लाखों औरतें अपने ही गर्भाशय पर हक पाने के लिए लड़ रही हैं
ये इस सदी की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक है
Cannes फिल्म फेस्टिवल में इस साल एक फिल्म की स्क्रीनिंग हुई. नाम था- लेट इट बी लॉ. अर्जेंटीना में एबॉर्शन यानी गर्भपात के अधिकार को लेकर बनी फिल्म है. अर्जेंटीना में गर्भपात को कानूनी वैधता प्रदान करने की लड़ाई चल रही है. पिछले साल बिल पेश हुआ था, रिजेक्ट कर दिया गया. 28 मई, 2019 को दुबारा पेश होगा. इसके लिए Cannes के रेड कारपेट पर प्रदर्शन हुए. पूरी दुनिया का ध्यान गया.
इसी के साथ-साथ अमेरिका में भी औरतें प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर पड़ी हैं. लाखों की संख्या में औरतें अपने शरीर पर वापस हक़ पाने के लिए लड़ रही हैं. आखिर ऐसा क्या हो गया है?
हैंडमेड टेल्स के कपड़े पहन विरोध जताती औरतें. मार्गरेट एटवुड का लिखा ये उपन्यास दिखाता है इस तरह महिलाओं पर कब्जा करके उनसे जबरन बच्चे पैदा करवाए जाते हैं और उन पर दूसरों का कंट्रोल रहता है.
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में 50 स्टेट हैं. वैसे ही जैसे अपने भारत में 29. वहां के एक स्टेट एलबामा (Albama) में सभी एबॉर्शन्स पर लगाम लगाई गई है. सिर्फ उनको छोड़ कर जिनमें मां की जान को खतरा हो. बाकी सभी एबॉर्शन बैन कर दिए गए हैं. वो भी जिनमें रेप की वजह से प्रेग्नेंसी हुई हो.
इस साल तकरीबन आठ स्टेट्स ने एबॉर्शन पर किसी न किसी तरह की रोक लगाने वाले बिल पास किए हैं. जॉर्जिया, ओहायो, मिसिसिपी, केंटकी जैसे राज्यों में भी रिस्ट्रिक्शन का बिल पास हुआ है एबॉर्शन पर. जिस भ्रूण में दिल की धड़कन पता चल जाए, उसके एबॉर्शन पर रोक लग जाए ऐसे बिल हैं ये.
1973 से पहले तक अमेरिका के कई स्टेट्स में अबॉर्शन गैरकानूनी था. महिलाएं दूसरे स्टेट्स यानी उन स्टेट्स में जाकर एबॉर्शन करवाती थीं जहां पर सुविधा उपलब्ध थी और अबॉर्शन गैर कानूनी नहीं था. कई महिलाएं तो अनसेफ एबॉर्शन करवाने के चक्कर में जान भी गंवा देती थीं. इसको लेकर बहस शुरू हुई. कई कानूनी मामले चले, बहस मुबाहिसे हुए. 22 जनवरी 1973 को लिंडा कॉफ़ी और साराह वेडिंगटन की कानूनी लड़ाई रंग लाई, और रो वर्सेज वेड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि एबॉर्शन करवाना किसी भी महिला का निजी अधिकार है. तब से लेकर अब तक रो वर्सेज वेड मामला किसी न किसी तरह विवादों में बना रहा है. इस जजमेंट को लोग टार्गेट करते आए हैं.
तस्वीर: अलजज़ीरा
अमेरिका में एबॉर्शन को लेकर दो गुट हैं. एक है प्रो लाइफ. यानी जो ये कहता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा अपने आप में एक जीवित व्यक्ति है. उसके अपने हक़ हैं. उसे नहीं मारा जा सकता. दूसरा है प्रो चॉइस. ये गुट कहता है कि स्त्री के शरीर पर उसका हक़ है. उसके गर्भ में आने वाला कोई भी भ्रूण उसके शरीर पर निर्भर है. अगर वो नहीं चाहती कि वो प्रेग्नेंसी कैरी करे, तो ये उसका हक है कि एबॉर्शन करवा ले. उसका शरीर, उसकी चॉइस.
अब इन्हीं बिल्स को लेकर बवाल मचा हुआ है. इन्हें एंटी-विमेन यानी महिला-विरोधी कहा जा रहा है. ग्रैंड ओल्ड पार्टी (GOP – रिपब्लिकन पार्टी) अमेरिका की कंजर्वेटिव पार्टी है. अपने आप को एंटी-एबॉर्शन कहते हैं इस पार्टी के कई लोग. इस पार्टी के कई सीनेटर खुद को प्रो लाइफ बताते हैं. महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं, कि बंदूकों के रेगुलेशन को लेकर कंट्रोल तो है नहीं, लेकिन महिलाओं के यूट्रस पर कंट्रोल जताने का बहुत चाव है स्टेट को. रो वर्सेज वेड जजमेंट को ओवर्टर्न करने की बात तक चल रही है.
अगर हम भारत की बात करें तो यहां प्रेग्नेंसी के शुरुआती 20 हफ़्तों तक एबॉर्शन यानी गर्भपात वैध है. 1971 में बना MTP एक्ट यानी Medical Termination of Pregnancy Act कुछ नियमों के तहत प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने यानी खत्म करने की इजाज़त देता है. लेकिन इसमें ये महत्वपूर्ण है कि एबॉर्शन किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर के द्वारा ही किया जाए. इस एक्ट के तहत गर्भपात तब करवाया जा सकता है जब:
सांकेतिक तस्वीर: ट्विटर
- प्रेग्नेंसी जारी रखने पर मां को शारीरिक या मानसिक क्षति होने के चांसेज हों
- अगर बच्चे के पैदा होने पर गंभीर शारीरिक या मानसिक कमी, विकलांगता या गड़बड़ी का शिकार होने की आशंका हो.
- अगर प्रेग्नेंसी रेप की वजह से हुई हो.
- 12 हफ़्तों तक एक प्रैक्टिशनर की सलाह पर एबॉर्शन हो सकता है. 12 से 20 हफ़्तों के बीच एबॉर्शन के लिए कम से कम दो प्रैक्टिशनरों का समर्थन चाहिए होता है.
- अगर किसी शादी-शुदा महिला के केस में निरोध फेल हो जाता है, या गर्भ रोकने के लिए किया गया उपाय काम नहीं आता और वो प्रेगनेंट हो जाती है, तो इस आधार पर भी वो एबॉर्शन करवा सकती है. हालांकि, एक्ट में गैर शादी-शुदा महिलाओं के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
एबोर्शन दो तरीके का होता है. मेडिकल और सर्जिकल. मेडिकल एबोर्शन प्रेग्नेंसी के शुरुआती छह हफ़्तों तक किया जाता है इसमें आपकी डॉक्टर आपको दवा प्रिस्क्राइब करती हैं. उनसे एबॉर्शन हो जाता है. छह हफ़्तों के बाद सर्जिकल एबॉर्शन होता है. ट्रेंड डॉक्टर और प्रैक्टिशनर की देख-रेख में होने वाले एबॉर्शन पूरी तरह सेफ होते हैं.
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हालांकि एक तरह से भारत में एबॉर्शन कानूनी रूप से मान्य हैं कुछ नियमों के तहत, और दूसरे कई देशों से ज्यादा लिबरल हैं, लेकिन फिर भी भारत में लाखों की संख्या में अवैध जगहों से गर्भपात करवाए जाते हैं. 2007 में किये गए एक सर्वे के मुताबिक़, सिर्फ 23 फीसद पुरुषों और 28 फीसद महिलाओं को मालूम था कि एबॉर्शन को कानूनी मान्यता मिली हुई है. कानूनी मान्यता का मतलब इसे अपराध नहीं माना जाएगा.
कोई भी महिला एबॉर्शन तभी करवाती है जब वो बच्चे के लिए तैयार न हो. जो औरतें इच्छा के साथ, तैयारी करके प्रेगनेंट होती हैं, वो अधिकतर बच्चा नहीं गिरवाना चाहतीं. उनका मिसकैरिज हो तो बात अलग है. लेकिन गलती से गर्भ रह जाना, रेप की वजह से गर्भ रह जाना.. ये ऐसी परिस्थितियां हैं जिनमें महिला बच्चे के लिए तैयार नहीं होती. ऐसे में उसे जबरन नौ महीने तक बच्चे को कोख में पालने के लिए मजबूर करना, और बच्चे को एक अस्थिर, विरक्त, पालन-पोषण करने में असमर्थ पेरेंट के भरोसे छोड़ना कहीं बड़ी गलती है. जो लोग जोर शोर से अजन्मे भ्रूणों की वकालत कर के खुद को प्रो लाइफ कहते हैं, वही लोग सड़क पर छोड़ दिए गए या कचरे में फेंक दिए गए य अनाथालयों में पल रहे बच्चों की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखते. उनकी नज़र में अगर जिंदगी की इतनी कीमत है जब वो स्त्री के गर्भ में है, तो उसके बाहर क्यों नहीं?
सांकेतिक तस्वीर: ट्विटर
ख़ास तौर पर अमेरिका में तो ये बात काफी ज्यादा बार बहस में घसीटी जा चुकी है. वहां स्कूल शूटिंग और मास शूटिंग एक बहुत बड़ा मुद्दा है. एक बार में गोलियां चल जाएं तो कई बच्चे और लोग मर जाते हैं. सिर्फ इसलिए कि वहां असॉल्ट राइफल्स खरीदना बेहद आसान है. अधिकतर प्रो लाइफ कंजर्वेटिव लोग बंदूकों के पक्ष में भी हैं. इस पर उन्हें टारगेट किया जाता है कि अगर उन्हें लाइफ की इतनी चिंता है तो बंदूकें क्यों नहीं बैन कर देते. महिलाओं के शरीरों पर अधिकार और कंट्रोल जताना इनके लिए आसान है.
एक जीती-जागती महिला का जीवन उसके गर्भ में उसकी मर्जी के बगैर आये भ्रूण से कहीं ज्यादा कीमती है. डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य अयाना प्रेस्ली ने कहा,
'ये राष्ट्र महिलाओं की पीठ पर बना और उनके गर्भ में बढ़ा था, और हमारे अधिकार बहस का मुद्दा नहीं हैं'.
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