्पताल है. काफी बड़ा अस्पताल है. इसके करीब एक मंदिर, जहां एक अधेड़ उम्र की महिला अक्सर दिख जाती हैं. लोगों की मदद करती हुईं. उनका नाम है हीराबाई. लेकिन लोग उन्हें 'बुआ जी' कहते हैं. हीराबाई लावारिस लाशों का वह अंतिम संस्कार करती हैं. और उन्हें अपने काम पर गर्व है.

बेटे को गंवा चुकी वो बूढ़ी महिला 

हीराबाई बताती हैं कि करीब 26 साल पहले उन्होंने अस्पताल के पास एक बूढ़ी महिला को रोते देखा था. वो महिला गांव से बेटे के इलाज के लिए आई थी. उसके जवान बेटे की मौत हो गई थी. उसके पास बेटे को वापस ले जाने या वहीं उसका अंतिम संस्कार करने के पैसे भी नहीं थे. तब वह आगे आईं. उन्होंने चंदा किया और पहली बार किसी शव का अंतिम संस्कार किया. इसके बाद ये सिलसिला कभी रुका नहीं. अभी तक वह करीब 700 बच्चों और 2000 जवान लोगों के शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं.

अंतिम संस्कार में करती हैं मदद

हीराबाई उन लोगों के अंतिम संस्कार में भी मदद करती हैं, जिनका परिवार और अपने होते हैं. लेकिन उस अपने की अंतिम यात्रा के लिए पैसे नहीं होते. वह अपनी तरफ से पैसों से लकड़ियां खरीदती हैं. बाकी सामग्री मंगाती हैं. रिवाज के हिसाब मृत लोगों को उनके अंतिम सफर पर रवाना करती हैं. वह कहती हैं कि इस काम के लिए वह लोगों से चंदा या आर्थिक मदद नहीं मांगती. 

परिवार ने नहीं दिया साथ

प्रजातंत्र न्यूज से बात करते हुए अपने संघर्ष को याद करके हीराबाई कहती हैं कि सबकुछ इतना आसान नहीं था. पति ने उनके इस काम को कभी सपोर्ट नहीं किया. पति जब गुजर गए, तो आर्थिक परेशानी भी होने लगी. वह कहती हैं कि तब बहुत काम होता था. एक तरफ घर और बच्चों की जिम्मेदारी और दूसरी तरफ शवों का क्रियाकर्म. लेकिन उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला. और दोनों फर्ज निभाती रही.

heera-bai_750x500_072219035957.jpgशव के अंतिम संस्कार के लिए गड्डा खोदती हीराबाई. तस्वीर- प्रजातंत्र न्यूज

परेशानियों से भी निपटना होता है

जब किसी लावारिस लाश के अंतिम संस्कार के दौरान पुलिस आ जाती है. तब उन्हें समझाना पड़ता है कि उस शव का कोई अपना नहीं है. किसी ने लाश की खोज-खबर नहीं ली. इसलिए वो अपना फर्ज पूरा कर रही हैं. इस दौरान पुलिसवालों से कई बार बहस भी हो जाती है. हीराबाई कहती हैं, तब लगता है कि ईमानदारी से लोगों की मदद करना भी कितना मुश्किल है.

पुलिस भी लेती है मदद

अब ज्यादातर पुलिसकर्मी हीराबाई यानी बुआ जी को पहचानते हैं. खुद फोन करके लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने में मदद मांगते हैं. वह उनन लावारिस लाशों को दफनाती हैं. अगर कोई दाह संस्कार करने में उनकी मदद मांगता है, तो वो भी करती हैं.

समाज सेवा लेकिन सम्मान नहीं

हीराबाई एक दिन में कई शवों का अंतिम संस्कार करती हैं. इस वजह से हर बार क्रियाकर्म करने के बाद नहाना संभव नहीं हो पाता. इसलिए लोग उनसे छूआछूत करते हैं. उनके काम को अजीब तरीके से देखते हैं. हीराबाई कहती हैं कि लोगों के इस व्यवहार को देखकर उन्हें नहीं लगता कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. 

मुस्कुराते हुए हीराबाई कहती हैं कि वह मरते दम तक ये काम करना चाहती हैं. लेकिन उम्र की वजह से शरीर कभी-कभी थकता महसूस होता है. वह कहती हैं,

'मैं किसी पर कोई उपकार या अहसान नहीं करतीं. मेरे लिए ये सेवा का जरिया है. इस काम को करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.'

हीराबाई चाहती हैं कि महिलाएं भी आगे आएं. जो काम उन्होंने शुरू किया है, वो जारी रहे. इस काम को कोई महिलाए आगे लेकर जाएगी तो उन्हें ज्यादा खुशी होगी. 

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