इस मंदिर की देवी को पीरियड्स आते हैं, इसलिए चार दिन के लिए बड़ा सा मेला लग जाता है

अंबुबाची मेले की कहानी.

लालिमा लालिमा
जून 26, 2019
अंबुबाची मेले में आए लोग. (फोटो- ट्विटर @airnewsalerts/ @MahilaCongress)

असम की एक सिटी है गुवाहाटी. काफी फेमस है. बहुत सुंदर भी है. ब्रह्मपुत्र नदी के बगल में बसा हुआ शहर है. इस शहर में हर साल एक मेला लगता है. बहुतई बड़ा मेला. देश के छोटे-छोटे गांव के लोग भी लाखों की संख्या में इस मेले में शामिल होने गुवाहाटी पहुंच जाते हैं. इस बड़े मेले का नाम है अंबुबाची. जून के महीने में लगता है. या थोड़ा और निश्चित समय बताएं तो आधा जून बीत जाने के बाद यानी मानसून आने के बाद.

ambubachi-mela_750_062619030641.jpgअंबुबाची मेले में शामिल होने गुवाहाटी पहुंचे तांत्रिक. फोटो- ट्विटर @airnewsalerts

इस बार ये मेला लगा 22 जून से 26 जून के बीच. अब सवाल आता है कि भई हर साल इतना बड़ा मेला लगता क्यों है? तो इसका जवाब है बरसों पुरानी एक मान्यता. अब वो मान्यता क्या है, हम आपको बताते हैं-

दरअसल, गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर है. काफी फेमस है. ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. अब कामाख्या मंदिर अस्तित्व में कैसे आया, इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है.

हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक, देवी सती ने अपने पिता के खिलाफ जाकर भगवान शिव से शादी की थी. उनके पिता का नाम था दक्ष. सती की शादी के बाद दक्ष ने एक यज्ञ करवाया था. उसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया था, लेकिन अपनी बेटी को नहीं बुलाया. लेकिन सती बिना बुलाए ही यज्ञ में हिस्सा लेने चली गईं. बेटी से पिता तो पहले ही गुस्सा थे, बिन बुलाए जब बेटी आ गई तब तो पारा ही चढ़ गया. गुस्से में अपने दामाद यानी शिव के बारे में घटिया बातें कहने लग गए. अपशब्द कहने लगे. सती दुखी हो गई. पति के खिलाफ सुन न सकी. इसलिए यज्ञ के कुंड में जहां आग जल रही थी, वहां कूद गईं. शिव बहुत दुखी हो गए. उन्होंने यज्ञ में से सती का शरीर उठाया और नृत्य करने लगे. एकदम गुस्से में नृत्य करने लगे. इस गुस्से को शांत करने का जिम्मा विष्णु जी ने अपने सिर पर लिया. अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए. तब धरती के जिस-जिस हिस्से में सती के शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए. गुवाहाटी में देवी सती का योनी भाग गिरा था. जहां गिरा था, वहां कामाख्या मंदिर बन गया. अब कुछ हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक ये कहा जाता है कि शक्तिपीठों की संख्या 51 है, तो कहीं-कहीं पर ये कहा गया है कि इनकी संख्या 108 है. अब असल में कितनी संख्या है, यो तो एक अलग चर्चा का विषय है.

ambubachi-mela-9_750_062619030745.jpgकामाख्या मंदिर जहां हर साल अंबुबाची मेला लगता है. फोटो- ट्विटर @airnewsalerts

अब बात करते हैं कि मेला क्यों लगता है?

कहा जाता है कि हर साल मानसून की शुरुआत में मां कामाख्या रजस्वला होती हैं. रजस्वला मतलब, उन्हें पीरियड्स आते हैं. तीन दिन तक उनके पीरियड्स चलते हैं. उसी वक्त अंबुबाची मेला लगता है. जब उनके पीरियड्स शुरू होते हैं, तब मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं. यानी लोग उनके दर्शन नहीं कर सकते. तीन दिन बाद दरवाजे खोल दिए जाते हैं, दर्शन के लिए. तब कहा जाता है कि देवी कामाख्या के पीरियड्स खत्म हो गए हैं. दरवाजे खुलने पर बहुत पूजा-पाठ होती है. इन्हीं चार दिनों के बीच ये मेला लगता है.

ambubachi-mela-7_750_062619030841.jpgकामाख्या मंदिर में बरसों पहले से ये मेला लगता आ रहा है. फोटो- ट्विटर @airnewsalerts

इस बार यानी 2019 में ये मेला 22 जून से 26 जून तक लगा. मंदिर के दरवाजे 22 जून की रात 9 बजे बंद हुए थे. 26 जून की सुबह 6 बजे दरवाजे खोल दिए गए. मंदिर के अंदर देवी की कोई मूर्ति नहीं है. बल्कि एक पत्थर है, जिसका आकार औरतों के योनी की तरह है.

दरवाजे खुलने के बाद देवी की पूजा होती है. और लोगों को प्रसाद दिया जाता है. प्रसाद में एक कपड़ा मिलता है. इस कपड़े को अंबुबाची वस्त्र कहा जाता है. ये कहा जाता है कि मंदिर के दरवाजे बंद होने से पहले एक सफेद कपड़ा देवी के आसपास बिछाया जाता है. चार दिन बाद देवी के पीरियड्स की वजह से ये कपड़ा लाल हो जाता है. बाद में इसे ही प्रसाद के रूप में लोगों को दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिसे भी गीले कपड़े का प्रसाद मिलता है, उसकी हर इच्छा पूरी हो जाती है. ये मंदिर तंत्र साधना के लिए भी फेमस है.

हर साल करीब 20 लाख लोग अंबुबाची मेला के दौरान मंदिर के दर्शन करने आते हैं. लेकिन इस बार ऐसा कहा जा रहा है कि लोगों की संख्या 20 लाख से भी कहीं ज्यादा है.

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