इंदिरा दानू, वो औरत जिसने परिवार के खिलाफ जाकर रेप पीड़ित बच्ची को इंसाफ दिलाया

नेपाल का मामला बताकर पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही थी.

लालिमा लालिमा
जनवरी 23, 2019
निर्भया सेल की वकील इंदिरा दानू.

उत्तराखंड में एक जिला है- बागेश्वर. वहां एक तहसील है कपकोट. इस तहसील के अंदर एक बहुत ही छोटा सा गांव आता है- खाती. दो साल पहले, यानी 2017 में, खाती में एक पुल का निर्माण हो रहा था. बहुत से मजदूर इस काम में लगे हुए थे. नेपाल से भी कुछ मजदूर खाती गांव आए थे. पुल निर्माण में मजदूरी के लिए. ताकि कुछ पैसा कमा सकें.

इन्हीं नेपाली परिवारों में से, एक परिवार में 10 साल की एक बच्ची भी थी. जो अपने मां-बाप के साथ आई थी. मां-बाप दिन भर मजदूरी करते थे. और बच्ची उसी इलाके में कभी खेलती, कभी इधर-उधर भटकती रहती. एक आदमी था विजय बहादुर. वो भी नेपाल से आया था, मजदूरी करने के लिए. बच्ची पर उसकी बुरी नजर थी. एक दिन बहादुर ने मौका पाकर बच्ची का रेप कर दिया. बात थी 2017 के अप्रैल महीने की. और बच्ची को न्याय मिला एक साल बाद मार्च 2018 में.

download_012319092918.jpgप्रतीकात्मक तस्वीर. रॉयटर्स

ये केस तो यूं ही दबा दिया जाता, अगर इंदिरा दानू की नजर इस केस पर, और उस बच्ची पर नहीं पड़ती. इंदिरा दानू निर्भया सेल में वकील हैं. 32 साल की हैं. नेपाल की इस छोटी बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए, इंदिरा ने बड़ी मेहनत की. यहां तक कि अपने परिवार के खिलाफ भी उन्हें जाना पड़ा. क्यों? क्योंकि जिस पुल का निर्माण हो रहा था, उसका ठेका इंदिरा के पिता के पास ही था. ऐसे में जब इंदिरा ने बच्ची के लिए लड़ाई लड़ने की ठानी, तब उनके परिवार ने उन्हें सपोर्ट नहीं किया. इंदिरा को उम्मीद थी, कि कोई सपोर्ट करे न करे, उनका परिवार तो करेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ऐसे में इंदिरा को इमोशनली भी बहुत दिक्कत हुई.

untitled-6_750x500_012319091945.jpgइंदिरा दानू.

बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए इंदिरा ने किस तरह दिन-रात एक कर दिए. सारी कहानी यहां पढ़ें-

- रेप के बाद, बच्ची की तबीयत खराब रहने लगी. बच्ची के मां-बाप उसे बागेश्वर अस्पताल लेकर गए. रेप जैसा गंभीर मामला होने के बाद भी, अस्पताल में बच्ची को बस दर्द की दवा देकर वापस भेज दिया जाता. कोई भी इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा था. पुलिस भी इस पर ध्यान नहीं दे रही थी. खाती वैसे भी बहुत छोटा सा गांव है, ऐसे में वहां फोन वगैरह के नेटवर्क की भी बहुत दिक्कत होती है. घटना को एक महीने बीत गए, कुछ नहीं हुआ. फिर लोगों के जरिए, किसी तरह से इंदिरा दानू को इस केस के बारे में पता चला. उन्होंने पीड़ित परिवार को बागेश्वर में, अपने दफ्तर बुलाया. बच्ची से बात की, सारा मामला जाना.

- इंदिरा ने हमें बताया कि बच्ची की बात सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ. वो कहती हैं, 'मुझे उसकी बातें सुनकर बहुत बुरा लगा. बहुत दुख हुआ. उसका रेप हुआ था, लेकिन फिर भी बागेश्वर अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे केवल दवा देकर, मां-बाप के साथ वापस खाती गांव भेज दिया था.'

untitled-8_750x500_012319092002.jpgइंदिरा दानू.

- पूरा मामला जानने के बाद इंदिरा पुलिस के पास पहुंचीं. कपकोट थाने में शिकायत दर्ज कराने पहुंचीं. पहले तो पुलिस ने ये कहकर शिकायत दर्ज नहीं की, कि पीड़ित और आरोपी दोनों ही नेपाल के हैं, ऐसे में वो दूसरे देश का मामला हो जाता है, यहां कुछ नहीं हो सकता. यानी नेपाल का केस कहकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश हुई. ऐसे में केस दर्ज कराने में बहुत दिक्कत हुई.

- इंदिरा ने कहा कि अगर पुलिस केस दर्ज नहीं करेगी, तो वो अदालत से कार्रवाई करवाएंगी. उन्होंने एसपी को कॉल किया. पुलिस के ऊपर दबाव बनवाया. कहा, 'दो दिन से पीड़िता बाहर बैठी हुई है, पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है. आपकी भी जवाबदेही तय हो जाएगी. मैं तो जा रही हूं फाइल कोर्ट में लेकर. फिर दबाव में आकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. मेडिकल करवाया.'

- इंदिरा ने बताया कि आईपीसी के मुताबिक यानी भारतीय कानून के मुताबिक, आरोपी और पीड़ित किस देश के हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता, मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. ऐसे में पुलिस जो बहाना बना रही थी, वो सही नहीं था.

download-1_012319092932.jpgप्रतीकात्मक तस्वीर. रॉयटर्स

- काफी जद्दोजहद के बाद मई 2017 में केस दर्ज हुआ. पीड़िता का परिवार डर गया था, वो इंदिरा से कहने लगे कि केस वापस ले लिया जाए. ऐसे में इंदिरा ने उनकी हिम्मत बंधाई. कहा कि कोई कुछ नहीं करेगा, और वो आखिरी दम तक उनका साथ देंगी. इधर जब एफआईआर दर्ज हुई, तब आरोपी फरार हो गया. खैर, उसे तो पुलिसवालों ने बाद में पकड़ लिया, और उसकी गिरफ्तारी हो गई.

- इंदिरा का मकसद अब आरोपी को सजा दिलवाना था. उन्होंने जमकर लड़ाई लड़ी. डटी रहीं. हटी नहीं. आरोपी पर मुकदमा चला. मई, 2018 में जिला सत्र न्यायालय ने फैसला सुनाया. आरोपी को 12 साल की सजा हुई. वहीं पीड़ित बच्ची को मुआवजे के तौर पर 5 लाख देने का ऐलान भी हुआ. लेकिन इंदिरा बताती हैं, कि पीड़ित परिवार वापस नेपाल लौट चुका है. और उनसे किसी भी तरह का संपर्क नहीं हो पा रहा है. सारे नंबर स्विच ऑफ आ रहे हैं.

_750x500_012319092020.jpgइंदिरा दानू.

- इंदिरा कहती हैं, 'शायद वो लोग डर गए थे, इसलिए नेपाल चले गए. और उनके सारे नंबर अब बंद हो चुके हैं. लेकिन मैंने यहां थाने में एप्लीकेशन लगाई है. मैंने पीड़िता के हक के पैसों को रोक कर रखा है. नेपाल पुलिस से भी संपर्क किया जा रहा है, ताकि पीड़िता और उसके परिवार का पता चल सके.'

- इस मामले में अगर पीड़िता को न्याय मिला है, तो वो केवल इंदिरा दानू की वजह से ही मिला है. इंदिरा ने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर, ये लड़ाई लड़ी. और अभी भी पीड़िता के हक के पैसे उस तक पहुंचाने के लिए, इंदिरा काफी जद्दोजहद कर रही हैं. इंदिरा की हिम्मत और मेहनत को ऑडनारी की टीम सलाम करती है.

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