कहीं आप 'अनजाने में' अपनी महिला सहकर्मी का यौन उत्पीड़न तो नहीं कर रहे?
'औरतों के कानून' भाग 8: आपको पहले बता दें कि यौन शोषण क्या होता है.
राधिका (नाम बदल दिया गया है) नोएडा सेक्टर-62 की एक कंपनी में बतौर इंजीनियर काम करती है. वो गाज़ियाबाद की रहने वाली है. हाल में ही उसने उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर स्थित पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज करवाई है. मामला है छेड़-छाड़ का. साथ ही और भी धाराएं लगी हैं. राधिका ने शिकायत पत्र में अपनी कंपनी में काम कर रहे 43 लोगों पर आरोप लगाया है.
बात मार्च-अप्रैल 2018 की है. उसके बॉस और बाकी कुछ साथी उससे बात करते समय अश्लील इशारों का इस्तेमाल कर रहे थे. यही नहीं. राधिका का बॉस चाहता था कि वो रोज़ देर रात तक ऑफिस में रुके. इसके लिए वो रोज़ नए-नए बहाने बनाता था. और तो और. उसकी महिला सहकर्मी भी बॉस के साथ सेक्स करने के लिए उसको फ़ोर्स कर रही थीं. एक दिन राधिका से और सहा नहीं गया. उसने एक चिट्ठी लिखी. उसमें अपने साथ हो रही दिक्कतों के बारे में लिखा. राधिका ने ये चिट्ठी महिला आयोग, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी. साथ ही यही शिकायत उसने 10 और जगह भी की. पर कुछ नहीं हुआ.
राधिका ने ये बात अपने घरवालों को बताई. उसके रिश्तेदारों ने उसको सेक्टर-58 के पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाने को कहा. बड़ी मिन्नतों के बाद शिकायत दर्ज हुई.
ये असली घटना है. पर राधिका अकेली लड़की नहीं है जिसके साथ अलग-अलग तरीकों से ऑफिस में यौन उत्पीड़न हुआ है. चाहे वो बातों से हो, गालियों से हो, छू कर हो या इशारों से हो. अगर कोई भी इंसान अपनी हरकतों से किसी लड़की को असहज महसूस करवाता है, तो वो यौन उत्पीड़न ही कहलाएगा.
पहले लोग इस तरह की छेड़-छाड़ को बहुत हल्के में लेते थे. आज भी लेते हैं. शायद इसलिए जो लड़की के साथ होता है उसे छेड़-छाड़ कहा जाता है. पर छेड़ना बहुत ही छोटा शब्द है. ये बात कानून को भी 2013 में समझ में आ गई. इसलिए उसने विशाखा गाइडलाइंस को और मज़बूत कर दिया.
क्या है ये विशाखा गाइडलाइंस?
दफ़्तरों में महिलाओं के साथ बदतमीज़ी और यौन उत्पीड़न न हो, इसलिए कुछ रूल्स बनाए गए थे. 1997 में सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने रूल्स में कुछ फेर-बदल की थी. कई सालों तक दफ़्तरों में इन्हीं रूल्स को देखते हुए तय किया जाता था कि मामला यौन उत्पीड़न का है या नहीं. 2013 में इन रूल्स में कुछ बदलाव किए गए. इस ऐक्ट का नाम था सेक्सुअल ह्रास्मेंट ऑफ़ वीमेन ऐट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहीबिशन एंड रेड्रेस्सल) एक्ट, 2013.
क्यों बनी विशाखा गाइडलाइंस?
1990 के दौरान राजस्थान में एक महिला रहती थीं भंवरी देवी. वो राजस्थान सरकार के लिए काम करती थीं. क्योंकि वो एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थीं, उनका काम नाबालिग बच्चियों की शादियां रोकना था. उस समय वो वीमेन डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत काम कर रही थीं. पर अपना काम करने की बड़ी कीमत भंवरी देवी को चुकानी पड़ी. बाल विवाह रोकने की कोशिश में, ऊंचीं जाति के कुछ लोग उनसे काफ़ी गुस्सा हो गए. उनका मानना था कि बाल विवाह उनके कल्चर का एक हिस्सा है. उन्होंने भंवरी देवी को सबक सिखाने की ठानी. इसलिए उन्होंने भंवरी देवी का गैंग रेप किया. उनका कहना था कि ‘एक ग़रीब और नीच औरत में इतनी हिम्मत के वो उनसें पंगा ले!’.
जब बात पुलिस और कोर्ट तक पहुंची तो पैसे का खेल शुरू हुआ. उनका रेप करने वालों को राजस्थान हाई कोर्ट ने छोड़ दिया. इस फ़ैसले ने एक महिला समूह को काफ़ी नाराज़ कर दिया. उस ग्रुप का नाम था विशाखा. उन्होंने राजस्थान हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को चैलेंज किया सुप्रीम कोर्ट में.
जब सुप्रीम कोर्ट की निगाह इस केस पर पड़ी तो ऑफिस में यौन उत्पीड़न से लड़ने के लिए कुछ रूल्स बनाए गए. ये 1997 की बात है. तब ये फ़ैसला हुआ था कि यही गाइडलाइंस तक तक मानी जाएंगी जब तक कोई नया विधान नहीं बन जाता.
नया विधान आया 2013 में. उसका मकसद था काम करने की जगह पर औरत और आदमी को बराबर हक दिलवाना. एक साथ इज्ज़त के साथ काम करने देना.
उस समय सेक्सुअल हरास्मेंट ऐट वर्कप्लेस की परिभाषा थोड़ी बदल गई.
अब कौन-कौन सी बातें सेक्सुअल हरास्स्मेंट ऐट वर्कप्लेस मानी जाती हैं?
1. अगर कोई आदमी काम करने की जगह पर एक औरत को उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ छूता है तो वो सेक्सुअल हरास्स्मेंट है.
2. किसी महिला कर्मचारी से सेक्स या उससे जुड़ी कोई भी डिमांड रखना.
3. कोई ऐसा कमेंट या कोई ऐसी बात कहना जो अपने आप में सेक्सुअल हो.
4. किसी महिला कर्मचारी को पॉर्न दिखाना. चाहे वो विडियो में हो, किताबों में हो या तस्वीरों में हो.
5. कोई भी ऐसी हरकत करना जो सेक्सुअल हो. छूकर, बोलकर, लिखकर, दिखाकर, वगैरह.
सेक्सुअल हरास्स्मेंट की शिकायत कौन कर सकता है?
सेक्सुअल हरास्स्मेंट की शिकायत सिर्फ़ एक औरत ही कर सकती है.
सेक्सुअल हरास्स्मेंट ऐट वर्कप्लेस की शिकायत कैसे कर सकते हैं?
1. विशाखा गाइडलाइन्स के तहत हर उस कंपनी या ग्रुप में जिसमें 10 से ज़्यादा लोग हैं, उनको इंटरनल कम्प्लेंट कमिटी बनाना ज़रूरी है. इस कमिटी का काम ऐसी शिकायतों को सुनना है.
2. अगर किसी कंपनी में ऐसी कमिटी नहीं है तो वो लोकल कम्प्लेंटस कमिटी में शिकायत दर्ज कर सकती है. ये राज्य सरकार द्वारा बनाई गई कमिटी होती हैं. पर इसमें एक प्रॉब्लम है. कई सारे राज्यों में ये कमिटी नहीं बनी होती. साथ ही किसको शिकायत लिखनी है, ये जानकारी भी जनता को नहीं दी गई है.
कब तक शिकायत करनी चाहिए?
अगर आपके साथ ऑफिस में ऐसा कुछ हुआ है तो आप घटना के छह महीने के अंदर शिकायत दर्ज कर सकती हैं. अगर ऐसा एक से ज़्यादा बार हुआ है तो, आखिरी घटना से तीन महीने के अंदर शिकायत दर्ज कर देनी चाहिए.
शिकायत कैसे दर्ज करनी है?
सेक्सुअल हरास्स्मेंट की शिकायत हमेशा लिखित में देनी चाहिए. उस कमिटी को जिसके बारे में हमने आपको बताया. साथ ही अगर कोई सुबूत है तो वो भी दें.
शिकायत दर्ज करने के बाद क्या होगा?
अक्सर दो चीज़ें होती हैं:
-एक चीज़ होती है जिसका नाम होता है कंसिलियेशन. इसमें दोनों पार्टियों को कमिटी के साथ बैठकर एक अग्रीमेंट पर आना होता है. पर ऐसा नहीं हो सकता कि जिसने यौन उत्पीड़न किया है वो पैसे देकर मामला निपटाने की सोचे.
-पर अगर औरत इस तरह की सुलह नहीं चाहती तो तहकीकात शुरू होगी. ये तहकीकात कंपनी में मौजूद कमिटी करती है. उसके पास 90 दिन का समय होता है. ये तहकीकात या तो कंपनी द्वारा बनाई गई पॉलिसी के तहत हो सकती है या जो सामान्य लॉ बना हुआ है उसके बेसिस पर.
कंपनी महिला, आरोपी और गवाहों से बात करती है. साथ ही सुबूत भी मांगती है. याद रहे, यहां कोई भी वकील किसी को रेप्रेजेंट नहीं करता.
अगर साबित हो जाता है कि हरास्स्मेंट हुआ है तो क्या होगा?
1. सबसे पहले तो कमिटी कंपनी को जांच के बारे में बताएगी.
2. वो कंपनी के मालिक से पूछेगी कि क्या ऐक्शन लिया जाए.
3. ऐक्शन या तो कंपनी द्वारा बनाए गए रूल्स के तहत होगा या जो कानून बना है उसके हिसाब से.
4. सज़ा क्या होती है, वो तो केस पर निर्भर करता है. पर ज़्यादातर केसेज में आरोपी को लिखित माफ़ी मांगनी पड़ सकती है, उसे वार्निंग मिल सकती है. उसका प्रमोशन रोका जा सकता है. अगर उसकी तन्ख्वाह बढ़ने वाली होगी तो वो भी रोकी जा सकती है. उसे काउंसलिंग के लिए भेजा जा सकता है या नौकरी से भी निकाला जा सकता है.
ऑफिस में हो रही बदतमीज़ी उतनी ही सीरियस है जितनी सड़क पर हो रही कोई घटना. इसलिए उसे संजीदगी से लेना बहुत ज़रूरी है.
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