फिल्म 'मंगल मिशन' के पोस्टर ने अक्षय कुमार के सामने सभी हिरोइनों को कोने में समेट दिया
अक्षय कुमार और उनका 'औरत को बचाकर भगवान बन जाओ' कॉम्प्लेक्स.
![](https://smedia2.intoday.in/oddnaari/1.0.17/resources/images/ww_default_middle_img.jpg)
मिशन मंगल नाम की फिल्म इस 15 अगस्त को रिलीज होने वाली है. इसका पोस्टर हाल में रिलीज हुआ. अभी टीजर भी आ गया है.
पोस्टर ये रहा.
तस्वीर: ट्विटर
टीजर ये रहा.
देखा? अब एक और पोस्टर दिखाते हैं आपको.
तस्वीर: ट्विटर
ये पोस्टर है फिल्म हिडेन फिगर्स का. 2016 की फिल्म है. NASA में महिलाओं के योगदान पर बनी सच्ची कहानी है.
अब इन दोनों पोस्टर्स को ज़रा आमने-सामने रखकर देखिए.
कोई फर्क दिखा?
मिशन मंगल की कहानी भारत के मंगलयान मिशन पर आधारित है. कैसे ISRO (इंडियन स्पेस रीसर्च आर्गेनाइजेशन) ने रिकॉर्ड बजट (450 करोड़ के लगभग) में ये पूरा प्रोजेक्ट सफल किया. इसमें शामिल लोगों के बारे में जिन्हें दुनिया ने नहीं देखा, उनके बारे में बताएगी ये फिल्म.
लेकिन जिस तरह का पोस्टर बनाया गया है, उससे ऐसा लगता नहीं है.
फिल्म में विद्या बालन, तापसी पन्नू जैसी एक्ट्रेसेज हैं जिन्होंने अपने कन्धों पर अकेले हिट फिल्में दी हैं. उन्हें 'बैंकेबल' एक्टर्स कहा जा सकता है. कीर्ति कुल्हारी, नित्या मेनन, सोनाक्षी सिन्हा भी हैं इस फिल्म में. लेकिन इन सभी को पोस्टर के एक हिस्से में समेट दिया गया है. ताकि अक्षय कुमार की आसमान छूती पर्सनैलिटी कहीं छोटी न लग जाए गलती से.
इतनी सारी टैलेंटेड एक्ट्रेसेज होने के बावजूद उन्हें पोस्टर पर बराबर की जगह तक न मिल पाना दिखाता है कि किस तरह फिल्म में भी उनके किरदार टोकन की तरह इस्तेमाल किए जाएंगे. ये कोई नई बात है नहीं. इस पर पूरी बहस चल चुकी है.
इसका जो टीजर है उसमें सिर्फ अक्षय के डायलॉग हैं. और विद्या का एक डायलॉग है. बस. बाकी एक्ट्रेसेज के चेहरे दिखाए गए हैं. ये बात समझ आती है कि टीजर में ज्यादा कुछ नहीं दिखाय जा सकता, लेकिन उसके हिसाब से भी ये बहुत ही पक्षपाती नज़र आता है.
अक्षय कुमार की फिल्मों में उनका सेवियर कॉम्लेक्स इतना ज्यादा नज़र आता है कि उन्हें अपनी सुपर हीरो वाली इमेज से बाहर निकलने की कोशिश करते हुए भी नहीं देखा जाता. यहां तक कि औरतों की पीरियड की समस्या को पैडमैन में दिखाने के लिए भी अक्षय को उतरना पड़ा. वो न बनाएंगे तो लोग कैसे जानेंगे कि देश में पीरियड एक टैबू है. एयरलिफ्ट फिल्म के बारे में कई लोगों ने लिखा कि जिस तरह से अक्षय का किरदार दिखाया गया, वो बढ़ा-चढ़ा कर क्रियेट किया गया था. अब आप कहेंगे फिल्म है, फिल्म में इतनी लिबर्टी तो होनी चाहिए. तो ये लिबर्टी अक्षय-शाहरुख़-आमिर जैसों को ही क्यों? ये दलील तो बेकार है कि हीरो का नाम न बेचा तो फिल्म नहीं चलेगी. कहानी अच्छी हो तो फिल्म भी कमाल का काम करती है. ये देख चुके हैं लोग.
फिर भी यहां इस फिल्म में अक्षय कुमार एक इकलौते द सुप्रीम लीडर की तरह इस पोस्टर पर विराजमान नज़र आ रहे हैं. और बाकी की लीड एक्ट्रेसेज छोटे से कोने में डाल दी गई नज़र आ रही हैं.
अब दूसरा पोस्टर जो हमने आपको दिखाया. हिडन फिगर्स का. ये पूरी फिल्म ही इसी बात पर है कि 1961 के अमेरिका में किस तरह स्पेस एजेंसी NASA (National Aeronautics and Space Administration) में काम करने वाली अश्वेत महिलाओं का योगदान छुपाया गया. उन्हें उनका क्रेडिट नहीं दिया गया. और दुनिया ने भी उनके बारे में नहीं जाना.
हाल में ही नोबेल जीतने वाली डॉना स्ट्रिकलैंड का अपना विकिपीडिया पेज तक नहीं था. जब उन्होंने नोबेल जीता, तब अचानक से उनका पेज बना और अपडेट होना शुरू हुआ. ये उस बहस का हिस्सा है जिसमें ये कहा जाता है कि साइंस में महिलाओं का योगदान रिकग्नाइज नहीं किया जाता. उतना तो बिलकुल नहीं जितना उनके साथ काम करने वाले पुरुषों का. फिल्म हिडन फिगर्स ये दिखाती है कि परदे के पीछे जिनका योगदान था, उनका सफ़र कैसा रहा.
मंगलयान की सफलता के पीछे कई वैज्ञानिकों की मेहनत और लगन थी. उनका सफ़र दिखाना बनता है. लेकिन इस तरह मुख्य किरदारों को कोने में धकेल देना, सिर्फ इसलिए ताकि आपका हीरो लीड बन सके, और पोस्टर के साथ साथ फिल्म का अधिक हिस्सा कब्जा सके, गलत था, गलत है और गलत रहेगा.
चलते-चलते बता दें कि ये फिल्म के प्रड्यूसर्स में अक्षय भी शामिल हैं. सिर्फ एक्टर नहीं हैं वो इस फिल्म में. इसलिए उनकी ज़िम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है. और इससे वो भाग नहीं सकते.
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