Cannes फिल्म फेस्टिवल के पांच मौके जब एक्ट्रेसेस ने दुनिया को ठेंगा दिखाया
कान का रेड कारपेट सिर्फ़ फैशन की नुमाइश करने के लिए नहीं बना है.
कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल चल रहा है. क्या है ये? इसे सारे फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स का बाप समझ लीजिए. फ्रांस में एक शहर है कान. ये फिल्म फेस्टिवल हर साल यहीं होता है. दुनियाभर की फ़िल्में और डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ होने से पहले यहां दिखाई जाती हैं. साथ ही एक से एक तुर्रमखान रेड कारपेट पर वॉक करते हैं. सबकी नज़र इसपर टिकी रहती है कि किसने क्या पहना है. पर ये रेड कारपेट सिर्फ़ फैशन का प्रदर्शन करने के लिए नहीं है. इसको एक मंच की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है. ख़ासतौर पर दुनियाभर की फीमेल सेलिब्रिटीज़ के द्वारा. उनका मकसद होता है अपना मैसेज दुनिया तक पहुंचाना. वो मैसेज जो औरतों पर सीधे रूप से असर करता है.
पिछले कई सालों में ऐसा हुआ है. अब, इस साल की ही बात ले लें...
1. कान रेड कारपेट पर एबॉर्शन बैन के खिलाफ़ आवाज़ उठी
अर्जेंटीना एक देश है साउथ अमेरिका में. 18 मई को यहां बनी एक डॉक्यूमेंट्री कान में दिखाई जानी थी. उसका टॉपिक था औरतों के एबॉर्शन राइट्स. यानी गर्भपात करवा पाने की छूट. जो औरतें इस डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा हैं, उन्होंने कान रेड कारपेट पर वॉक किया. वे रेड कारपेट पर अपने फैशनेबल कपड़ों का प्रदर्शन करने के लिए नहीं बल्कि एक मैसेज देने के लिए चलीं. सब ने अपने हाथ में हरे झंडे पकड़े थे. वो अर्जेंटीना में एबॉर्शन लीगल करवाने की मांग कर रही थीं. इस देश में औरतें सरकार से लड़ रही हैं कि उनके शरीर से जुड़े फ़ैसले लेने का हक उनका होना चाहिए. अगर कोई औरत बच्चा पैदा नहीं करना चाहती है तो उन्हें सेफ़ एबॉर्शन का अधिकार मिले. इसके लिए अभी उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी है. पर दुनिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उन्होंने कान के रेड कारपेट को अपना मंच बनाया. दुनियाभर की मीडिया की नज़र इसपर होती है. इसी बहाने शायद इन औरतों की आवाज़ किसी के कान में पड़ जाए.
एबॉर्शन बैन के खिलाफ़ आवाज़ उठाती औरतें. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
2. जब भेदभाव के खिलाफ़ एकजुट हुई एक्ट्रेसेस
ये साल 2018 की बात है. कान रेड कारपेट पर एक प्रदर्शन हुआ था. अपनी तरह का. 16 अश्वेत अभिनेत्रियां हाथ पकड़कर रेड कारपेट पर चल रही थीं. सब फ्रेंच सिनेमा का हिस्सा थीं. उनका विरोध था फ्रेंच इंडस्ट्री में अश्वेत एक्ट्रेसेस के साथ भेदभाव के खिलाफ़. फ्रेंच सिनेमा में अश्वेत अभिनेत्रियों के लिए रोल्स लिखे ही नहीं जाते. उन्हें इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं समझा जाता है. इन अभिनेत्रियों का कहना था कि जो गिने चुने रोल लिखे भी जाते हैं वो या तो नौकरानी के होते हैं या फिर वैश्या के. इससे ज़्यादा उनके लिए इंडस्ट्री में कोई स्कोप नहीं है. फ्रांस की कुल आबादी में 50 लाख से ज़्यादा लोग अश्वेत हैं. सबके पास फ्रांस की ही नागरिकता है. फ्रांस की सरकार उनके साथ भेदभाव नहीं करती. फिर भी उन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं समझा जाता.
फ्रेंच सिनेमा की एक्ट्रेसेस हाथ पकड़कर रेड कारपेट पर चली थीं. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
3. जब नंगे पैर रेड कारपेट पर चलीं एक्ट्रेसेस
आमतौर पर रेड कारपेट पर चलते समय सेलेब्स ऊपर से नीचे तक एकदम टिप-टॉप दिखते हैं. पर कान रेड कारपेट पर कई अभिनेत्रियां नंगे पैर चल चुकी हैं. इनका ऐसे करने के पीछे एक ख़ास मकसद था. दरअसल कान रेड कारपेट पर चलने वालों को कुछ ख़ास रूल फॉलो करने पड़ते हैं. औरतों के लिए जरूरी है कि वे हील्स पहनें. बिना हील्स के वो रेड कारपेट पर चल नहीं सकतीं. इस रूल को ठेंगा दिखाया 2016 में जूलिया रॉबर्ट्स ने. उन्होंने उस साल एक शानदार ब्लैक गाउन पहना था. पर पैरों में हील्स नहीं. वो नंगे पैर रेड कारपेट पर चलीं. वहीं साल 2018 में भी एक्ट्रेस क्रिस्टन स्टीवर्ट ने अपनी हील्स रेड कारपेट पर उतार दीं. फिर नंगे पैर रेड कारपेट पर वॉक किया.
क्रिस्टन स्टीवर्ट ने 2018 में बिना हील्स के रेड कारपेट पर वॉक किया (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
4. मेहनत बराबर तो पैसे बराबर क्यों नहीं
पूरी दुनिया में आजकल इक्वल पे की बात हो रही है. यानी एक जैसी नौकरी. एक जैसा दाम. लोग सवाल उठा रहे हैं कि एक जैसी मेहनत के लिए आदमी को अलग और औरत को अलग सैलरी क्यों? कहने की ज़रूरत नहीं है कि औरत को आदमी के मुकाबले कम ही पैसे मिलते हैं. ऐसा फ़िल्म इंडस्ट्री में भी आम है. इसी के खिलाफ़ आवाज़ उठाई 82 एक्ट्रेसेस ने कान रेड कारपेट पर, साल 2018 में. हॉलीवुड की 82 अभिनेत्रियों ने रेड कारपेट पर एक साथ वॉक किया. इसमें इंडस्ट्री की सबसे नामी-गिरामी एक्ट्रेसेस भी शामिल थीं. उनकी मांग थी कि औरतों को भी उनके मेहनत के हिसाब से सैलरी मिलनी चाहिए. न कि सिर्फ़ औरत होने के लिए कम दी जाए.
इक्वल पे की मांग के लिए रेड कारपेट पर साथ चलती हॉलीवुड एक्ट्रेसेस. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
5. जूरी में औरतों से क्या परहेज़ है
दुनियाभर के फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स में एक जूरी होती है. यानी जजों की एक कमिटी. जो सेलेक्ट करती है कि कौन सी फ़िल्में दिखाई जाएंगी. किसको अवॉर्ड मिलेगा. आदि. पर जूरी मेंबर्स में औरतों की मौजूदगी न के बराबर होती है. साल 2018 में कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में कुछ बड़ा हुआ. इस मंच को इस्तेमाल किया गया एक फ़ैसला लेने के लिए. वो भी लिखित में. फ़ैसला लिया गया कि इन फेस्टिवल्स में औरतों की मौजूदगी भी आदमियों के बराबर रहेगी. चाहे वो महिला डायरेक्टर्स की हो या जूरी में महिलाओं की जगह. उन्हें भी उतनी ही सीटें मिलेंगी जितनी पुरुषों को.
तालियां! ये दिखाता है कि कान सिर्फ़ एक फ़िल्म फ़ेस्टिवल नहीं, एक प्लेटफॉर्म है. औरतों के लिए अपनी आवाज़ दुनिया तक पहुंचाने का.
कान में औरतें की बराबर की मौजूदगी पर फ़ैसला लिया गया. (फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
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