मम्मी की सिखाई ये पांच बातें मैं भूल जाना चाहती हूं

सॉरी मम्मी, लेकिन अब बस!

नेहा कश्यप नेहा कश्यप
अप्रैल 22, 2019

मम्मियों के पास हर उलझन, हर सवाल का जवाब होता है, नहीं? उन्होंने बताया, कढ़ाही में पूरी साइड से डालोगी तो जलोगी नहीं, गुस्सा आने पर एक गिलास पानी पियो फिर कुछ कहो, नर्वस होने पर वो चीजें याद करो, जहां तुम सफल हुई हो, वगैरह-वगैरह. उनकी कुछ सलाहों ने मुझे अच्छा इंसान बनने में मदद की और उन्हें में हमेशा याद रखूंगी.

लेकिन मम्मी की सिखाई हर बात मैं याद नहीं रखना चाहती. क्योंकि मेरे हिसाब से वो गलत हैं और उन्हें लेकर आगे नहीं बढ़ा जा सकता. ये कुछ बातें मम्मी ने मुझे बताईं थीं, जो मैं अपनी बेटी को नहीं बताना चाहती.

सहन कर लो- मम्मी कहती थीं, "औरतों में आदमियों से ज्यादा सहन करने की ताकत होती है, आदमी का स्वभाव होता है गुस्सैल." नहीं आदमी की तरह औरत को भी गुस्सा आता है. सहन करते जाना गलत है. सहन करने से आपके साथ गलत होना रुकता नहीं है. इसीलिए, चुपचाप सहन न करें. बोलें, बताएं कि ये ठीक नहीं हो रहा है. बिना डरे शिकायत करें.

लड़कों की बराबरी मत करो- मम्मी अक्सर कहती थीं, "भाई के लिए खाना लगा दो, उसका फैला सामान जगह पर रख दो या वो लड़का है, इसीलिए जा सकता है, कर सकता है, कह सकता है." वगैरह. लड़कियां ही नहीं, लड़कों को उनके काम खुद करना आना चाहिए. लड़के और लड़की दोनों के पास बराबर 24 घंटे होते हैं. जिनमें वो अपने काम कर सकते हैं. सिर्फ लड़का होने पर कुछ भी पहनने, कहने और करने का अधिकार नहीं मिल जाता है. लड़का और लड़की दोनों हर बात में बराबर होते हैं.

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पीरियड, शश्श्श... धीरे बोलो- घर में पीरियड का हौवा. जैसे, "पैड्स के पैकेट छुपाकर रखो, घर पर मर्दों के सामने इसकी बात नहीं होगी." आप तकलीफ में हैं फिर भी घर के आदमियों को पता नहीं कि तुम पीरियड की वजह से बीमार हो, बुखार है कह दो. आने वाली पीढ़ी में लड़कों को भी समझाना होगा कि पीरियड होना बिल्कुल नॉर्मल है. उन्हें बताना होगा कि महिलाओं को इस टाइम परेशानी होती है. तब उनकी मदद करें. इसे छुपाना नहीं इसपर बात करनी होगी.

शादी और बच्चे  सही समय पर हो जाएं- मेरी सभी सहेलियों की शादी हो गई. मां खुद का और उन सब का उदाहरण देकर कहती हैं, कि सही समय पर शादी और बच्चे हो जाना कितना ठीक होता है. समय बदल गया है. आने वाली पीढ़ी के लिए करियर भी काफी जरूरी है. आने वाली पीढ़ी पर मैं इस तरह का प्रेशर नहीं डालूंगी.

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एडजस्ट करना ही पड़ता है- मम्मियों की जिंदगियां एडजस्ट करते हुए ही बीती हैं. उनका करियर, शौक, पसंद सब एडजस्टमेंट में कुर्बान हो गए. हर बात में सिर्फ औरत का एडजस्टमेंट करना सही नहीं है. सभी को अपनी तरह से जिंदगी जीने की पूरी आजादी है. अपनी इच्छाओं को दूसरों के लिए (भले ही वो परिवार क्यों न हो) मार देना गलत है. 

ये सलाहें मैं अपनी बेटियों को नहीं दूंगी. कतई नहीं दूंगी. 

 

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