'जीरो' फिल्म में अनुष्का को किस मेडिकल अवस्था से जूझता दिखाया गया है?

आपने अनुष्का के किरदार को व्हीलचेयर पर देखा होगा. जानिए ऐसा क्यों है.

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दिसंबर 05, 2018

जीरो फिल्म में शाहरुख़ खान एक बौने व्यक्ति बऊआ सिंह का किरदार निभाते दिख रहे हैं. इस फिल्म का गाना मेरे नाम तू में अनुष्का शर्मा और शाहरुख़ खान दिखाई दिए हैं. यूट्यूब पर काफी चल रहा है. देख लीजिए:

इस गाने में और फिल्म के बाकी ट्रेलर वगैरह में आपने देखा होगा कि अनुष्का शर्मा व्हीलचेयर पर हैं. उनको बोलने में भी दिक्कत हो रही है. इस फिल्म की शूटिंग से लेकर ट्रेलर रिलीज़ तक अनुष्का शर्मा का लुक काफी छुपा कर रखा गया था. इसलिए कि कहीं ये लीक ना हो जाए. फिल्म के बारे में जो लोगों को पता था वो ये था कि शाहरुख़ खान इसमें बौने होंगे. ये अपने आप में एक शारीरिक विकलांगता है. इसमें पिट्यूटरी ग्लैंड के ढंग के काम ना करने की वजह से बच्चे या तो बौने रह जाते हैं या दैत्याकार हो जाते हैं. इसे क्रमशः Dwarfism और Gigantism के नाम से जाना जाता है. पिट्यूटरी ग्लैंड सर के पिछले हिस्से में ऊपर ई तरफ मौजूद होता है. इससे जो हॉर्मोन निकलते हैं उससे से किसी की भी हाईट डिसाइड होती है. कम हॉर्मोन निकलेंगे तो हाईट कम रह जाएगी, ज्यादा निकलेंगे तो काफी बढ़ भी सकती है. दोनों ही एबनार्मल स्थितियां हैं.

अनुष्का शर्मा जिस बीमारी से जूझ रही हैं उसका नाम Cerebral Palsy है. इस बीमारी में बच्चों के शरीर की मसल्स का विकास ढंग से नहीं होता. ग्रोथ धीमी पड़ जाती है. हमने बात की डॉक्टर जयंत मिश्रा से. वो VIMHANS हॉस्पिटल में न्यूरॉलजिस्ट हैं. जाना कि आखिर इस बीमारी में होता क्या है.

doc-jayant_750x500_120518014747.jpgडॉक्टर जयंत एक्सपीरियंस्ड न्यूरॉलजिस्ट हैं.

छूत की बीमारी तो नहीं है, कैसे होती है फिर सेरिब्रल पाल्सी?

जन्मजात होती है. या तो मां के पेट में रहते हुए ही कुछ गड़बड़ी आ जाए भ्रूण में. मोटर फाइबर यानी वो रेशे जो मसल्स (मांसपेशियां) को चलाने में मदद करते हैं, वो बनते ही नहीं ढंग से. या फिर जन्म के समय बच्चे को ढंग से ऑक्सीजन ना मिले तो भी दिमाग को नुकसान पहुंचता है. गर्भ में भी अगर ऑक्सीजन की कमी हो तो ये दिक्कत होती है.

लक्षण तुरंत दिखते हैं, कुछ साल बाद दिखते हैं,  या कैसे पता चलता है?

बच्चे के जन्म के बाद कुछ माइलस्टोन होते हैं जिससे उसकी ग्रोथ मापी जाती है. जैसे बैठना, सीधे बैठना, बिना सहारे के बैठना, उठाना, खड़े होना, चलना, दौड़ना, बोलना. उम्र के हिसाब से कोई भी बच्चा इन सबको तय अंतराल पर पूरा कर लेता है. जैसे सात महीनों में बच्चे को बैठना आ जाना चाहिए.  दो साल के भीतर बच्चे को चलना आ जाना चाहिए. इस तरह की चीज़ें बताती हैं कि बच्चा किस गति से बढ़ रहा है. अगर किसी बच्चे की ये ग्रोथ धीमी है तो डॉक्टर द्वारा जांच करानी चाहिए. MRI वगैरह कराने पर पता चला जाता है कि बच्चे को क्या दिक्कत है. ब्रेन में एट्रोफी (मांसपेशियों का अविकसित रहना, बुरी हालत में होना) दिखाई दे जाती है इन टेस्ट्स में. इससे कन्फर्म किया जाता है कि बच्चे को सेरिब्रल पॉलसी ही है.

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अब पता चल गया कि ये बीमारी है, तो क्या करें? बच्चे के लिए क्या उपाय है?

उपाय यही है कि उसे स्पेशल स्कूल में डालें. बच्चे जल्दी सीखने वाले होते हैं. लेकिन इस मामले में उनकी लर्निंग धीमी होती है अधिकतर. वो नार्मल स्कूलों में एडजस्ट नहीं कर पाएंगे. उनके परिवार को थोड़ा अधिक ध्यान देने की ज़रुरत होती है उनपर. इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. मांसपेशियां कमज़ोर हैं तो उनमें सुधार होने के चांसेज ना के बराबर हैं क्योंकि ये बीमारी जन्मजात है. इसके साथ रहना सिखाना ज़रूरी है बच्चों को, ताकि वो आत्मनिर्भर बन सकें उन्हें केवल किसी और की ज़रूरत न पड़े.

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भारत में इस पर बात अब जाकर शुरू हुई है. फिल्में भी अब जाकर बन रही हैं. इससे पहले सेरिब्रल पॉलसी का ज़िक्र मार्गरिटा विथ अ स्ट्रॉ में किया गया था. इस फिल्म में कल्कि केक्लौं ने इस बीमारी से पीड़ित लड़की का किरदार निभाया था.  

 

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