हर दिन अपने रिश्ते में गिल्ट महसूस करती हैं तो मुमकिन है आप मानसिक उत्पीड़न की शिकार हों
आपको लगता है आपके पति या बॉयफ्रेंड का किसी से अफेयर है, पर वो आपको ही शक्की कहता रहता है?
दिव्या को काफ़ी समय से शक हो रहा है कि उसके पति रवि का अफ़ेयर चल रहा है. रवि आजकल देर रात तक घर लौटता है. छुट्टी के दिन फ़ोन पर घंटों लगा रहता है. हाल ही में जिम जाना भी शुरू किया है. आजकल वो पहले से ज़्यादा ख़ुशमिज़ाज़ भी लगने लगा है, मगर दिव्या के साथ उसके रिश्ते में एक अजीब सी ठंडक पड़ गई है. एकदिन दिव्या पूछ ही लेती है कि आख़िर बात क्या है. व्यवहार में ऐसे बदलाव की क्या वजह हो सकती है.
रवि उसके मुंह पर जवाब दे देता है, ‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं बिल्कुल पहले जैसा ही हूं. प्रॉब्लम दरअसल तुम्हारे अंदर है. छोटी से छोटी बात पे दिमाग़ ख़राब कर लेती हो. मुझे तो लगता है तुमसे मेरी आज़ादी देखी नहीं जाती या मेरी कामयाबी पे जलन होती है. नहीं तो कौनसी बीवी इस तरह अपने पति की जान खाए रहती है?’
यह सुनके दिव्या सन्न रह जाती है. क्या रवि की बातों में कोई सच्चाई हो सकती है? क्या वो वाक़ई शक्की और चिड़चिड़ी हो गई है? क्या उनके रिश्ते में दूरी उसी की वजह से आ रही है? क्या वो एक अच्छी पत्नी नहीं है? उसे अपनी इन्स्टिंक्ट्स पर विश्वास करना चाहिए या रवि की बातों पर?
मनोविज्ञान की भाषा में रवि के व्यवहार को ‘गैसलाइटिंग ‘ कहा जाता है. सायकॉलिजस्ट और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रफ़ेसर डॉ॰ इतिशा नागर कहती हैं, ‘गैसलाइटिंग एक तरह का मानसिक उत्पीड़न है. इसमें अब्यूज़र अपनी ग़लतियां छिपाने के लिए विक्टिम को दोषी ठहराता है ताकि विक्टिम उसका विरोध करने के बजाय अपनी भावनाओं और अनुभवों को डाउट करने लगे. यह बड़ी चतुराई से की जाती है ताकि विक्टिम को पता ही न चले कि उसे ब्रेनवॉश करके एक नैरटिव पेश किया जा रहा है.’ वह यह भी कहती हैं की गैसलाइटिंग सिर्फ़ रिश्तों तक सीमित नहीं है. सरकार, मीडिया आदि संस्थान भी हमें गैस लाइट करते हैं ताकि हम सोचना बंद कर दें और उन्हीं के इशारों पर चलें. गैसलाइटिंग एक इंसान को ख़ुद पर पूरी तरह से निर्भर बना देने का तरीक़ा है ताकि वह ख़ुद के लिए न सोच सके और अब्यूज़र की हर बात माने.’
अब्यूस मानसिक भी हो सकता है यह बात हर कोई जानता नहीं, या स्वीकार नहीं करना चाहता. ‘अब्यूस’ सुनते ही हमारी आंखों के सामने ख़ून से सनी औरत की तस्वीर आ जाती है. हम अपने आप को तसल्ली देते रहते हैं कि, ‘हमारा हज़्बंड/पार्ट्नर चाहे जैसा भी हो, मारता पीटता तो नहीं है.’ लेकिन यह जानना बहुत ज़रूरी है कि शोषण सिर्फ़ मारने पीटने तक सीमित नहीं है. शोषणकारी हमारे मन पर क़ब्ज़ा करने के कई तौर तरीक़े अपनाते हैं जिससे हम अंदर से टूट जाएं और हमारा आत्मविश्वास पूरी तरह ध्वस्त हो जाए. ऐसे में इंसान को कंट्रोल करना और आसान हो जाता है.
‘गैसलाइटिंग’ शब्द लिया गया है पैट्रिक हैमिल्टन के नाटक ‘गैसलाइट’ (1938) से, जिस पर बाद में फ़िल्म भी बनी थी. यह उस दौर की कहानी है जब लोगों के घर बिजली की जगह गैस की लाइटें जलती थीं. कहानी है एक आदमी की जो रोज़ शाम अपने घर की गैस लाइट्स की रोशनी धीमी कर देता था. रोशनी की कमी के कारण उसकी पत्नी को मानसिक तनाव महसूस होता था. वो बार बार अपने पति से कहती कि अपने आसपास किसी बदलाव की वजह से उसे ठीक नहीं लग रहा. पति हर बार उसकी बातों की हँसी उड़ाता था और कहता परेशानी बाहर नहीं, उसके मन में है. ऐसे में वो अपना मानसिक संतुलन खोती रही और उसका पति उसे हर तरह से डॉमिनेट करता रहा.
कैसे होती है ‘गैसलाइटिंग’?
गैसलाइटिंग के कई तरीक़े हैं. जैसे की किसी की बात को काउंटर करना, बात को टालना, बात बदलने की कोशिश करना, या किसी के फ़ीलिंग्स का मज़ाक़ उड़ाना. इनका इस्तेमाल कुछ यूँ होता है:
1. आप अपने बॉयफ़्रेंड को याद दिलाती हैं कि आनेवाले संडे आपके मम्मी-पापा से मिलने जाना है. वो जवाब देता है, ‘अरे यार, तुम अभी से इतनी सीरीयस क्यों हो रही हो? क्या ज़रूरत है इतनी जल्दी मम्मी-पापा से मिलवाने की?’ आप शॉक्ड होकर कहती हैं अरे, पिछले हफ़्ते ही तो बात हुई थी इस बारे में. तुमने हां कहा था और यह भी कहा था कि जितनी जल्दी हो सके मिल लेना चाहिए. इसपे उसका जवाब होता है, ‘धत पागल! मैंने ऐसा कब कहा? तुमने ज़रूर कुछ ग़लत समझ लिया होगा. तुम भी न!’ इस तरह वो आपकी बात को काउंटर करके अपना नैरटिव आगे रख देता है. इससे आपको शक होगा कि आपका अनुभव क्या वाक़ई में सच था या आपसे कुछ ग़लतफ़हमी हुई है.
2. आपको लग रहा है कि आपके रिश्ते में दूरी आ गई है. पुरानी इंटिमेसी नहीं रही है, चाहे फ़िज़िकल हो या इमोशनल. आप पार्ट्नर से इस बारे में बात करने जाती हैं. आपकी फ़ीलिंग्स को समझने के बजाय वो कहता है, ‘क्या बकवास कर रही हो? सब बिल्कुल ठीक है!’ या ‘क्यों इतना दिमाग़ ख़राब करती हो? ऐसा कुछ नहीं हुआ है.’ डिस्कशन को टालने की कोशिश करके वो आपको बताना चाह रहा है कि आपकी फ़ीलिंगस इंपॉर्टेंट नहीं हैं और सारी प्राब्लम्ज़ सिर्फ़ आपकी कल्पना में हैं.
3. आप किसी बात पर लड़ रहे हैं और वो कह देता है, “यह टेम्पर तुमने अपनी माँ से पाया है ना?” कॉन्वर्सेशन को ऐसे डाईवर्ट करके वो मुद्दे की बात से आपका ध्यान भी हटा लेता है और आपको इन्सल्ट भी कर देता है.
4. कुछ दिनों से आपको ऐंज़ाइयटी हो रही है और आप डिप्रेस्ड फ़ील कर रही हैं. आप यह बात उससे शेयर करती हैं और सलाह मांगती हैं कि ऐसे में क्या किया जा सके. आपकी मदद करने के बजाय वो मज़ाक़ में कह देता है, “तुम कितनी सेन्सिटिव हो यार. हर चीज़ को इतना बड़ा इशू बना देती हो.” आपको ख़ुद यक़ीन हो जाता है कि आप बहुत सेन्सिटिव हैं और दरअसल कोई प्रॉब्लम नहीं है. आपको अपराधबोध होने लगता है, जबकि इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं.
क्या आपको गैसलाइट किया जा रहा है?
डा. नागर कहती हैं गैसलाइटिंग किसी के साथ भी, ज़िंदगी में कभी भी हो सकती है. बहुत सक्सेस्फ़ुल और सशक्त औरतों को भी कई बार इसका शिकार होना पड़ता है. गैसलाइटिंग की ख़ासियत ही यह है कि जिस पर की जा रही है, उसे पता न चले उसके साथ क्या हो रहा है. लेकिन अगर हम चौकन्ने रहें तो इससे बचकर रह सकते हैं. अगर आप अपने स्वभाव में यह चीज़ें नोटिस कर रही हैं तो हो सकता है आप गैसलाइटिंग की शिकार हैं:
- पार्ट्नर के सामने डरा हुआ महसूस करना और उन्हें दिल की बात न बता पाना.
- हर चीज़ के लिए ख़ुद को दोष देना.
- आत्मविश्वास की कमी.
- पार्ट्नर की हर ग़लती को डिफ़ेंड करने की कोशिश.
- छोटी छोटी बातों पर माफ़ी मांगना.
- अकेलापन महसूस करना
- डिसिज़न्स लेने में परेशानी
- कमज़ोर दिखने के डर से अपनी फ़ीलिंग्स छुपाना.
- ऐंज़ाइयटी यानी बेचैनी या डिप्रेशन-ग्रस्त होना
ऐसे सिचूएशन से छुटकारा कैसे पाएँ?
गैसलाइटिंग वो करते हैं जिनका पोज़ीशन हमारी ज़िंदगी में बहुत डॉमिनंट हो. आंतरिक रिश्तों में पुरुष ही ज़्यादातर डॉमिनंट होते हैं जिसके कारण गैसलाइटिंग की विक्टिम्ज़ आमतौर पर महिलाएं होती हैं. ऐसे सिचूएशन से बचकर निकलना मुश्किल है लेकिन कुछ ज़रूरी क़दम उठाकर इससे छुटकारा पाना मुमकिन है.
अगर आप ऐसे किसी सिचूएशन से बाहर निकलना चाहती हैं तो यह स्टेप्स आज़माएं:
किसी दोस्त से बात करें. ऐसे हालातों से अकेले जूझना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए एक सपोर्ट नेटवर्क बहुत ज़रूरी होता है ताकि सारा मानसिक तनाव आपको अकेले ना सहना पड़े. अपने क्लोज़ फ़्रेंड्ज़ से अपने सिचूएशन के बारे में बात करें और उनसे सलाह लें कि कैसे इस प्रॉब्लम का सामना किया जाए.
थेरपिस्ट से मिलें. थेरपिस्ट्स को मानसिक अब्यूस के केसेज़ की अच्छी समझ होती है. वे ऐसा सिचूएशन हैंडल करने में आपको एक्स्पर्ट सलाह दे सकते हैं. साथ ही आपको अपना ध्यान रखने में भी मदद कर सकते हैं. थेरपी आपको अंदर से सशक्त होने में मदद करेगी ताकि आप सिर्फ़ इसी मुसीबत से ही नहीं बल्कि आनेवाली मुश्किलों से भी ढंग से जूझ सकें.
ख़ुद को दोष मत दें. याद रखें कि इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है. सिर्फ़ वही ज़िम्मेदार है जो आपके साथ ऐसा कर रहा है. अपना आत्मविश्वास बढ़ाइए और ख़ुद को समझाइए कि आप इससे बेहतर डिज़र्व करती हैं.
ऐसे लोगों से दूरी बनाएँ. जो आपको अंदर से कमज़ोर बनाना चाहता है, उसके साथ रहकर आपका नुक़सान ही होगा. बेहतर है कि आप ऐसे लोगों से रिश्ता तोड़ दें और अपने लिए एक पॉज़िटिव माहौल क्रियेट करें जहाँ आपके आसपास के लोग आपको वैल्यू करते हों. याद रखिए कि रिश्ता न तोड़ने के लिए आप पर मानसिक दबाव डाला जा सकता है, और अपने आप को इसके लिए तैयार रखिए.
अपना ध्यान रखें. सेल्फ़-केयर बहुत ज़रूरी है, ख़ासकर ऐसे हालातों से उबरने के बाद. ख़ुद के साथ क्वालिटी टाइम ज़रूर बिताइए. दोस्तों से मिलिए. हॉबीज़ पर्सू कीजिए. कोई नई ऐक्टिविटी ट्राई कीजिए. ऐसे प्रोडक्टिव कामों में अपना ध्यान लगाइए जो आपके मानसिक विकास में मदद करें और जिनसे आपको ख़ुशी मिलती हो.
इमोशनल अब्यूस फ़िज़िकल अब्यूस से भी ख़तरनाक हो सकता है. शरीर के घाव भले ही भर जाएँ, मन के घाव बहुत देर तक रहते हैं. हम सबको चाहिए कि हम अपने मेंटल हेल्थ की तरफ़ ध्यान दें और ऐसे लोगों और सिचूएशन्स से सतर्क रहें जिनके कारण हमारा मेंटल बैलेन्स बिगड़ता है.
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