तुम मेरे पास हो लेकिन चाहकर भी तुम्हें 'मां' नहीं कह पाती

मेरी हर रोज खुद से जद्दोजहद होती है. शायद तुम वो समझती होगी.

सबका बचपन कितना अच्छा होता है और कुछ का कई दर्द भरी कहानियों जैसा होता है. मैं एक ऐसी अभागी हूं कि तुम्हारे होते हुए भी, मैं तुम्हें मम्मी नहीं कह पाती हूं. मैं रोज रात को खुद से ये वादा करती हूं कि कल से तुम्हे मां कहूंगी. लेकिन नहीं कह पाती. नहीं पता कभी बोल भी पाऊंगी या नहीं. मेरी हर रोज खुद से जद्दोजहद होती है. शायद तुम वो समझती होगी.

दोपहर का समय था, जब मैं दुनिया में आई. एक सरकारी अस्पताल में हुई थी. ये सारी बातें तुम बताती थीं. लेकिन समय और साल बढ़े, मैं दो साल की हुई, तीन साल की हुई. बाबा का फरमान आया कि मैं अपने मम्मी-पापा के साथ नहीं रहूंगी. मेरी पढ़ाई का पूरा जिम्मा बड़े मम्मी-पापा उठाएंगे. मुझे उनके साथ मेरठ भेज दिया गया. वहां चली तो गई. तब क्या पता था कि मेरे साथ क्या हो रहा है...

मैं तीन साल की उम्र में ही तुमसे दूर हो रही थी. तुम रोई होगी, मैं जानती हूं. तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, करोगी भी क्यों नहीं... मां जो हो. पर तुमने रोका क्यों नहीं मुझे? तुम्हें अड़ना चाहिए था. तुम्हें पता है, मैं तो चली गई लेकिन हर चीज के लिए मुझे गैरों की तरह पूछना पड़ता था. कुछ खाना हो या फिर कुछ पहनना हो. हां, बड़े पापा ने ख्याल रखा.

मुझे पढ़ाया लेकिन बड़ी मम्मी बहुत काम करवाती थीं. मुझसे सौतेला व्यवहार करती थीं. तुम्हें पता है, मैंने मिस किया बहुत तुम्हें.

तुमने बताया है कि तुम मुझसे बात करने के लिए फोन करती थी. हां उस समय मोबाइल नहीं होता था. लैंडलाइन होता था. पर बड़ी मम्मी मुझसे बात नहीं कराती थी. बहाना बना देती थीं. और बात नहीं हुई तो हमारे बीच गैप बन गया और ऐसा गैप बना कि आज मैं आपको मम्मी कहकर नहीं पुकार सकती.

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1997 में गई थी और 2001 में वापस आई. इन चार सालों में मैंने अपने बचपन की कई चीजें मिस कर दीं. जो समय मेरा और मम्मी के साथ बिताने का था, एक दूसरे के करीब आने का था, उस समय मैं अपनी मम्मी से काफी दूर चली गई. मम्मी मैं आज भी उन दिनों को मिस करती हूं कि मैं काश आपके साथ होती, उस समय आपको छोड़ कर न गई होती.

मुझे धुंधला-धुंधला सा याद है. तुम स्कूल में टीचर थी, बहुत दूर स्कूल था तुम्हारा, मैं इंतजार करती थी घर पर, कि तुम आओगी और मेरे लिए वो कोकोनट वाला बिस्कुट लाओगी. तुम लाती थी. मैं सीधे कमरे में मम्मी-मम्मी कहकर भागकर आती थी. और अगर कमरे में कोई होता था को अलमारी में मुंह छिपाकर बिस्कुट खाती थी और मुंह पोंछ कर बाहर आती थी. पर जब मेरठ चली गई, तो ये सब छूट गया, मैं तुमसे नफरत करने लगी. मम्मी बोलना छोड़ दिया. पता नहीं क्या हुआ ऐसा कि मैं तुम्हें मम्मी नहीं बोलती थी.

आज मैं कभी-कभी तुम पर गुस्सा कर देती हूं और तुम हंसकर टाल देती हो. कभी रो भी देती हो. ये सब आपको दुखी कर देता है न. ये सब मुझे भी दुखी कर देता है. सॉरी, मुझे पता है कि मैं बहुत रूड हो जाती हूं. बाद में मुझे ही बड़ा अजीब लगता था.

एक बार 2005 में भी मेरठ गई थी. तब भी बड़े मम्मी-पापा के साथ जाना था. तुमने मुझे फिर भेज दिया. एक साल थी, लेकिन इस बार लाइफ एक हेल से कम नहीं लग रही थी. बहुत बुरा दिन था वो. ऐसा लग रहा था कि किसी सौतेली मां के साथ तुमने भेज दिया है. तुमने फिर फोन किया और मेरी बात नहीं होती थी. पर जब भी हुई है. मुझे याद है बड़ी मम्मी कान लगा कर सुनती थीं और फिर मेरे मन में तुम्हारे लिए गलत बातें बतातीं. जो समय मुझे तुम्हारी अच्छी बातों से बनाना था, वो मैं किसी की बुरी बातों से खराब कर रही थी.

पर अब सच में मन में कुछ भी खराब नहीं है तुम्हारे लिए. मैं काफी बदल गई हूं. जानती हूं कि तुम मुझसे बेहद प्यार करती हैं. तब भी करती थीं. जानती हूं कि मैं तुम्हारी खुशी हूं. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं. सबसे ज्यादा. बस हर रोज उस दिन का इंतजार करती हूं, जब तुम्हें मां कहूंगी. मेरी मां को मां कहूंगी.

वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खास दिन होगा.

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