3 साल तक गलत पहचान के चक्कर में कैद रही बुजुर्ग महिला ने बेहद गंभीर सवाल पूछा है
मधुमाला दास नहीं मिलीं तो मधुमाला मंडल को असम पुलिस ने पकड़ लिया था.

एक शहर में सरकारी फरमान आया कि सारे चूहों को पकड़कर शहर के बाहर कर दिया जाए. कारिंदों ने कार्रवाई शुरू की. उधर चूहों में हाहाकार मच गया. सारे चूहे शहर से भागने लगे. एक हाथी भी उनके साथ शहर से भाग रहा था. चूहों ने हाथी से कहा कि आदेश तो हमें पकड़ने का हुआ है. आप क्यों भाग रहे हो? हाथी ने कहा, बात तो तुम्हारी सही है. लेकिन पुलिस वाले एक बार पकड़ लेंगे तो मेरी पूरी जिंदगी खुद को चूहा नहीं हाथी साबित करने में ही चली जाएगी.
सोशल मीडिया पर ये जोक आप इतनी बार पढ़ चुके होंगे कि इससे बिल्कुल भी हंसी नहीं आई होगी. लेकिन हमने इसे हंसने के लिए नहीं लिखा है. बल्कि एक बुजुर्ग महिला का परिचय कराने से पहले लिखा है. इसलिए, क्योंकि उनके साथ असम पुलिस ने ये वाहियात मजाक किया है. जिसके कारण उन्हें अपनी जिंदगी के 3 साल जेल में बिताने पड़े.
असम पुलिस की एक ब्रांच है, बॉर्डर ब्रांच. जिसका काम है राज्य में विदेशी लोगों की पहचान करना. और उन्हें अरेस्ट करना. विदेशी लोग कौन हैं? वो लोग जिनका नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं है. एनआरसी यानी नेशनल सिटिजन रजिस्टर. इसमें उन लोगों के नाम हैं जो 24 मार्च 1971 की आधी रात तक असम में आ गए थे. या फिर जिनके पूर्वज देश की पहली जनगणना 1951 में शामिल थे. जिन लोगों के नाम इस रजिस्टर में नहीं है, उन्हें यह साबित करना होगा कि उनका जन्म 21 मार्च 1971 से पहले असम में हुआ था.
2016 में ऐसे ही एक 'विदेशी' मधुमाला दास को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने नोटिस जारी किया. क्योंकि उनकी नागरिकता संदेह के दायरे में थी. बॉर्डर ब्रांच पुलिस चिरांग जिले के बिष्णुपुर गांव आई. मधुमाला दास को गिरफ्तार करने. लेकिन मधुमाला दास तो मिली नहीं. क्योंकि उनकी मौत काफी पहले हो चुकी थी. ऐसे में पुलिस वालों ने गांव की ही मधुमाला मंडल को गिरफ्तार कर लिया. 56 साल की मधुमाला मंडल अपनी बेटी फूलमाला और पोती जयंती के साथ रहती थीं. बेटी न बोल सकती है, न सुन सकती है. शादी के बाद पति ने उसे छोड़ दिया था. मधुमाला मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का खर्च चलाती थीं. लेकिन पुलिस उन्हें उठा ले गई.
एनआरसी की लिस्ट में अपना नाम जांचने के लिए लाइन में लगे लोग. (प्रतीकात्मक फोटो, रॉयटर्स)
गिरफ्तारी के बाद मधुमाला मंडल को कोकराझार के डिटेंशन सेंटर में ले जाया गया. अगले 3 साल यानी जून 2019 तक ये सेंटर ही मधुमाला का घर बना रहा. मधुमाला पढ़ी-लिखी नहीं हैं. और न ही उनके पास इतना सामर्थ्य था कि वो पुलिस को चैलेंज कर सकें. लेकिन जब ये मामला चिरांग जिले के कुछ सोशल वर्कर्स को पता चला तो उन्होंने मधुमाला को छुड़ाने का प्रयास शुरू किया. अंतत: सच सामने आया और बॉर्डर ब्रांच पुलिस ने स्वीकार किया कि उन्होंने गलत मधुमाला मंडल को मधुमाला दास की जगह डिटेंशन सेंटर भेज दिया है. सरकार ने असम पुलिस से मधुमाला मंडल को रिहा करने को कहा. साथ ही ये भी आदेश दिया कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में एफिडेविट देकर बताएं कि ये गलत पहचान का मामला है. 25 जून को मधुमाला रिहा हो गईं. वे अपनी बेटी के पास वापस आ गईं.
एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में मधुमाला मंडल ने डिटेंशन कैंप के अनुभवों को साझा किया. उन्होंने कहा, 'मैंने वापसी की उम्मीद खो दी थी. मुझे अपने बेटी और पोती की चिंता थी. मेरे बिना वे कैसे रह सकेंगे. मैंने वहां पर सैकड़ों लोगों को देखा जो भारतीय हैं, लेकिन इसके बावजूद वहां कैद हैं. मेरी फैमिली और मेरी हेल्थ बर्बाद हो गई है. अब मैं काम नहीं कर सकती हूं. मैं कैसे जीवनयापन करूंगी? मुझे सरकार से मुआवजा चाहिए.'
चिरांग जिले के एसपी सुधाकर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि तीन महीने पहले उन्हें मधुमाला मामले के बारे में पता चला था. उन्होंने कहा,
''मैंने इसकी जांच कराई. और पाया कि यह गलत पहचान का मामला है और गलत मधुमाला डिटेंशन सेंटर में है. मैंने हेडक्वार्टर को इसकी सूचना दी. और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल को पूरे मामले के बारे में बताया.''
जब उनसे पूछा गया कि मधुमाला मामले में जो लोग जिम्मेदार हैं, क्या उन पर कोई कार्रवाई होगी तो एसपी इससे बचते नजर आए. उन्होंने कहा कि हमारी पहली प्राथमिकता मधुमाला को न्याय दिलाने की है. लेकिन एसपी साहब के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि मधुमाला को न्याय तो तब मिलेगा, जब उसके साथ अन्याय करने वालों को सजा मिलेगी.
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