'मिशन मंगल' का ट्रेलर निराश करने वाला है, बेहद निराश करने वाला

अक्षय कुमार के किरदारों को एक बीमारी है. खुद को दुनिया का केंद्र मानने की बीमारी.

नेहा कश्यप नेहा कश्यप
जुलाई 18, 2019

इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गानाइजेशन) ने मंगल पर जीवन की खोज के लिए 5 नवंबर, 2013 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से एक सैटेलाइट लॉन्च किया था. 298 दिनों के सफर के बाद 24 सितंबर, 2014 को रॉकेट मंगल पर पहुंचा. इस प्रोजेक्ट का नाम ‘मार्स ऑर्बिटर मिशन’ हिंदी में ‘मंगलयान’ और शॉर्ट में ‘मॉम’ (MOM) था.

इस मिशन की दो बेहद खास बातें थीं. पहला कि भारत मंगल पर पहुंचने के पहले ही प्रयास में सफल रहा था. दूसरी बात कि ये दुनिया का सबसे सस्ता स्पेस मिशन था. 

भारत का ये सपना तब इसरो (ISRO) में चेयरमैन रहे के. राधाकृष्णन और इसरो में काम कर रहीं पांच महिला साइंटिस्ट की मदद से साकार हो सका था.

हम अभी ये सब इसलिए याद दिला रहे हैं, क्योंकि अक्षय कुमार की फिल्म 'मिशन मंगल' का ट्रेलर आ गया है, जो इसरो के इसी प्रोजेक्ट पर बेस्ड है. ट्रेलर देखकर इसरो की उन पांच महिला साइंटिस्ट्स के बारे में सोचकर निराशा होती है, जिन्होंने 'मंगलयान प्रोजेक्ट' को संभव और सफल बनाया था.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 'मिशन मंगल' के ट्रेलर में अक्षय कुमार ही इकलौते ‘हीरो’ नजर आते हैं. फिल्म में उनके कैरेक्टर का नाम राकेश धवन है, जो रॉकेट लॉन्च मिशन के कंट्रोलर और कमांडर हैं.

2 मिनट और 52 सेकेंड के इस ट्रेलर में वो ‘सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं’ मोड में दिखते हैं. और मिशन में शामिल बाकी लोगों को हिम्मत देने का काम करते हैं. उनके लिए ऊर्जा की किरण, प्रेरणा के स्रोत की तरह होते हैं.

mangalyan_071819072024.png'मिशन मंगलयान' का पोस्टर, जिसमें एक तरफ अक्षय कुमार हैं और दूसरे तरफ सभी एक्ट्रेसेस. तस्वीर- ट्विटर

विद्या बालन जो फिल्म में साइंटिस्ट बनी हैं, पूजा-पाठ करते हुए ट्रेलर में एंट्री लेती हैं. बिंदी लगाती हैं. घर-गृहस्थी के काम करती हैं. हद तो तब हो जाती है, जब अक्षय कुमार विद्या बालन से पूरियां तलवाकर सीनियर ऑफिसर्स को कम पैसों में प्रोजेक्ट पूरा करने का उदाहरण देते हैं.

सोनाक्षी सिन्हा भी साइंटिस्ट बनी हैं. ट्रेलर में अपने इकलौते डायलॉग में वो सिर्फ एक बात कहती हैं, ‘तीन साल के एक्सपीरियंस के बाद नासा उड़ जाऊंगी.’

इसके बाद दिखती हैं तापसी पन्नू. दौड़ती भागती, परेशान सी. अगले ही सीन में वो पति को कुछ खिला रही होती हैं. उनका भी पहला और इकलौता डायलॉग रुला देगा, ‘ये तो करना ही पड़ेगा, क्योंकि शादी जो हो गई है तुमसे.’

कीर्ति कुल्हारी का डायलॉग, ‘इतनी कॉम्लेक्स प्रोग्रामिंग नहीं की है पहले’. नित्या मेनन- ‘इतने इंस्ट्रूमेंट कैसे फिट करेंगे’, सोनाक्षी सिन्हा - ‘850 किलो फ्यूल के साथ ये असंभव है’ विद्या बालन- ‘ये असंभव है, हमें एक अनुभवी टीम चाहिए’

पूरे ट्रेलर में सिर्फ अक्षय कुमार कहते कहते हैं, ‘हम करेंगे’, ‘हम कर सकते हैं’ क्योंकि फिल्म में देश के लिए कुछ कर गुजरने का का जिम्मा तो उन्ही के कंधों पर है. महिला साइंटिस्ट ने तो पूरियां तलते, घर गृहिस्थी के काम निपटाते हुए रॉकेट लॉन्च में मदद कर दी.

दुख की बात ये है कि साइंटिस्ट के रोल में शरमन जोशी तक को पगलैत दिखाया गया है. वो इसरो में काम करते हैं, लेकिन ‘शादी नहीं हो रही’, ‘मंगल भारी है’ जैसी बातें करते हैं.

अगले कुछ सेकेंड में रॉकेट, कम्यूटर और सैटेलाइट लॉन्च जैसे सीन आते हैं और ट्रेलर खत्म हो जाता है.

कुल मिलाकर ट्रेलर सिर्फ अक्षय को ‘हीरो’ और बाकी महिला साइंटिस्ट ‘हमसे न हो पाएगा’ वाली भावना से घिरी नजर आती हैं.

हिंदी फिल्मों में एक्टर हमेशा हीरो होता है. हीरो, यानी सबसे ऊपर, सबसे ज्यादा दिमागदार, स्मार्ट और ताकतवर. हिरोइन हमेशा उसके कंधे के पीछे ही खड़ी होती है. मिशन मंगल भी बॉलीवुड फिल्म है. कहानी भले अंतरिक्ष मिशन की है, लेकिन वही सदियों पुरानी मानसिकता को ही ढो रही है, जिसमें सबसे ऊपर हीरो दर्जा होता है. बाकी सब पीछे.

ये भी पढ़ें- बड़े अफसोस की बात है कि सोनाक्षी का 'दबंग-3' लुक आ गया है

मिशन मंगलयान का ट्रेलर.

 
 

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group