शिवांगी पाठक का Interview: मां से बोली 'जान लगा दूंगी पर जान नहीं दूंगी'
सबसे कम उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली लड़की.
"मैं बिल्कुल ठीक हूं. कुछ नहीं हुआ है मुझे. प्लीज़ सबसे पहले ये बात लिखिए. कल से लगातार लोगों के कॉल्स आ रहे हैं. पता नहीं किसने फेसबुक पर फर्ज़ी पोस्ट डाल दी है कि मैं ख़तरे में हूं."
शिवांगी पाठक सबसे कम उम्र में एवरेस्ट फ़तह करने वाली भारत की पहली औरत बन गई हैं. अभी लुकला में हैं. दिल्ली पहुंचने में उन्हें तीन दिन और लगेंगे. काफी कोशिशों के बाद ऑडनारी ने उनसे बात की तो उन्होंने सबसे पहले यही कहा कि वे बिल्कुल ठीक हैं और बिना हर्ट हुए उन्होंने चढ़ाई पूरी कर ली है, अब सेफली उतर रही हैं. एक फर्ज़ी पोस्ट उनके बारे में लिख दी गई थी कि वे ख़तरे में हैं और चढ़ाई के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई है. जबकि ऐसा नहीं था.
पढ़ें शिवांगी से हमारी बातचीतः
मैंने कई जगह ये पढ़ा कि आप अरुणिमा सिन्हा (एवरेस्ट चढ़ने वाली देश की पहली हैंडीकैप्ड महिला) से प्रेरित थीं. उनके जैसा बनना चाहती थीं?
शिवांगी - सही पढ़ा है आप ने. असल में हुआ ये कि एक दिन मैं अपनी मां के साथ एक फंक्शन में गई थी. वहां अरुणिमा सिन्हा की बॉयोपिक (डॉक्यूमेंट्री) चल रही थी. उस बॉयोपिक ने मुझे बहुत इंस्पायर किया. मेरी मां भी समझ गईं थी कि मैं काफी प्रभावित हो चुकी हूं. इसीलिए उन्होंने मुझसे ऐसे ही मज़ाक में कह दिया कि, "तू एवरेस्ट पर क्यों नहीं चढ़ती?" फिर क्या था. मैंने मां की बात को सीरियसली ले लिया. और अरुणिमा से प्रेरणा लेकर यहां तक पहुंच गई.'
एवरेस्ट फ़तेह करने के लिए क्या खास ट्रेनिंग लेनी पड़ी थी?
शिवांगी - मैंने पिछले साल पहलगांव और दार्जिलिंग में माउंटेनियरिंग के चार कोर्स किए थे. इसके अलावा रोज़ 8 से 9 किलोमीटर तक दौड़ती थी. सुबह-शाम 3-3 घंटे योग भी करती थी. साथ ही बीते डेढ़ साल में मैंने अपना 12 किलो वेट लूज़ किया है. बाकी और ट्रेनिंग भी नियमित रूप से चली.
आपका 12वीं क्लास का रिज़ल्ट भी आ गया है. एक तरफ़ एवरेस्ट जीतना, दूसरी तरफ़ 72% अंक आना, ये कैसे मुमकिन हुआ?
शिवांगी - मैंने कभी भी आंख फोड़ लेने वाली पढ़ाई नहीं की. हमेशा हंसते-खेलते ही पढ़ा है. पूरे दिन ट्रेनिंग करने के बाद रात में केवल दो घंटे ही मैं पढ़ाई करती थी.
एवरेस्ट पर जाने के अलावा भी कभी कोई लक्ष्य रहा था?
शिवांगी - माउंटेनियरिंग का शौक तो बाद में हुआ, शुरुआत में तो दोस्तों की देखा-देखी मैं भी यू.पी.एस.सी करने का सोचती थी. लेकिन कुछ ही समय के बाद ये बात समझ में आ गई कि मुझे इस भेड़चाल का हिस्सा नहीं बनना. कुछ अलग करना है. और फिर जो हुआ वो आपको पहले ही बता दिया है.
शिवांगी अभी काठमांडू में हैं. दिल्ली आने में उन्हें तीन दिन लगेंगे. नेटवर्क में ख़राबी की वजह से उनसे इतनी ही बात हो पाई. फिर हमने उनकी मां आरती पाठक से बात की.
बेटी के इस अचीवमेंट पर आपको बधाई!
आरती पाठक - बधाई केवल हमें नहीं, आपको भी! वो आपकी भी बेटी है.
एक बच्चे की सफलता में उसके मां-बाप का सहयोग काफ़ी ज़रूरी होता है. शिवांगी के इस फैसले में आपकी सहमति थी?
आरती पाठक - टेक्निकली देखें तो मैंने ही उसे एवरेस्ट फ़तेह करने की बात कही थी. पर मैंने ये बात मज़ाक में कही थी. और शिवांगी ने इसे सीरियसली ले लिया. शुरुआत में तो हमें लगा था कि ये काम आसान होगा. छोटी सी कोई चोटी होगी जहां सिर्फ जाना और आना ही तो है. लेकिन जैसे-जैसे हम इसके बारे में जानते गए, हमें समझ आया कि ये बहुत टफ और रिस्की है. पर शिवांगी डरी नहीं. कोशिश करती गई. और उसकी इस कोशिश में हम हमेशा उसके साथ खड़े रहें.
ऐसे मिशन बहुत खतरनाक होते हैं, आपको डर नहीं लगा कि कुछ हो न जाए?
आरती पाठक - जब उसकी ट्रेनिंग पूरी हो गई थी और वो एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए तैयार थी, तो एक व़क्त के लिए मेरे दिमाग में ये चीज़ घूमने लगी थी कि अभी ये बहुत छोटी है. नहीं कर पाएगी. बहुत रिस्क है. क्योंकि हमने इससे संबंधित कई वीडियोज़ देखे थे. और वो काफ़ी खतरनाक थे. पर शिवांगी डटी रही. वो कहती थी कि मम्मी मैं जान लगा दूंगी, लेकिन जान दूंगी नहीं. तुम बिल्कुल भी टेंशन मत लो. और आखिरकार जो हमने पिछले डेढ़ साल से मेहनत की थी, बेटी और मां ने मिलकर, वो सफल हो गई है.'
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